Saturday, August 15, 2020

शहर क़ाज़ियों, मुंसिफ़ों, बादशाहों, अदालतों और इंसाफ़ को लेकर कुछ किस्से और दो चिट्ठियाँ


(शहर क़ाज़ियों, अदालतों और इंसाफ़ वगैरह को लेकर पिछले दिनों मैंने जितने किस्से सुनाये थे और जो दो चिट्ठियाँ पोस्ट की थीं, उन्हें एक साथ फिर से पोस्ट कर रही हूँ ताकि आप यह देख सकें कि हालात आज जैसे हैं वे इन किस्सों से भी बहुत अधिक बदतर हैं!)

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(1)

"मी लार्ड, मैंने किसी भी तरह की हिंसा या खून-खराबे की धमकी नहीं दी थी ! मैंने तो सिर्फ़ यह कहा था कि 'गोली मारिये गोदी मीडिया के एंकरों को और उनके बकवासों को, ज़िंदगी की असली समस्याओं की बात कीजिए, सरकार की नीतियों और नतीजों पर बात कीजिए !' "

"देखिये-देखिये, आप अब खुली अदालत में एंकरों को गोली मारने की बात कर रही हैं ! यह तो हद ही हो गयी !"

"मी लार्ड, मैंने गोली मारने की बात अभिधा में नहीं, व्यंजना में कही थी ! मैंने मुहावरे का इस्तेमाल किया था !"

"अभिधा को नहीं, व्यंजना को ही सही ! गोली मारने की धमकी तो आप दे ही रही हैं ! यह व्यंजना किस चैनल की एंकर है ? और आप गोली मारने के लिए मुहावरे के इस्तेमाल की बात कर रही हैं ! क्या यह किसी देसी कट्टे का नाम है या कोई नया हथियार है ?"

"जी, मैं तो यह भी कहती हूँ कि गोली मारो ऐसी न्याय व्यवस्था को !"

"अब तो आपने हद ही कर दी ! आपको फ़ौरन पुलिस रिमांड पर भेजा जाता है और आपके ऊपर धारा 294, 323, 506 के तहत मामला पंजीबद्ध किया जाता जाता है !"

*

(2)

परम आदरनीय न्यायमूर्ति अरुण मिश्राजी,

चरनों में मत्था टेकूँ !

महामहिम ! मैं तो एकदम कनफुजिया गई हूँ ! अभी पिछले दिनों आप टेलिकॉम कम्पनियों द्वारा सरकार को बकाया भुगतान न किये जाने के मामले में बहुत गुस्सा हो गए थे I इस देश में मनी पॉवर की ताकत पर गुस्सा जाहिर करते हुए आपने कहा था कि 'इन हालात में तो सुप्रीम कोर्ट को बंद कर देना चाहिए ... बेहतर हो कि यह देश ही छोड़ दिया जाए !'

अब कल आपने ये सद्विचार प्रकट किये हैं कि मोदी एक बहुमुखी प्रतिभा हैं जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोचते हैं और ज़मीनी स्तर पर काम करते हैं !

अब आप कह रहे हैं तो ठीक ही कह रहे होंगे ! आपसे हमें यह बहुमूल्य ज्ञान तो मिला कि "बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति" का काम यह होता है कि वह देश को रहने लायक ही न रहने दे ! उसका काम होता है कि मनी पॉवर को इसक़दर सुप्रीम पॉवर बना दे कि सुप्रीम कोर्ट को बंद कर देने की ज़रूरत खुद जज साहिबान को महसूस होने लगे ! बाक़ी, मोदी का बहुमुखी ज्ञान तो हम आये दिन देखते-सुनते रहते हैं ! दुनिया भर घूमते हैं तो अंतरराष्ट्रीय ढंग से सोचते ही होंगे ! और उनके ज़मीनी कामों का -- नोटबंदी, जी एस टी, सार्वजनिक उपक्रमों की बिक्री, मंहगाई, बेरोजगारी, सी ए ए-एन पी ए-एन आर सी आदि के चमत्कारी नतीज़े तो देश देख और भुगत रहा ही है !

