Thursday, May 07, 2020


जरि के तरि गयो प्रेम अगन में ...

(खुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी वा की धार
जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार।)


चलिए, एक और किस्सा हो जाए !

संस्कृत के आचार्य लोग अच्छे किस्सागो इसलिए नहीं हो पाते थे क्योंकि वे हर कथा से कुछ नैतिक शिक्षा निकालने लगते थे I कथा में से शिक्षा अगर बाहर निकालकर रखनी पड़े तो कथा निस्सार हो जाती है I दूसरे, कथा में नैतिक शिक्षा के साथ कुछ अनैतिक शिक्षा , व्यावहारिक शिक्षा के साथ कुछ अव्यावहारिक शिक्षा, वास्तविक शिक्षा के साथ कुछ अवास्तविक शिक्षा वैसी ही घुली-मिली होती है जैसे जीवन के साथ हमेशा कुछ स्वप्न घुले-मिले होते हैं, जैसे धड़कनों में मृत्यु की पदचापें छिपी होती हैं ! कथा सबके लिए होती है और सबको अपने-अपने हिसाब से कथा को दुहकर नसीहत निकालने दीजिये ! सबसे अच्छा तो यह होता है कि कथा का आनंद लो ! ज़रूरी शिक्षा तो मन अपने आप ले लेगा ! और यह भी क्या ज़रूरी है कि कथा से शिक्षा ली ही जाए ? किस्से का सिर्फ़ आनंद लें तो यह भी तो उसकी एक उपयोगिता है ।

तो चलिए, कुछ फालतू का ज्ञान बघारने के बाद आपको एक बेहद दिलचस्प, सनसनीखेज किस्सा सुनाते हैं । वह राजस्थान की कालबेलिया जनजाति का एक गाँव था बीहड़ रेगिस्तान में बाड़मेर से करीब बीस किलोमीटर दूर, जहाँ उस औरत से मेरी मुलाक़ात हुई थी । उम्र तक़रीबन 70-75 साल होगी, पर एकदम तनकर तेज़ कदमों से चलती थी I सुगनी उसका नाम था। अपने ज़माने में कालबेलिया नृत्य की बेजोड़ कलाकार मानी जाती थी ! अब भी लड़कियों को सिखाने के लिए जब नाचती थी तो गति तेज़ होते ही लगता था मानो भूरे बालू पर कोई काली नागिन उन्मत्त होकर लहरा ले रही हो ।

नौजवानी में एक अधेड़ भूस्वामी मांगीराम इसतरह उसके पीछे पागल हुआ कि सुध-बुध खो बैठा । सुगनी तो डेरा छोड़कर किसी भी कीमत पर उसके साथ जाने को तैयार नहीं हुई I फिर वह किसान ही पुश्तैनी जायदाद का अपना हिस्सा बेचकर कालबेलियों के डेरे में आकर रहने लगा I खेती बेचने से मिली सारी रकम सुगनी ने तुरत लेकर, गिनकर संदूक में रख ली I अगले ही दिन 20 कि.मी. दूर शहर जाकर बैंक में अपने खाते में सारा पैसा डाल दिया I घर पर किसान की पत्नी और दो बड़े बेटे थे जिनमें से एक की शादी भी हो चुकी थी I किसान आ तो गया लेकिन कालबेलियों के जीवन और संस्कृति में एडजस्ट नहीं हो पाया I नाच के दौरान जब दर्शक इशारे करते थी, सीटी मारते थे और फब्तियाँ कसते थे और सुगनी होंठ दबाकर तिरछी आँखों से उन्हें देखकर मुस्काती थी तो मांगीराम गुस्से से लाल हो जाता था, पर कुछ नहीं कर पाता था ! बाहर जाकर बीड़ी पीने लगता था ।

एकबार उसने सुगनी से नाचना छोड़ने के लिए कहा, तो सुगनी ठठाकर हँस पडी I बोली,"फिर मैं क्या करूँगी ? मरद की कमाई खाऊँगी ? यहाँ तुम्हें मेरी कमाई खानी होगी ! जबतक जवानी है, नाचूँगी I फिर जमा रकम से मजे करूँगी और छोरियों को टरेनिंग दूँगी I" मांगीराम चुप लगा गया । पर धीरे-धीरे उसका मन और उचाट होता चला गया I कभी-कभार अपने गाँव-घर की तरफ जाता भी था तो पत्नी-बेटे दुत्कार कर भगा देते थे I सुगनी को पता चला तो कमर से कटार निकालकर मांगीराम की गर्दन पर रख दिया I बोली," देखो, यहाँ तो एक ही नाव की सवारी चलेगी । अब तुम एक कालबेलिया मरद हो और उसी नेम-धरम से तुम्हे जीना होगा I बहरहाल, उचटा मन दुबारा लग तो पाता नहीं, उखड़ा पौधा भले फिर हरा हो जाए I मांगीराम ने अब ज़िद पकड़ ली कि खेत के रुपयों से कहीं दूर किसी गाँव में जाकर गिरस्ती जमाई जाए I इधर एक नयी बात यह हुई कि किसी प्रोग्राम में मांगीराम के छोटे बेटे बच्चीलाल ने सुगनी का नाच रातभर देखा और सुबह तक वह जैसे पागल हो गया I गबरू जवान था, सुगनी को भी भा गया I मांगीराम को पता चला तो वह तो गुस्से में जैसे पागल हो गया ! बेटे को समझाना चाहा, पर एक प्रेमी भला दूसरे प्रेमी को कैसे समझा सकता है ! फिर बहुत कुछ हुआ I क्लाइमेक्स यह हुआ कि एक रात सुगनी ने मांगीराम का गला रेत दिया I लाश दूर रेगिस्तान में मिली I सुगनी गिरफ्तार हुई I पर उसके युवा प्रेमी ने अपने हिस्से का सारा खेत बेचकर मामला रफा-दफा करवा दिया I अब वह आकर डेरे पर सुगनी के साथ रहने लगा ।

