Thursday, May 21, 2020


मेरे पास तो एक वृहद् उपन्यास का प्लाट था, पर लगातार लिखने का समय तो कभी मिलेगा नहीं ! और थोड़ा-थोड़ा लिखते रहने में बरसों समय लग जाएगा ! उधर भक्त, अंधभक्त और अंडभक्त लगातार संदेसा भिजवा रहे हैं कि जल्दी से जल्दी वे मुझे गौरी लंकेश, कलबुर्गी, दाभोलकर, पानसारे के पास पहुँचा देंगे !

कोई बात नहीं ! जो उनका काम है वो करेंगे और जो मेरा काम है मैं करती रहूँगी ! पर उपन्यास लिखने में मैं इसीलिये हाथ नहीं लगा रही हूँ कि कहीं भक्त अपने इरादों में कामयाब हो जाएँ तो मेरा शानदार शाहकार अधूरा ही रह जाएगा I इस अफ़सोस के साथ मरने से तो यही अच्छा है कि उपन्यास लिखने का इरादा ही छोड़ दूँ ! ज़िंदगी, सपने, इरादे और मंसूबे तो अधूरे छूट ही जाते हैं, और वही बेहतर होता है, पर कोई रचना अधूरी छोड़कर अनचाहे अगर मरना पड़े तो शायद बहुत तक़लीफ़ होगी !

इसीलिये, मेरी न लिखी जाने वाली महा-औपन्यासिक कृति के जो फुटकल सैकड़ों दिलचस्प क़िरदार हैं, उनके किस्से मैं बीच-बीच में सुनाती रहती हूँ !

वैसे भी हिन्दी के पाठक बड़े उपन्यास तो पढ़ते नहीं ! उनमें तो एक लम्बी टिप्पणी पढ़ने तक का धीरज नहीं होता I

तो चलिए, जबतक ज़िंदगी है, कुछ दिलचस्प, कुछ त्रासद, कुछ रहस्य और जादू से भरे हुए और कुछ एक साथ उदास और खुश कर देने वाले किस्से ही आपको सुनाती रहूँगी !

(19मई, 2020)

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