वैसे मोदीजी के साथ ग्रुप फोटो में आप और सुप्रीम कोर्ट के दूसरे जज साहिबान परम प्रफुल्लित चेहरों और खिलखिलाहटों के साथ बहुत फब रहे थे ! कस्सम से ! इसीतरह से मिलजुलकर, प्यार-मोहब्बत से देश चलाते रहिये ! मोदीजी से प्रार्थना है कि रिटायरमेंट के बाद भी आपको उचित पद पर समायोजित करके देश को आपकी भी बहुमुखी प्रतिभा से लाभान्वित होने का अवसर देते रहें ! शुभ मंगल ज्यादा सावधान !

परम श्रद्धा के साथ,

देश की एक परम तुच्छ नागरिक !

(23फरवरी, 2020)

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(3)

जस्टिस मुरलीधरजी से निवेदन है कि:

(1) मॉर्निंग वाक पर कदापि न जाया करें ! घर पर ही कुछ कसरत-वसरत कर लिया करें !

(2) किसी भी रिश्तेदार के वहाँ शादी या किसी फंक्शन में न जाया करें !

(3) अपने सहकर्मियों के घर पार्टी में या किसी फंक्शन में या यूँ ही मिलने-जुलने न जाया करें !

(4) अकेले यात्रा कत्तई न किया करें ! शहर से बाहर हाईवे पर कार से न चला करें !

(5) कोई मुक़द्दमा अगर किसी नेता, मंत्री या सरकार से सम्बंधित हो तो बेहतर है, सुनवाई से इनकार कर दें ! अगर इनकार नहीं करेंगे तो तबादला, या फिर जान का खतरा ! जान है तो जहान है ! और समस्या यह भी तो है कि आप न खुलकर बोल सकते हैं, न सड़क पर उतर सकते हैं !

(6) इतने एहतियात बरतने के बावजूद, बेहतर होगा कि भारी रकम का जीवन बीमा करा लें और अपनी वसीयत तैयार करवा लें !

(7)सबसे अच्छा तो यही होगा कि अपने पुराने सड़े-गले, आउटडेटिड आदर्शवादी आदतों से ही छुटकारा पा लें और उसी पंथ पर चलें जिससे होकर जस्टिस दीपक मिश्रा, गोगोई, अरुण मिश्रा जैसे महाजन आगे गए हैं !

ॐ शान्ति शान्ति ...

(27फरवरी, 2020)

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(4)

ठक-ठक-ठक-थप-थप-थप (दरवाज़े पर बदहवास दस्तक)

दरवाज़ा खुलता है I ख़ादिम पूछता है," क्या है ?"

"मुझे जनाब इंसाफ़ साहिब से तुरत मिलना है, अभी के अभी ! मुझे शिक़ायत करनी है कि शहर जल रहा है और जलाने वालों में वे भी शामिल हैं जिनपर शहर की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी है !"

"अरे, इंसाफ़ साहिब तो गए हैं तेल लेने ! गुजरात के किसी घांची के कोल्हू से ! क्या तुम जानते नहीं, गुजरात के घांचियों के कोल्हू तो सरसों, अलसी, सूरजमुखी ही नहीं, इंसानों को भी पेर देते हैं ! इनदिनों इंसाफ़ साहिब के जुबान को भी गुजरात के घांचियों के कोल्हू के तेल का चस्का लग गया है !"

फ़रियादी फिर सिर पर पाँव रखकर भागता है !

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(5)

एक बेहद ज़ालिम बादशाह था ! फिर वह और ज़्यादा, और ज़्यादा ज़ालिम होता चला गया !

