Friday, May 22, 2020


दुःख और मृत्यु की आवाज़ें मानो हड्डियों को छेद रही हैं I

बेबसी और लाचारगी भरा गुस्सा बस सुलग रहा है जैसे सड़क किनारे पड़े कूड़े में किसी ने आग लगा दी हो I

आपने पतझड़ के दिनों में किसी पहाडी शहर में नंगे खड़े उन पेड़ों को देखा होगा जिनकी डालियों पर यहाँ-वहाँ बची हुई कुछ पत्तियाँ बेचैनी, भय और अनिश्चित भविष्य की आशंका से काँपती रहती हैं I

खराब वक़्तों से उबरना हमें कुछ नए ढंग से सीखना होगा I ज़िंदा, धड़कती हुई चीज़ों तक पहुँचने के हमें नए रास्ते निकालने होंगे I

मनहूस "युग-पुरुषों" और शुष्क-ह्रदय सिद्धान्तकारों की शिकायतों, शापों, सलाहों और क़यामत की भविष्यवाणियों से किसी भी क़ीमत पर अपने को बचाना होगा I

सच कहूँ तो उदासी का निवास तो है आत्मा में इनदिनों, मद्धम बारिश और हलके कोहरे की तरह I और इस उदासी को चले भी जाना है, पर इसके आने और रुकने और फिर विदा हो जाने के निशान तो हमेशा बचे रहेंगे, इस समय के इतिहास के काव्यात्मक परिशिष्ट की तरह I

लोर्का ने कभी, कहीं, कहा था कि आदमी की मौत उसके सुस्त पैरों और खामोश जूतों में दुबकी होती है I मुझे भी लगता है, आवारगी गर्म और उद्विग्न दिलों की संजीवनी होती है I चलते रहना होगा, पैरों को भी और दिमाग़ को भी !

जी चाहता है, मज़दूरों के किसी कारवां में शामिल होकर पूरब की ओर चल दूँ बस कुछ रोटियाँ, कुछ कपडे और कविताओं की एक-दो पुस्तकें लेकर, उन्हीं यातनाओं, अत्याचारों, अनिश्चितताओं, दुर्घटनाओं और मौत के जोखिम से गुज़रते हुए I

लम्बे अभियानों में कभी-कभी बहुत नुकसान उठाने पड़ते हैं, लेकिन ज़िंदगी के नए रास्ते भी कई बार उसी दौरान फूट निकलते हैं I

(डायरी, 21 मई'2020)

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