लेकिन साल बीतते-बीतते उसने भी अपने पिता वाली ही ज़िद पकड़ ली I फिर रार होने लगा I इस बीच सुगनी पर इलाके के जाने-माने नेताजी का दिल आ गया I सुगनी ने नेताजी के सामने अपनी कठिन शर्त रखी और नेताजी ने बच्चीलाल का मर्डर करा दिया I नेताजी चक्कर तब खा गए जब सुगनी ने पुलिस को बयान दिया कि चूँकि सुगनी पर नेताजी की निगाह थी, इसलिए उन्होंने अपने गुंडों से बच्चीलाल का मर्डर करा दिया I नेताजी के उभरते हुए कैरियर को मिट्टी में मिला देने के लिए उनके सभी प्रतिस्पर्द्धी सक्रिय हो गए, सी.बी.आई. जाँच हुई और नेताजी और उनके गुंडों को सज़ा हो गयी ।

सुगनी का अगला प्रेमी शेखावटी का एक व्यापारी था, जिसने अपनी एक हवेली ही सुगनी के नाम कर दी I सेठ का मुम्बई में व्यापार-धंधा था I उसका परिवार भी वहीं रहता था I सुगनी को सेठ हवाई जहाज़ से मुम्बई ले गया I एक बार दुबई भी ले गया I वह सुगनी से कहता था कि वह उसे टीचर रखकर हिन्दी और गिटपिट अंग्रेज़ी बोलना सिखा देगा और फिल्मों में काम दिलाएगा I पर सुगनी ने साफ़ इनकार कर दिया I तीन साल सेठ के साथ सुगनी देस-बिदेस घूमी-फिरी ! फिर एकदिन उसने सेठ के तीन बेटों और उसकी पत्नी को बैठाकर बताया कि सेठजी जायदाद का बड़ा हिस्सा उसके नाम करना चाहते हैं और उसके नाम कुछ वसीयत भी करना चाहते हैं, पर उसे यह उचित नहीं लग रहा है, और मुम्बई में वह रहना भी नहीं चाहती, वह तो गाँव वापस लौटना चाहती है, पर सेठजी सबकुछ देकर भी उसे रोके रखना चाहते हैं I

अगले दिन सेठजी अपने दोनों बेटों के साथ नए कंस्ट्रक्शन साइट का दौरा करने गए I वहाँ चौबीसवीं मंजिल से पैर फिसलने के कारण वह सीधे नीचे आ गिरे और बिना समय गँवाए स्वर्ग सिधार गए I सबने बताया कि यह एक दुर्घटना थी I सुगनी चुप रही और इस चुप्पी की बहुत मोटी कीमत वसूलकर गाँव लौट आयी I फिर उसने शेखावटी की हवेली जो सेठ ने उसके नाम की थी, उसे सेठ के बेटों को ही वापस बेच दी ! डेरे पर लौटने के कुछ महीनों बाद सुगनी की शादी अपनी बिरादरी के उसी नौजवान बेचन के साथ हो गयी जिसके साथ बचपन में ही उसका लगन हुआ था I लम्बे इंतज़ार ने बेचन को समय से पहले ही अधेड़ बना दिया था I

बहरहाल, बेचन के साथ सुगनी ने मस्ती के साथ सात साल गुजारे I फिर एक बरात में ज़हरीली शराब पी लेने के कारण सत्रह लोगों के साथ बेचन भी मर गया I इसके बाद सुगनी पर न जाने कितने लोगों ने डोरे डाले पर उसने किसी को घास नहीं डाली I बैंक में जमा मोटी रकम से वह कभी कुछ किसी की शादी में तो कभी किसी के दवा-इलाज में खर्च कर देती थी I अक्सर पूरी बस्ती की दावत भी हो जाती थी जिसमें अपनी बेटियों की उम्र की लड़कियों के साथ नशे में धुत्त सुगनी जमकर नाचती थी I

सुगनी ने मुझसे कुछ दोस्ती जम जाने के बाद एक दिन कहा,"बिट्टो, तुम मेरी कहानी लिखना I मैं तुम्हें जो-जो हुआ, सब बताऊँगी, लेकिन एक शर्त यह है कि तुम कोई सवाल बीच में मत पूछना I जितना मैं अपने मन से बताऊँगी उसीसे तुम्हें कहानी लिखनी होगी I मैंने जो किया वह क्यों किया, क्या सोचा, यह सब मुझसे तुम नहीं पूछोगी I और कहानी में नाम-जगह सब बदल देना ! अब बुढापे में मैं किसी क़ानूनी चक्कर-वक्कर में नहीं पड़ना चाहती I"

तो सुधी जनो ! यह है सुगनी की कहानी जो साढ़े चौदह वर्षों का समय बीत जाने के बाद पहली बार मैं आपको सुना रही हूँ !

(7मई, 2020)

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