अदालतों में बैठे हुए क़ाज़ी और मुंसिफ़ हालांकि इन्साफ़ करते हुए इस बात का पूरा ख़याल रखते थे कि उनका कोई फ़ैसला सीधी-सीधे हुकूमत के ख़िलाफ़ न जाये, मगर बादशाह और उसके वज़ीरों को उनपर पूरा भरोसा नहीं जमता था ! कोई न कोई ऐसा सिरफ़िरा क़ाज़ी या मुंसिफ़ निकल ही आता था जो इन्साफ़ के बारे में वाक़ई सोचने लगता था और कभी-कभी तो कुछ ज़्यादा ही सोचने लगता था ! ऐसे लोगों को मजबूरन कभी-कभी ठिकाने भी लगाना पड़ता था और लोग इशारों-इशारों में कहते थे कि फ़लां का तो लोया हो गया !

फिर बादशाह ने वज़ीरों से गुफ़्तगू किया और सभी क़ाज़ियों और मुंसिफ़ों को बर्खास्त कर दिया और उनकी जगह रियासत की तमाम रण्डियों के कोठों के दल्लों को क़ाज़ी और मुंसिफ़ की कुर्सियों पर बिठा दिया !

अब इन्साफ़ एकदम बादशाह के मान-मुआफ़िक होने लगा ! अदालतों की रौनक बढ़ गयी और दल्लों के बिना रण्डियों के कोठों की रौनक कुछ फीकी पड़ गयी !

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(6)

सच कहते हैं, जो मेहनती हो और जिसमें लगन हो उसकी तरक्क़ी का रास्ता कोई नहीं रोक सकता ! उसूलों की आड़ तो लोग बिलावजह लिया करते हैं !

मोहल्ले में एक लौंडा था I थोड़ा लम्पट था और थोड़ा जूआ खेलता था, फिर भी मेहनत से एल.एल.बी. पास करके वकील हो गया ! दलाली और ठगी में भी जल्दी ही माहिर हो गया, लेकिन वक़ालत से अधिक कमाई प्रॉपर्टी डीलिंग और शेयर दलाली में दीखी, सो काला कोट पहने-पहने ही वह इन कामों में भी लग गया ! उसकी हुनरमंदी को देखकर पिताजी (जो एक रिटायर्ड दारोगा थे) ने भी ज़रूरी सलाह दी और वह हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगा और फिर जल्दी ही जज हो गया ! अब वह सोचता था कि रिटायरमेंट के बाद अगर किसी आयोग में जगह नहीं मिली, या कोई राजनीतिक नियुक्ति नहीं मिली तो फिर से प्रॉपर्टी डीलिंग और शेयर दलाली का काम शुरू कर देगा, या फिर किसी बड़े शहर में दफ़्तर खोलकर लोगों को वीजा दिलाने और विदेश भिजवाने का काम करने लगेगा !

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(7)

बादशाह सलामत हर मामले में ख़ास और सबसे अलग होना चाहते थे ! वह चाहते थे कि जो काम वह करें वह कोई और न करे !

उन्होंने तय किया कि रिआया की बदचलनी एकदम रोक देनी होगी ! शहर के तमाम कोठे बंद कर दिए गए और तमाम रंडियों और भंड़वों को शहर क़ाज़ी की अदालत में पेश किया गया I

शहर क़ाज़ी ने डपटकर पूछा,"तुमलोग इतना गंदा पेशा क्यों करते हो ?"

एक रंडी बोली,"हुज़ूर, हम तो पापी पेट की खातिर मजबूर होकर अपना तन बेचते हैं मगर ओहदे की खातिर ज़मीर तो नहीं बेचते ! बेबसी में तन का सौदा करते हैं, लेकिन इंसाफ़ का सौदा तो नहीं करते !"

