Wednesday, May 20, 2020


"यार, ये जो वो लोग हैं न, जिनके पास कम से कम एक दो बेड रूम का फ्लैट, कुछ बचत, कुछ निवेश, कुछ बीमा, कुछ गहने, एक अदद ठीक-ठाक नौकरी , एक चौपहिया और एक दुपहिया है; माँ कस्सम ! ये बड़ी कुत्ती चीज़ हैं ! बड्डे वाले हरामी और दोगले हैं स्साले ! इनको गरीबों से इत्ती भर भी हमदर्दी नहीं है ! एकदम कीड़ा माफिक समझते हैं, भिखमंगा समझते हैं हमलोगों को ! कभी अगर रहम भी करते हैं तो अपना सर ऊँचा करने खातिर ! कस्सम से, मुझे तो इन ढोंगी कुत्तों से बड़ी नफ़रत होती है !"

मैं जहाँ पहले रहती थी, उस मोहल्ले का नेपाली चौकीदार रात में सामने चबूतरे पर बैठकर जैसे ही देसी के दो पेग हलक के नीचे उतारता था, वैसे ही उसकी दार्शनिक और राजनीतिक चेतना मुखर हो जाती थी ! ऊपर का संवाद उसी का है जो वह अपने दोस्त कालू कुत्ते से कह रहा था !

(17मई, 2020)

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