दो लोग एक भागमभाग और अनिश्चितता भरी दुनिया में संघर्ष करते हुए प्रेम करने का अवसर पा जाते हैं, या, निकाल लेते हैं ! (यही वह समय होता है जब, बड़े-बूढों के मुताबिक़, अच्छे-अच्छे समझदार भी अपना गुड़-गोबर कर लेते हैं !)
फिर वे थोड़ी राहत की साँस लेते हैं और फिर उनमें से कोई एक अनंत-सी लगती भागदौड़ से कुछ देर अलग हटकर सुकून के कुछ पल मोल लेने की चाहत जाहिर करता है I दूसरा कुछ ठिठकता है, फिर पहले की प्यार-भरी आँखों में झाँकता है और बाज़ार की ओर चल देता है I कुछ सुख-आराम की खातिर कभी वह अपनी थोड़ी-सी बुद्धिमत्ता का, तो कभी थोड़े-से साहस का सौदा कर आता है I फिर वह धीरे-धीरे अपने ज़मीर का भी किस्तों में सौदा करना शुरू कर देता है I इस तरह वह धीरे-धीरे एक घामड़, कायर-दुनियादार और स्वार्थी-बेईमान इंसान बन जाता है I
फिर एक समय आता है जब दोनों अपनी आराम-कुर्सियों पर बैठे या सोफों पर अधलेटे, नौजवानों को अपने प्रेम के किस्से सुनाते हैं और मन ही मन ख़ुद ही आश्चर्य में डूब जाते हैं कि वे ऐसा कर कैसे पाए ! प्रेम उनके लिए एक आश्चर्य की वस्तु बन जाता है I
यूँ, उनके पास कुछ सुन्दर शब्द फिर भी बचे रहते हैं जिनके सहारे कभी वे प्रेम के, तो कभी संघर्ष के संस्मरण सुना लेते हैं और कभी-कभी नकली और 'समय बिताने के लिए करना है कुछ काम' टाइप सभाओं-सेमिनारों में आज की दुनिया के बारे में कुछ इसतरह समझाने की कोशिश करते हैं कि सभी श्रोता गण और बुरीतरह उलझ जाते हैं और उलझकर बहुत प्रसन्न और संतुष्ट हो जाते हैं I
ऐसे दम्पति इन कामों के बाद फिर अपने घर लौटते हैं जहाँ से उनके बच्चे पहले ही "व्यवस्थित" होकर दूर चले गए होते हैं ! दोनों चुपचाप ड्राइंग रूम में बैठ जाते हैं ! रोशनी के बावजूद वे अपने को डर और सन्नाटा भरे गहराते अन्धकार से घिरा हुआ पाते हैं I
फिर दोनों एक साथ महसूस करते हैं कि इस अँधेरे का बड़ा हिस्सा तो उन्होंने खुद ही इकट्ठा किया है ! पर वे चुप बैठे रहते हैं I वे एक-दूसरे से कोई बात नहीं करते I इन विषयों पर संवाद के लिए उनके पास कोई भाषा नहीं होती I
(22मई, 2020)
No comments:
Post a Comment