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(8)

शहर क़ाज़ी के दो ख़ूबसूरत कुत्ते थे ! क़ाज़ी साहिब ने प्यार से उनके नाम रखे थे : ज़मीर और इंसाफ़ I

वज़ीर की बेटी की शादी की दावत में बादशाह सलामत भी तशरीफ़ लाये ! वहाँ शहर क़ाज़ी भी आये थे, अपने दोनों प्यारे कुत्तों के साथ I बादशाह की नज़र कुत्तों पर पड़ी और पहली नज़र में ही उनपर उनका दिल आ गया I लौटकर उन्होंने वज़ीर से कहा कि उन्हें हर कीमत पर ज़मीर और इंसाफ़ चाहिए I वज़ीर साहिब ने बादशाह की ख्वाहिश शहर क़ाज़ी तक पहुँचाई I क़ाज़ी साहिब बहुत परेशान हुए I कुत्ते उन्हें बहुत प्यारे थे, लेकिन जाहिर है, नौकरी और जान से ज्यादा नहीं ! मन मसोसकर रह जाना पड़ा ! ज़मीर और इंसाफ़ को बादशाह सलामत की ख़िदमत में पेश कर दिया गया !

ज़मीर और इंसाफ़ बादशाह के महल में पहुँच गए I कुछ ही दिन बीते थे कि कुत्ते गायब हो गए ! बादशाह ने न उन्हें खोजा, न परेशान हुए !

दरअसल बादशाह का एक राज़ था, जिसे सिर्फ़ उनके खासुलखास ही जानते थे ! बादशाह को कुत्ते का गोश्त बहुत पसंद था I इंसाफ़ और ज़मीर बावर्चीखाने और दस्तरख्वान से होते हुए अब बादशाह और उनके उन ख़ास लोगों के पेट में पहुँच चुके थे जिन्हें बादशाह की संगत में कुत्ते खाने की लत लग गयी थी !

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अब इसी किस्से का एक मॉडर्न वर्शन सुनिए !

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सिविल लाइन्स में जज साहब और होम सेक्रेटरी के बंगले आजू-बाजू थे ! दोनों साथ-साथ मॉर्निंग वाक करते थे ! होम सेक्रेटरी के साथ मॉर्निंग वाक करने में जज साहब भी सुरक्षित महसूस करते थे !

जज साहब के पास एक बिलायती पिल्ला था, जिसके पूर्वज आज़ादी के पहले किसी अंग्रेज़ अफसर के पालतू रहे थे! पिल्ला कुछ कमज़ोर और बीमार सा था, लेकिन था तो बिलायती नस्ल का ! जज साहब उससे बहुत प्यार करते थे I उसका नाम उन्होंने रखा था : 'जस्टिस'!

एक बार जब होम सेक्रेटरी की बेटी की शादी की दावत में मंत्रीजी भी पधारे तो वहाँ जज साहब से उनकी मुलाक़ात हुई और औपचारिकतावश वह कुछ देर के लिए जज साहब के घर भी गये I वहाँ उन्होंने जस्टिस को देखा और देखते ही दिलो-जान से उसपर फ़िदा हो गये !

फिर जो होना था, वही हुआ ! मंत्रीजी की बर्थडे पार्टी में जज साहब को भी निमंत्रण मिला ! जज साहब ने बर्थडे गिफ्ट के तौर पर जस्टिस को मंत्रीजी को भेंट कर दिया !

कुछ ही दिनों बाद मंत्रीजी के बंगले पर जस्टिस का दीखना बंद हो गया ! दरअसल मंत्रीजी देश-विदेश काफी घूमे हुए थे और नाना प्रकार के मांसाहार के शौक़ीन थे ! वैसे सार्वजनिक तौर पर वह घोर शाकाहारी और गो-भक्त और भारतीय संस्कृति के पुजारी थे, लेकिन कुत्ते का मांस खाना उन्हें बहुत पसंद था !

