यार ! आजकल ज़िंदगी में जितनी मायूसी और उदासी है, सन्नाटा और बकवास है, पाखण्ड और दुरंगापन है, उतना ही कविता में भी है !
लेकिन ये भी कोई बात हुई ! कविता को तो कम से कम ज़िंदगी से दो-चार कदम आगे रहना होगा ! निचाट अँधेरे और सन्नाटे भरे अँधेरे में भी जो कविता भविष्य के उजालों की जन्म-कुण्डली नहीं बाँच सकती, वह कविता कविता कहलाने के लायक नहीं !
जो अपनी कविता के स्वप्नों और कामनाओं के लिए मर सकता है, वही सच्चा कवि है ! बाक़ी तो पंसारी, क्लर्क, प्रॉपर्टी डीलर और कोठों के दलाल की श्रेणी के लोग होते हैं !
कविता जैसी ज़िंदगी के सपनों को फिर से ताज़ा करने के लिए ज़िंदगी जैसी उद्दाम आवेगवान, ऊर्जस्वी, स्वप्नदर्शी कविताएँ लिखने वाली एक नयी पीढी तैयार करनी होगी !
आयेंगे दिन कविताओं के निश्चय ही !
(28मई, 2020)
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