Monday, August 10, 2020

गाइड उवाच

 

विनोद पदरज हमारे समय के एक विशिष्ट और विलक्षण कवि हैं, हालाँकि वह चर्चा में कुछ कम ही रहते हैं ! मितकथन और अपनी विशिष्ट मर्मभेदी कहन-शैली में वह गहन और सान्द्र प्रभाव वाली कविताएँ लिखते हैं ! यह कविता उनके संकलन 'अगन जल' में संकलित है, लेकिन ऐसा लगता है जैसे एकदम आज के हालात पर लिखी गयी है ! एक ऐसी कविता है, जिसे आप कभी भुला नहीं सकेंगे !


देवियो और सज्जनो

अब हम जहाँ जा रहे हैं

वह हमारे समय का अभूतपूर्व मंदिर है


देखिए उधर , वहाँ दाईं ओर

उसका रक्ताभ शिखर दमक रहा है

आपसे अनुरोध है

कि अपनी अपनी नाक पर रुमाल रख लें

ज्यों ज्यों हम इसके नजदीक जायेंगे

सड़ांध उठेगी ,चिरायंध

और आपको

चीखें, कराहें और आर्त्तनाद सुनाई देगा

इसके प्रस्तरों से भल भल बहता खून भी

दिख सकता है

बशर्ते आपकी आत्मा

पारदर्शी हो


महाशयो

यही एक मात्र ऐसा मंदिर है

जहाँ आकर आपको

शांति की नहीं

संहार की अनुभूति होगी


क्षत-विक्षत शव

भंग अंग-प्रत्यंग

मांस के लोथ

अंतहीन विलाप

और शोक और शोक और शोक

और हार और हार और हार

और शर्म और शर्म और शर्म


सबसे महती बात है

इसमें ईश्वर नहीं रहता

बस रात गए

कुछ भले से दिखने वाले लोग

ठहाके लगाते दिखाई देते हैं

जिनके पाँव उल्टे हैं

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