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(9)

शहर क़ाज़ी ने इन्साफ़और क़ानून की जो भी तालीम जामिआ में हासिल की थी, उसे भूलने में ज्यादा वक़्त नहीं लगा ! उन्होंने बादशाह की यह नसीहत गाँठ बाँध ली कि बादशाह ही जामि उल कमालात होता है और क़ानून को भी उसीकी ताबेदारी करनी होती है ! वो जानते थे कि बादशाह के वज़ीरे-ख़ास को तलब करने वाले एक सनकी मुंसिफ़ को किसतरह जान से हाथ धोना पड़ा था !

शहर क़ाज़ी थोड़े रंगीनमिजाज़ भी थे ! जब एक बद्तमीज़ औरत ने खुलेआम उनके ऊपर अपनी इज़्ज़त से खेलने का इलज़ाम लगाया और बादशाह के दरबार में उनकी पेशी हुई तो बादशाह ने उस बेगैरत औरत को भगा दिया और क़ाज़ी साहिब को बेगुनाह क़रार दिया ! वैसे लोगों में खुसफुस यह बात भी होती रहती थी कि बादशाह भी कोई कम रंगीनमिजाज़ नहीं थे ! बहरहाल इस अहसान को शहर क़ाज़ी ताज़िन्दगी नहीं भूल पाए और जबतक शहर क़ाज़ी की कुर्सी पर क़ाबिज़ रहे, बादशाह सलामत से पूछ-पूछकर ही इन्साफ़ करते रहे और फैसले सुनाते रहे !

बादशाह हुज़ूर ने भी इस वफ़ादारी का पूरा ख़याल रखा और शहर क़ाज़ी बूढ़े होकर जब सबुकदोश हुए तो फ़ौरन उन्हें अपने दीवाने-ख़ास में तक़र्रुर अता फ़रमाया ! अब दीवाने-ख़ास के दरबारी होकर शहर क़ाज़ी बादशाह की जुबां से निकली हर बात पर यूँ फ़िदा हुए जाते थे गोया बादशाह कुछ ख़ूबसूरत अशआर कह रहे हों ! वह झुक-झुक कर बादशाह की दस्तबोसी करने लगते थे और अलग से रंगीन महफ़िलों में जब जाम उठाये जाते थे तो बादशाह के लाख मना करने के बावजूद ज़मीन पर लेटकर उनकी क़दमबोसी भी करने लगते थे ! बादशाह ऊपर से मना करते थे, भीतर से खुश होते थे !

शहर के तमाम क़ाज़ी और मुंसिफ़ कहते थे कि इन्साफ़पसंद हो कोई तो बादशाह सलामत जैसा और फ़र्ज़अदायगी का ईनाम किसी को मिले तो क़ाज़ी साहिब जैसा ! सभी शहर क़ाज़ी के नक्शेकदम पर चलना चाहते थे और तवारीख़ में इन्साफ़ की नयी इबारत लिखने में हाथ बँटाना चाहते थे !

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(10)

एक और दिलचस्प किस्सा सुनिए ! सच्ची घटना है !

बात बरसों पुरानी है I हाई कोर्ट के एक जज साहब हुआ करते थे I एक वकील साहब के ज़रिये अपना भी हल्का-फुल्का परिचय था I यह घटना उन वकील साहब ने ही मुझे बतायी थी I जज साहब पहले वहीं पर प्रैक्टिस करते थेI पहुँच बड़ी ऊँची थी, दिल्ली के गलियारों तक I बहुत जल्दी ही जज बन गए थे I शादी देर से की थी I एक बेटी के बाद जो दूसरा बेटा था, बहुत छोटा था, सेंट्रल स्कूल में तीसरी क्लास में पढ़ता था I बड़ी सी गाड़ी में एक चपरासी के साथ रोज़ स्कूल जाता था I

