एक अक़ल-बच्चा मुँह से दूध की बोतल निकालकर व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी, गोदी मीडिया और आई टी सेल से सप्लाई की गयी अपरम्पार जानकारी के आधार पर मुँह से दुर्गन्ध और गाज फेंकते हुए हाथ फेंक-फेंककर 'सर्वाइवल ऑफ़ द फिटेस्ट' के फासिस्ट संस्करण की पैरोकारी कर रहा था I आई.टी. सेक्टर का कूपमंडूक था जिसके गदहपन पर गदहा भी शरमा जाए ! कह रहा था कि अम्बानी ने और उन जैसों ने अपना अम्पायर अपनी मेहनत और सूझ-बूझ से खड़ा किया है, करोड़ों अपढ़ और गँवारों को पेट पालने का सहारा दिया है, देश को इतनी तरक्की तक पहुँचाया है ! अगर वे न होते तो सारे मज़दूर तो भूखों मर जाते और छोटे-छोटे रोजी-रोज़गार वाले भी तो उन्हीं के बूते ज़िंदा हैं ! और शासन ? वह तो आदिकाल से ही वही चलाते आये हैं जिनके पास बुद्धि-बल और बाहु-बल दोनों होता है ! बुद्धिजीवी और श्रमजीवी का फर्क कोई नहीं मिटा सकता ! यह प्राकृतिक योग्यता पर आधारित होता है ... वगैरह-वगैरह ... !
कुछ देर मैंने उसे धीरज से समझाया कि पूँजीपति के पास पूँजी कहाँ से आती है, शोषण कैसे होता है, पूँजीवादी समाज में योग्यता कैसे सामाजिक हैसियत से तय होती है ... आदि-आदि... ! इसी बीच उस बेवकूफ़ ने रेल पटरी पर कुचलकर मरने वाले मज़दूरों के बारे में खिल्ली उड़ाने वाले भाव में कहा कि रेल पटरी सोने के लिए नहीं होती है, ट्रेन के आने-जाने के लिए होती है ! बस इसके बाद मेरा माथा खराब हो गया I मैंने सोचा कि इस व्यक्ति को समझाना तो दीवार में सिर मारना है ! यह न सिर्फ़ घोंचू है,आम लोगों के प्रति एकदम हिकारत की भावना से भरा हुआ है !
मैंने तुरत उससे कहा,"ऐसा है, चाय का प्याला रख दे या गटक ले और फ़ौरन यहाँ से सटक ले मोदी का काना तोता, अम्बानी का लंगड़ा कुत्ता I महीने भर मालिकों और मैनेजरों का गू प्लेट में लेकर हलवा की तरह खाता है, तरक्की पाने के लिए अपने ही बराबरी वालों को धोखा देने, टंगड़ी मारने की योजना बनाता है, पटाया और फुकेट जाकर सूअर की तरह रंडीबाजी की गंद में लोट लगाने को ही ज़िंदगी की मस्ती समझता है और पूरे देश की संपदा पैदा करने वाले मज़दूरों को अपने पाँव की जूती भी नहीं समझता ? मुफ्तखोर, चोट्टा, नाली का कीड़ा, जल्दी से खिसक ले, मेरे सिर पर बस चंडिका सवार हो गयी है I इसके बाद की बातचीत मैं डंडे, झाडू या चप्पल से करती हूँ !"
अकबकाया-सकपकाया आई टी इंजीनियर जल्दी में अपने मँहगे जूतों की जगह वहीं पड़ी घिसी चप्पल पहनकर ही भाग निकला I जाने से पहले वाश-रूम जाना चाहता था ! मैंने कहा,"सड़क पर कर लेना, देश के सारे गरीब वहीं करते हैं, आज तुम भी वहीं कर लेना !"
अब सोच रही हूँ कि इस घटना के बाद कितने और भद्र-जनों का कोपभाजन बनना पड़ेगा ! उंह ! बनना पड़ेगा तो बनना पड़ेगा ! बर्दाश्त की एक लिमिट तो सबकी होती है !
(9मई, 2020)
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