Thursday, April 09, 2020


असल बात यह है कि अगर आप अपनी वक़्ती हार को स्वीकारने से कतराते नहीं, बल्कि उसके कारणों पर सोचते हैं, अगर आप निराश होकर "व्यावहारिक" नागरिक नहीं बन जाते और अत्याचारियों और हत्यारों की सत्ता के साथ खुले या छिपे समझौते नहीं कर लेते, अगर आप इसी व्यवस्था में सुधार के लिए "संघर्ष" करने वाले एक उदारवादी-सुधारवादी, या नये-नये किताबी सिद्धांत गढ़ने वाले वजीफ़ाखोर बुद्धिजीवी नहीं बन जाते, अगर आप सुविधाजीवी, कैरियरवादी, छद्म-प्रगतिशील कवि-लेखक नहीं बन जाते, अगर आप क्रान्ति के विज्ञान के एक विनम्र-जिज्ञासु अध्येता और अनथक योद्धा बने रहते हैं, तो यक़ीन मानिए, आप हवा का रुख मोड़ सकते हैं !

हो सकता है, इसमें कुछ समय लगे I हो सकता है, इस दौरान आपको तमाम कठिनाइयों और असफलताओं का सामना करना पड़े I हो सकता है कि अपनी तमाम जद्दोजहद के नतीज़ों को देखने के लिए आप जीवित न रहें I पर ऐसा होना सुनिश्चित है !

जब हवा ठहरी हुई हो तो पंखों के बिना आप उड़ नहीं सकते ! आँधी में तो तिनके और पत्ते भी उड़ने लगते हैं ! समझ और साहस की असली परीक्षा तो इतिहास के कठिन, अंधकारमय दौरों में ही हुआ करती है !

(7अप्रैल, 2020)

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