शहर का एक नामी पुराना गुण्डा जो अब विधायक बन गया था, उससे जज साहब की क़रीबी थी, घर आना-जाना था I एक प्रसिद्ध मंदिर के महंत जो हिन्दुत्व की राजनीति के पुराने खिलाड़ी और संसद-सदस्य थे, उनकी भी जज साहब भक्ति करते थे I कृपा धारासार बरसती रहती थी I जज साहब के पास दिल्ली, नोयडा और देहरादून में कोठियाँ थीं, कई प्लाट भी थे I

फिर ऐसा हुआ कि जज साहब का छोटा बच्चा अचानक कुछ दिनों से स्कूल जाने से कतराने लगा I शाम को फुटबॉल की कोचिंग में भी नहीं जाता था I तैरना सीखने जाना भी बंद कर दिया I कुछ अनमना और चुप-चुप सा घर में ही इधर-उधर घूमता रहता था I टॉमी के साथ खेलता भी बहुत कम ही था I

जज साहब और उनकी पत्नी बहुत परेशान हुए I बहुत पूछा पर उसने कुछ नहीं बताया I स्कूल गए, प्रिन्सिपल और क्लास-टीचर से भी बातचीत की, पर कोई सुराग़ हाथ नहीं लगा I

फिर एक दिन बहुत पुचकारने और पूछने पर बच्चा थोड़ा खुला I नज़रें झुकाए हुए उसने पापा से पूछा,"पापा ! तुम चोट्टा हो ?"

जज साहब एकदम हड़बड़ा गए," नहीं बेटे, किसने तुमको ऐसी गंदी बताईं तुम्हारे पापा के बारे में ?"

बच्चा सवाल का जवाब दिए बिना बोलता चला गया,"और वे तो यह भी कह रहे थे कि तुम मंत्रियों और नेताओं के तलवे चाटते हो ! तलवा चाटना तो बहुत गंदा लगता होगा न ! तुम किसलिए ऐसा करते हो ? वे कह रहे थे कि तुम नेताओं के आगे दुम हिलाते हो और पैसे खाते हो ! मैंने बता दिया कि मेरे पापा के तो दुम है ही नहीं और मैंने उन्हें कभी पैसे खाते नहीं देखा, वह तो खाना खाते हैं ! इसपर सभी जोर-जोर से हँसने लगते हैं I सब कहते हैं कि इतनी बड़ी गाड़ी और बहुत सारा पैसा तुमने चोट्टागीरी करके हासिल की है, सब दो नंबर की कमाई है I"

"कौन कहता है ? कौन कहता है यह सब ?" जज साहब की पत्नी बोलीं I

बच्चे ने कहा,"इंटरवल में जो दूसरी कक्षाओं के बड़े लड़के हैं, वे कहते हैं I अब तो उनकी बात पर मेरी क्लास के बच्चे भी हँसते हैं I मेरे दोस्त भी अब मुझसे बात नहीं करते I"

हैरान-परेशान जज साहब और उनकी पत्नी ने बहुत समझाया, पर बच्चे के चेहरे की उदासी वे दूर न कर सके I

रात में जज साहब की पत्नी ने जज साहब से कहा,"सुनो जी, इस सेंट्रल स्कूल में तो ज्यादातर 'बिलो स्टैण्डर्ड फैमिली' के ही बच्चे पढ़ते हैं I बेटे को किसी बड़े प्राइवेट स्कूल में डलवाओ I मुझे तो उसकी बहुत चिंता हो रही है !"

"नहीं-नहीं ! उसे बाहर कहीं किसी बोर्डिंग स्कूल में भेजना होगा I इस शहर में रखना ही ठीक नहीं होगा !" जज साहब ने कहा I

