तरह-तरह के छल-कपट-षड्यंत्र करके और खून की नदियाँ बहाकर शहंशाह बने एक हत्यारे को दूर देस में रहने वाली उसकी बूढ़ी माँ की एक चिट्ठी, जैसी चिट्ठियों में मन की बात लिख-लिख कर वह फाड़ती रहती है !
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अरे अभागे, कोख-कलंकी, कुलनाशक, गुण्डे-हत्यारे, नासपीटे, करमजले, बज्जर बेहया, बजरबट्टू, महाझुट्ठे, कफ़नखसोट !
तुझे सभी कलपती माँओं और बेसहारा बच्चों का सराप लगे !
आखिर तू कबतक अपना चेहरा चमकाने और अपने शातिराना झूठों से लोगों को ठगने के लिए मुझे भी अपनी नौटंकियों के पाप भरे नरक-कुण्ड में घसीटता रहेगा ? तू तो वो इंसान है कि तेरी बूढ़ी माँ भी अगर तेरी अंधी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति में मददगार न बने तो तू अपने हाथों से उसका गला घोंट देगा ! अब मुझे पता चला है कि महापुरुष बनने के लिए तूने किसी भाड़े के लेखक से मेरे नाम अपनी कुछ फर्जी चिट्ठियाँ लिखवाई हैं जिन्हें किताब के रूप में छपवा रहा है ! जानती हूँ, इसके पहले भी तू अपने नाम से दो किताबें लिखवा चुका है ! कभी-कभी अकेले बैठकर सोचती हूँ तो हँसते-हँसते पेट में बल पड़ जाते हैं ... तू और लेखक ? तू कितना गंभीर मजाक करता है रे ! लेकिन इस बार तूने अपने इस धतकरम में भी मुझे घसीट लिया ! आखिर तेरे जैसे महापातकी पापी को जनम देने की सज़ा मैं कबतक भुगतती रहूँगी ?
आखिर अब और तू क्या चाहता है शमशान के प्रेत ? नोट बदलने की लाइन में खड़ा कर दिया ! जब चाहे, पत्रकारों और कैमरा वालों को लेकर धमक जाता है और मेरे साथ खाना खाने और आशीर्वाद लेने की नौटंकी करता है I मातृभक्त दीखने के लिए मुझे राजधानी तक घसीटके बुलवा लिया और जब अखबार और टीवी से प्रचार का पूरा यज्ञ हो गया तो फ़टाफ़ट वापस खदेड़ दिया I
अरे तू जब घर से सारे गहने और नगदी चुराकर भागा था और कुछ बरसों तक तेरा कुछ खोज-पता नहीं चला तो मैंने तो तभी तुझे मरा मानकर तसल्ली कर ली थी ! लेकिन नहीं, मुझे आख़िरी साँस तक तिल-तिल कर मारने के लिए और इस देस की छाती पर मूँग दलने के लिए तू फिर उपरा गया !
और तू कितना मूरख झुट्ठा है रे ! चलो, वो बचपन में मगरमच्छ का बच्चा पकड़ने वाला झूठ तो चल जाता ! पर जब उस रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने की बात करोगे जो था ही नहीं, उस सब्जेक्ट से बी.ए-.एम.ए. करने की बात करोगे जो होते ही नहीं, डिजिटल कैमरा और कम्प्यूटर के उस समय इस्तेमाल की बात करोगे जब वे चलन में थे ही नहीं, तो गोबर गणेश महाराज! तुम्हारा भेद तो खुल ही जाएगा ! जब शादी करके भागे थे तो बरसों तक उसे छिपाने की क्या ज़रूरत थी ? और गद्ध-गपोड़ी इतना बड़ा है कि बरस गिनने भी नहीं आता ! कुल 70 की उम्र में 45 साल से राजनीति कर रहे हो, इसके पहले 10-12 साल गुफा में तपस्या भी कर लिये, 35 साल भीख भी माँग लिए, और एम.ए. तक की पढाई भी कर लिए ! तू खाली टिन का पिचका डब्बा है ! छाती की नाप छप्पन इंच और भेजे की साइज़ मटर बराबर ! जब पढ़ने-लिखने के समय में चोरी-चकारी और लोफरी-गुंडई करता रहा तो इतिहास-भूगोल की तमाम उल्टी-सीधी बातें करके अपनी भद्द क्यों पिटवाता रहता है ? गधे भक्तों को छोड़कर सभी आम लोग तुम्हारे अत्याचारों से डरते हैं, लेकिन तुम्हारे गदहपने और गप्पों पर मुँह दबाकर हँसते हैं ! तू इतना घोंचू कैसे हो गया रे ?
लेकिन एक बात मानती हूँ कि साजिशें रचने, दंगे-बलवे कराने, राह के हर रोड़े को ठोकर मारकर ठिकाने लगा देने में तेरे शैतानी दिमाग़ का कोई जोड़ नहीं है I रातों-रात तू अफवाहें फैला सकता है, खून की नदियाँ बहा सकता है, देश-रक्षक बनाने के लिए राज्य पर नकली हमले करवाकर अपने ही सैनिकों को मौत के घाट उतरवा सकता है, एक के बाद एक लगातार झूठी घोषणायें और झूठे वायदे कर सकता है, सरकारी खजाने को तरह-तरह के तीन-तिकड़म करके लूट सकता है, अपार विलासी जीवन जीते हुए फ़कीर होने के दावे कर सकता है और फिर मंच पर देश और जनता के दुःख से सराबोर आँसू बहाने की नौटंकी भी कर सकता है ! गजब शातिर नटवरलाल है रे तू !
चल, अब इससे ज्यादा क्या लिखूँ ! तेरी कपट-लीला तो अपरम्पार है !
एक माँ होने के बावजूद मैं तुझे सरापती हूँ कि तुझे सभी सताए गए लोगों की आह लगे और तेरे अत्याचारों का खात्मा हो, तेरा नास हो !
-- तेरी अभागी-दुखियारी माँ.
(30मई, 2020)

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