फासिस्ट कुत्ते की मौत मरने से अगर बच भी गए तो इतिहास में पागल कुत्तों की ही तरह याद किये जाते हैं !
अगर वे अपने मुल्कों से किसीतरह से झोला उठाकर भाग भी निकलते हैं तो अमेरिका-यूरोप के किसी शहर में नालियों में दुबके बूढ़े छछून्दरों की तरह अपने आखिरी दिन गिन-गिनकर काटते हैं !
उनके कुकर्मों के चलते उनकी आने वाली पीढ़ियाँ भी अपनी पहचान छिपाकर जीने को मज़बूर होती हैं !
फासिस्ट सत्ता के पतन के बात उनके अंधभक्तों में से कई तो आत्महत्या कर लेते हैं ! कई के आख़िरी दिन जेलों में नहीं तो पागलखानों में गुजरते हैं ! कइयों को ताउम्र मानसिक व्याधियों का इलाज कराना पड़ता है !
ज्यादातर भक्तों के परिवार शर्म, ज़िल्लत, अपराध-बोध और सामाजिक अलगाव में जीने के कारण तबाह हो जाते हैं !
(9मई, 2020)
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मान लीजिये, कोई भयंकर, बर्बर, ख़ूनी फ़ासिस्ट जिसने न जाने कितनों को मौत के घाट उतरवाया हो, धार्मिक अल्पसंख्यकों और मज़दूरों पर अवर्णनीय कहर बरपा किया हो, जिसके इशारे पर कई-कई भयंकर खूनी दंगे, सामूहिक बलात्कार और मॉब लिंचिंग के मामले हुए हों; वह अगर किसी बीमारी से, या बस यूँ ही स्वाभाविक मौत मर जाए, तो भई, मुझे तो ज़िन्दगी भर के लिए ज़बरदस्त अफसोस हो जाएगा !
एक फ़ासिस्ट आततायी को न्याय के हाथों दण्डित होना चाहिए और अपने पैशाचिक कुकर्मों की सज़ा भुगतनी चाहिए I फ़ासिस्टों पर या तो 'नूरेम्बर्ग ट्रायल' की ही तरह किसी विशेष ट्रिब्यूनल में मुक़दमा चलाकर कठोर सज़ाएँ दी जानी चाहिए, या फिर उनका जनता के हाथों वही हश्र होना चाहिए जो मुसोलिनी और उसके कुछ करीबियों का हुआ ! कनपटी में गोली मार लेने वाले हिटलर और ज़हर खा लेने वाले गोएबल्स जैसे बदमाश भी सस्ते छूट गए I
फासिस्टों और तानाशाहों को स्वाभाविक मृत्यु या इच्छा-मृत्यु नहीं, न्याय के हाथों दण्ड मिलना चाहिए, कठोर दण्ड, इतिहास में चिरस्मरणीय दंड ! उनके एक-एक जुर्म का, एक-एक अत्याचार का हिसाब तो होना ही चाहिये और उन्हें सुनाई गयी सज़ाओं और उनकी तामीली की इतिहास के पन्नों पर इन्दराजी भी होनी चाहिए !
अगर कोई ईश्वर होता तो मैं तो उससे यही प्रार्थना करती कि 'हे प्रभो, सभी फ़ासिस्ट पिशाचों को लम्बी उम्र बख्शो ताकि वे अपने कुकर्मों की जनता के हाथों सज़ा भुगतें और आने वाली पीढ़ियों के लिए इतिहास में एक ज़रूरी सबक फिर से दर्ज़ हो जाए !
(8मई, 2020)
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