Thursday, May 21, 2020


इतिहासकार ए.एल. बाशम की सुप्रसिद्ध इतिहास-पुस्तक 1954 में आयी थी, 'द वंडर दैट वाज़ इण्डिया!'

लेकिन भारत कई बार यहाँ रहने वाले लोगों को भी एक 'आश्चर्य' लगता है! यहाँ कुछ भी हो सकता है ! जैसे आपको दिल्ली की एक दिलचस्प बात बताऊँ ! एक समाचार एजेंसी के पत्रकारों ने अपनी हाउसिंग सोसाइटी बनाकर वसुंधरा (गाज़ियाबाद) में अपार्टमेंट्स बनवाये ! रहवासियों में अधिकांश अपने को वामपंथी, सेक्युलर, प्रगतिशील मानते थे ! फ्लैट्स तैयार होने के बाद, जितने वामपंथी थे, उन सभी ने बाकायदे पंडित बुलाकर पीली धोती पहनकर पत्नी के साथ पीढ़े पर बैठकर पूजा-पाठ करके गृह-प्रवेश किया I उसी सोसाइटी में उनलोगों का एक और सहकर्मी था, जो घोर दक्षिणपंथी था I उसने गृह-प्रवेश के दिन अपने घर दोस्तों की दारू-पार्टी रखी थी ! वह अपने सहकर्मी वाम बुद्धिजीवियों के दुरंगेपन पर खूब हँसता था !

एक वामपंथी मित्र थे ! कुल-गोत्र आदि मिलान कर चार साल से लड़की की शादी ढूँढ रहे थे I इसी बीच लड़की ने कॉलोनी के ही एक दूसरी जाति के लडके से प्रेम कर लिया I फिर क्या था, उन्होंने कमरे में बंद करके इतना पीटा कि लड़की का एक हाथ टूट गया ! और आगे सुनिए ! उन्हें लड़की के प्रेम करने में आपत्ति नहीं थी I उनका कहना था कि लड़की ने कोई सजातीय लड़का क्यों नहीं पटाया ! तब लड़की को प्रेम करने की आज़ादी देने के नाते 'प्रगतिशील' का सर्टिफिकेट भी मिल जाता, दहेज़ भी बच जाता और बिरादरी भी खुश रहती ! उनको लगता था कि उनकी लड़की का दिमाग़ खराब करने में मेरा महत्वपूर्ण योगदान है (किसी हद तक वह सही ही सोचते थे)I इसलिए उन्होंने मुझसे बोलचाल तक बंद कर दी !

एक वामपंथी लेखक जब हमलोगों से बात करते थे तो काफी जोश में आ जाते थे I अक्सर उनकी शिकायत रहती थी कि हमलोग क्रांति की तैयारी के काम में काफी ढिलाई और सुस्ती बरत रहे हैं और कि हमें देशव्यापी बगावत के लिए एकदम जान लड़ा देना चाहिए ! उनकी पत्नी बड़ी शालीन और चुप रहने वाली महिला थीं ! भौतिक शास्त्र से एम.एस-सी.. थीं, पर गृहिणी धर्म में खपी हुई थीं ! हमेशा एक स्मित मुस्कान के साथ चुपचाप पति की बातें सुनती रहती थीं !

एक दिन सहसा वह तेज़ स्वर में पति को रोकते हुए बोल पड़ीं,"चुप रहो जी ! बस इन बच्चों के आते ही शुरू हो जाते हो और नसीहतों की झड़ी लगा देते हो ! तुम खुद क्या करते हो ! अपने ब्राह्मण विभागाध्यक्ष के सामने एकदम ब्राह्मण हो जाते हो, तरक्की के लिए दुम हिलाते हो, झोला ढोते हो, मंगलवार को हनुमानजी का व्रत रहते हो, पैसे देकर किताब छपवाते हो और पैसे देकर समीक्षा लिखवाते हो, पूरा टाइम तीन-तिकड़म और गुटबाजी में खर्च करते हो, जिस उम्र के लड़कों-लड़कियों को क्रान्ति करने के लिए ललकार रहे हो, उसी उम्र के अपने बेटे को आई.ए.एस. की तैयारी के लिए दिल्ली में सबसे मंहगी कोचिंग ज्वाइन करा रखा है, तुम्हारी बेटी से जो लड़का प्रेम करता था, उसके हाथ-पैर भाड़े के गुंडों से तुड़वा दिए !"

फिर थोड़ा रुककर बोलीं,"अरे, मैं तो तुम्हारी सारी क्रांतिकारिता देख चुकी हूँ ! एक बार शिक्षकों और छात्रों का कोई आन्दोलन चल रहा था और गिरफ्तारियाँ हो रहीं थीं तो फ़्लू होने का बहाना करके तुम घर में दुबके हुए थे ! लेकिन थाने के दारोगा का फोन क्या आया कि 'कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो' और गोर्की के उपन्यास वगैरह सब बटोरकर ईंट से बाँधकर पीछे के नाले में फेंक आये थे ! उस रात पुलिस के छापे के डर से तुम्हे सचमुच एक सौ दो डिग्री बुखार हो गया था ! गाँव जाते हो तो दलित जाति के बनिहारों को 20 फुट दूर ज़मीन पर बैठाते हो और 'पालागी पंडित देवता' सुनकर खुश होते हो ! खेत भाड़े पर उठाकर उसकी भी आमदनी लेते हो और बनते हो कम्युनिस्ट ! अरे पंडीजी ! तुम जैसे कम्युनिस्ट जबतक रहेंगे, भारत में गरीबों का कम्युनिज्म पर भरोसा नहीं जमेगा ! तुम्हारे जैसे लोग अगर कम्युनिज्म का पीछा छोड़ दें तो शायद जनता का कुछ अला-भला हो जाए !"

फिर वह हमलोगों की ओर मुखातिब हुई,"और तुमलोग ? तुमलोग ऐसे आदमी के पास बैठकर अपना टाइम क्यों खोटा करते हो ? इस इंसान के पास न ज्ञान है, न ईमान है ! आजतक मैंने इसे कोई गंभीर पढाई करते नहीं देखा है ! इन विद्वान् महोदय से ज्यादा मार्क्सवाद और साहित्य तो मैं जानती हूँ, पर खाना बनाने, बच्चे पालने और इन पंडीजी की सेवा करने में ही ज़िंदगी कट गयी I खैर, गलती मेरी भी तो है ! हम औरतें माँ-बाप की नाक और ज़माने की परवाह करते हुए अपने को ख़तम कर देती हैं !"

ड्राइंग रूम में एकदम सन्नाटा पसर गया ! लेखक महोदय जड़वत बैठे हुए थे ! मौक़े की नज़ाक़त भाँपते हुए हमलोगों ने भी वहाँ से निकल लेने में ही भलाई समझी !

(19मई, 2020)

No comments:

Post a Comment