पति-पत्नी रात भर नहीं सोये I अगले ही दिन जज साहब ने हफ़्ते भर की लम्बी छुट्टी की दरख्वास्त दी I बेटे-बेटी को उनकी मौसी के घर लखनऊ छोड़ा ! उनके साढू भाई वहाँ किसी बड़े सरकारी निगम के डायरेक्टर थे ! फिर पति-पत्नी ने ऊटी, डलहौजी, नैनीताल, मसूरी और देहरादून के सबसे मँहगे और इलीट बोर्डिंग स्कूलों का मुआयना किया I अंततोगत्वा बेटे को मसूरी के एक बोर्डिंग स्कूल में एडमिशन दिलाने का तय हुआ ! खुद हाई कोर्ट के जज थे ! शासन-प्रशासन में ऊँची पहुँच थी I सारा काम चुटकियों में हो गया I

बच्चा अभी छोटा था ! ज्यादा उम्मीद यही है कि कुछ दिनों बाद सहपाठियों की यह बात वह भूल गया होगा कि उसके जज पापा एक चोट्टा थे जो मंत्रियों-नेताओं के तलवे चाटते थे और उनके आगे दुम हिलाते थे ! या हो सकता है, न भी भूला हो ! कभी-कभी बहुत बचपन की कोई बात भी बड़े होने तक याद रह जाती है !

*

(11)

बादशाह सलामत को हमेशा ख़ुश रहना पसंद था I जब वह ख़ुश रहते थे तो सभी दरबारी और ओहदेदार खुश रहते थे और वे बताते थे कि रिआया बहुत खुश है I इससे बादशाह और खुश हो जाया करते थे !

बादशाह चाहते थे कि तमाम अदीब और फ़नकार उनको खुश रखें और अक्सर ही दरबार में ऐसे अदीबों और फ़नकारों को बख्शिशऔर इनामो-इकराम से नवाज़ा जाता था I बादशाह चाहते थे कि तमाम ख़ूबसूरत औरतें, चाहे वो रक़्क़ासा हों या शरीफ़ज़ादियाँ, अगर उनपर बादशाह का दिल आ गया तो वो उन्हें ख़ुश करें ! बादशाह जब ख़ुश हो जाते थे तो उन्हें अपने दीवाने-ख़ास, या यहाँ तक कि इक़्तिदारे-आला तक में जगह दे देते थे I और जैसे ही कोई बादशाह की नज़रों से उतर जाता था, या बादशाह का उससे मन भर जाता था, वो जल्दी ही गुमनामी के अँधेरे में खो जाता था, कहीं दूर के वीरान ताल्लुके में रियासतदार बनाकर भेज दिया जाता था, या फिर इस दुनिया से ही चुपचाप रुख़सत हो जाता था I

फिर भी कुछ ऐसे लोग थे जिन्होंने बादशाह को इस क़दर ख़ुश किया, इस क़दर ख़ुश किया, कि हरदम उनके ख़ासुलख़ास बने रहे ! सल्तनत के वज़ीरे आला उनमें से एक थे ! वो कभी एक सड़क-चौराहे के बदनाम गुण्डे और भाड़े के क़ातिल हुआ करते थे, पर अपनी क़ाबिलियत और वफ़ादारी की बदौलत बरसों से बादशाह की सबसे बड़े राज़दार थे, उनके दाहिना हाथ थे !

एक मुंसिफ़ ने भी लगातार बादशाह की मर्ज़ी-मुताबिक़ इंसाफ़ करके बहुत दिल जीता था और तरक्की करते हुए शहर-क़ाज़ी के ओहदे तक जा पहुँचे थे ! वहाँ भी फ़ैसले लिखते वक़्त उनकी कलम में जैसे बादशाह की रूह आ जाया करती थी I पहले मैं बता चुकी हूँ कि शहर क़ाज़ी की बेपनाह ख़िदमत से खुश होकर बादशाह सलामत ने उनके बूढ़े होकर सबुकदोष होने के बाद अपने दीवाने-ख़ास में तक़र्रुर अता फरमाया था I क़ाज़ी साहब अभी भी बादशाह को और ख़ुश करना चाहते थे, उनकी नज़रों में और ऊपर चढ़ना चाहते थे !

