Thursday, May 14, 2020



यह शब्द-धुन्धुकारी हिन्दी के बहुतेरे शब्दों को कलंकित और अशुभ बना चुका है, उनका अर्थ बदल चुका है, अवमूल्यन कर चुका है! इसका नया शिकार बनने वाला शब्द है,"आत्मनिर्भरता!"

एक नर-संहारक यदि समाज में प्रतिष्ठित और शक्तिशाली हो जाए, और उसके पीछे एक विचारहीन उन्मादी भक्तों का सैलाब उमड़ रहा हो और उसके पास एक वर्चस्वशाली प्रचार-तंत्र हो; तो वह मनुष्यों के अतिरिक्त विचारों और भावनाओं का भी संहार करता है और भाषा को लाशों से पटे एक युद्ध के मैदान सरीखा, या एक सांय-सांय करते मरघट जैसा, बना देता है !

शब्दों को अर्थ-वंचित या अर्थ-विकृत करके अत्याचारी शासक लोगों से सोचने, सपना देखने और संवाद करने की क्षमता छीन लेने की कोशिश करता है, ताकि उसके प्राधिकार को कभी भी चुनौती न दी जा सके !

सभी तानाशाहों ने, सभी फासिस्टों ने, ऐसा करने की कोशिश की !

अन्ततोगत्वा, सभी विफल हुए !

(13मई, 2020)

*************




मैं तो बहुत परेशान हूँ !

मेरी गणित भयंकर रूप से कमजोर है I मुझे जितनी गिनती आती है, वो सारी की सारी तो मैंने इस शख्स के अपराधों, इसके द्वारा रचे गए नरसंहारों, कराई गयी हत्याओं, जासूसियों, घपलों, घोटालों, झूठों, लम्पटई के किस्सों, फ्रॉड, बेशर्मी और हर किस्म की मूर्खताओं की सूची बनाने में खर्च कर दी !

अब इसके नये कारनामों और कुकर्मों की गिनती कैसे करूँगी ? और अगर पुराने वाले 15 लाख में से या नये वाले 19 लाख करोड़ में से इत्ता-सा, इत्ताआआआआआ-सा भी मिल गया तो उसे गिनूँगी कैसे ?

(13मई, 2020)

*******************




भक्त सीढ़ियों से नीचे उतरने जा रहा था ! मैंने धिक्कारा,"एक मंजिल नीचे उतरने के लिए सीढ़ियों पर निर्भरता? आत्मनिर्भर बनो वत्स !"

भक्त जोश में आ गया ! फ़ौरन रेलिंग पर चढ़कर 'जय मोदी' बोलकर नीचे कूद गया I टाँग टूट गयी I प्लास्टर चढ़वाकर अपने बरामदे में बैठा है !

जब भी उसके घर के सामने से गुज़र रही हूँ, गालियाँ दे रहा है !

(13मई, 2020)




No comments:

Post a Comment