एक दिन वह बादशाह की ख़िदमत में अकेले में हाज़िर हुए औए मचलकर बोले," हुज़ूर ! ज़िल्ल-ए-सुब्हानी ! मैं अपनी ख़िदमत और वफ़ादारी से हुज़ूर को और खुश करना चाहता हूँ ! अब आप ही बतायें कि मैं क्या करूँ !"

बादशाह सलामत देर तक ठहाके लगाकर हँसते रहे ! बोले,"क़ाज़ी साहब, आप परले दर्ज़े के अहमक हैं, गावदी हैं ! अमां, आप कोई परीसूरत और परीसीरत खातून तो हैं नहीं जो मुझे खुश कर देंगे हर सूरत में ! आप वज़ीरे-आज़म जितने काइयाँ और मक्कार सियासतदाँ भी नहीं हो सकते ! आपने शहर क़ाज़ी रहते हुए मुझे मेरे प्यारे कुत्ते की तरह, मेरी सबसे ख़ास रक्कासा की तरह खुश किया ! आपको आपकी ख़िदमत और वफ़ादारी का इनाम मिल चुका है ! अब मेरे दीवाने-ख़ास में बुढ़ापे के बचे हुए दिन काटिए और अपने क़ानूनी दिमाग़ का इस्तेमाल करते रहिये ! हो सकता है अभी आपकी किस्मत में कुछ और तरक्क़ी लिखी हो ! कौन जाने, वक़्त अभी आप पर और मेहरबानी की बारिश करने वाला हो ! मगर ज़्यादा लालची होना अच्छी बात नहीं ! ख़ुद पे क़ाबू कीजिए ! देखिये, मेरा कुत्ता भी आपको घूर रहा है ! उसे लगता है कि आप अब उसकी जगह लेना चाहते हैं !"

क़ाज़ी साहब जब वहाँ से रुखसत हुए तो रास्ते भर इसी मसले पर सोचते रहे कि अब आख़िरकार ऐसा क्या-क्या किया जा सकता है कि बादशाह सलामत का दिल एकदम बाग़-बाग़ हो जाए ! वो इस क़दर अपनी धुन में खोये हुए थे कि इसपर गौर ही नहीं कर पाए कि आसपास से गुज़रते लोग उन्हें देखकर यूँ किनारे हट जा रहे हैं गोया वह कोई कोढ़ी हों और और बाजू में झुककर 'पच्च' से थूक दे रहे हैं !

*

(12)

मुझे वह कहानी तो नहीं याद है जो बचपन में दादी से सुनी थी, पर उसमें आने वाली तुकबंदी की कुछ पंक्तियाँ आज भी याद हैं जो हम बच्चे कोरस में दुहराते थे I कथा में इंसाफ़ करने वाला क़ाज़ी बेईमान और भ्रष्ट है और ज़ालिम बादशाह का खुशामदी है I

क़ाज़ी की सवारी जब शहर की सड़कों पर निकलती थी, तो बच्चे उसके पीछे-पीछे तालियाँ बजा-बजाकर चिल्लाते थे:

"क़ाज़ी तू तो निकला पाजी "

"हाँ जी हाँ जी हाँ जी हाँ जी "

"छोड़ अदालत बेचो भाजी "

"हाँ जी हाँ जी हाँ जी हाँ जी "

"सोना-चाँदी लेकर कुत्ता

"बनने को तू हो गया राजी"

"हाँ जी हाँ जी हाँ जी हाँ जी

"हाँ जी हाँ जी हाँ जी हाँ जी"

सोचती हूँ कि दीपक मिश्रा, गोगोई, बेवड़े, अरुण मिश्रा आदि न्यायमूर्तियों को अगर यह किस्सा सुनाने का मौक़ा न मिले तो कुछ बच्चों को यह तुकबंदी सिखा दी जाए जो उनकी गाड़ियों के पीछे ताली पीटते हुए इसे गाते हुए भागें !

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