पूरे देश से मिलने वाली खबरों से ज्यादातर लोग यह अंदाज़ लगा रहे हैं कि इससमय कम से कम तीन करोड़ से भी अधिक लोग अलग-अलग सड़कों पर अपने घरों की ओर जाती दूरियाँ नाप रहे हैं ! दूसरे करोड़ों लोग भूखे-प्यासे शहरों में अपनी झुग्गियों में क़ैद हैं और पुलिस के डंडों के डर से उन चन्द जगहों पर भी नहीं पहुँच पा रहे हैं जहाँ सरकार या स्वयंसेवियों की ओर से खाने का कोई इंतज़ाम किया गया है ! प्लेटफार्मों पर, बस अड्डों, पार्कों में, मंदिरों-मस्जिदों-गुरुद्वारों के बाहर, फ्लाईओवर्स के नीचे करोड़ों आबादी ठंसी पड़ी है और पुलिस वाले उन्हें दौड़ा रहे हैं !
कल उ.प्र. के तानाशाह कनफटा जोगी ने मज़दूरों को उनके घरों तक पहुँचाने के लिए 1000 बसों के इंतज़ाम की बात की थी ! आज रात आठ बजे तक दिल्ली के आनंद विहार और कोसंबी इलाके में कम से कम एक लाख मज़दूर ठंसे पड़े थे ! बीच-बीच में इक्का-दुक्का बसें आती थीं और लोग पागलों की तरह उनकी ओर लपकते थे ! अन्य राज्य सरकारें भी कुछ ऐसी घोषणायें कर रही हैं, पर ज़मीन पर हालात में कोई बदलाव नहीं दीख रहा है !इतनी बड़ी आबादी अचानक घरों की ओर जाने के लिए निकल पड़ी है कि सारी सरकारी कोशिशें अगर वास्तविक भी हों तो हालात नियंत्रण से बाहर हैं ! दिल्ली सरकार खाने-ठहराने का इंतज़ाम करके ज्यादा से ज्यादा मज़दूरों को रोकने की बात कर रही है, लेकिन सरकारी तंत्र से मज़दूरों का भरोसा इसक़दर उठ चुका है और भय और अनिश्चितता का ऐसा माहौल है कि मज़दूर किसी भी कीमत पर रुकना नहीं चाहते ! यही हालत कमोबेश सभी महानगरों और औद्योगिक केन्द्रों की है ! मज़दूर सैकड़ों और हज़ारों मील तक चलने का जोखिम लेकर पैदल घरों की ओर निकल पड़े हैं ! एक मज़दूर ने दिल्ली से घर की ओर जाते हुए आगरा तक पहुँचकर दम तोड़ दिया ! महाराष्ट्र में सड़क किनारे सुस्ताते मज़दूरों को एक टेम्पो ने कुचल दिया जिसमें पाँच मज़दूर घायल हो गए और चार की मौत हो गयी ! गुजरात में भी इसीतरह एक राजमार्ग पर एक गाड़ी ने मज़दूरों को कुचल दिया जिसमें पाँच लोग मरे गए ! इनमें दो बच्चे भी थे ! अबतक पैदल घरों की ओर यात्रा करते 17 मज़दूरों की रास्ते में ही मौत की खबर मिल रही है !
कोई भी अनुमान लगा सकता है कि अगले चार-पाँच दिनों के भीतर स्थिति कितनी भयावह होने वाली है ! सरकारी मशीनरी पूरी तरह फ़ेल हो चुकी है ! और असंवेदनशीलता का आलम यह है कि एक मंत्री ऑनलाइन अन्त्याक्षरी खेल रही हैं, दूसरा मंत्री घर पर सोफे पर पसरा रामायण सीरियल देखने की तस्वीर पोस्ट कर रहा है और गाज़ियाबाद का भाजपा विधायक भीड़ को कण्ट्रोल करने के लिए पुलिस से मज़दूरों पर गोली चलाने के लिए कह रहा है ! फासिस्ट कितने क्रूर जन-संहारक होते हैं और ग़रीबों-मज़दूरों से कितनी नफ़रत करते हैं --अब शायद ढेरों भलेमानस लेकिन राजनीतिक रूप से मूर्ख मध्यवर्गीय नागरिकों को यह बात समझ आ जायेगी ! हाँ, मनोरोगी टाइप उन्मादी भक्तों को अभी भी कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा ! और उन उच्च कुलीन धनाढ्यों को कोई फर्क नहीं पड़ेगा जो गरीबों के बूते जीते हुए भी उनसे रोम-रोम से नफ़रत करते हैं और जिनके विद्रोहों की आशंका से ही उन्हें दस्त लग जाया करते हैं !
मोदी नामके इस क्रूर सनकी तानाशाह के महज एक तुगलकी फ़रमान ने करोड़ों लोगों को भुखमरी के मुँह में झोंक दिया है ! यह भुखमरी कोरोना से कई गुना बड़ा संकट बनकर सुरसा की तरह गरीबों के सामने मुँह बाए खड़ी है ! द. अफ़्रीका में लॉकडाउन के तीन दिनों पहले नागरिकों को बता दिया गया था और उन्हें तैयारी का पूरा मौक़ा दिया गया था ! इटली और अन्य यूरोपीय देशों में ही नहीं, द. कोरिया तक में यह काम इतने व्यवस्थित तरीके से किया गया कि कोई अफरा-तफरी नहीं मची ! कोरोना आज एशिया, अफ्रीका और लातिन अमेरिका के कई गरीब देशों में फ़ैल चुका है, लेकिन भारत जैसी तबाही और अफरा-तफरी कहीं भी देखने को नहीं मिली ! भारत के बाद अगर कहीं थोड़ी अराजकता देखी तो ब्राज़ील और अमेरिका में ! और यह इत्तेफाक नहीं है ! ट्रम्प और बोल्सेनारो भी काफ़ी हद तक मोदी जैसे ही मूर्ख और पागल तानाशाह हैं ! हिन्दुस्तान के हुक्मरानों का गरीबों के प्रति रवैय्या कितना अमानुषिक है, वह मात्र इस बात से समझा जा सकता है कि हवाई सेवा बंद होने की सूचना तो तीन दिनों पहले दी गयी, लेकिन 21 दिनों का लॉकडाउन मात्र चार घंटे पहले घोषित करके कर दिया गया ! इतना क्रूर तो शायद नीरो भी नहीं होता ! क्या मोदी और उसके सिपहसालारों को यह नहीं पता कि 40 करोड़ से भी अधिक आबादी रोज़ दिहाड़ी कमाती है तो दो जून की रोटी मुश्किल से खा पाती है ? कर्फ्यू की स्थिति में, जब सबकुछ बंद होगा तो वह आबादी क्या करेगी, कहाँ जायेगी ? और जब बसें-ट्रेनें भी बंद होंगी तो ये प्रवासी मज़दूर अपने गाँवों तक भी जाना चाहें तो कैसे जायेंगे ? तानाशाह मोदी की जनशत्रु मंडली के दिमाग़ में भी यह बात नहीं आनी थी और न ही उसके समर्थक उच्च-मध्यवर्गीय कुलीनों के भेजे में यह बात आनी थी कि जिस देश में, अलग-अलग आकलनों के हिसाब से 10 से 15 करोड़ आबादी बेघर है, वहाँ सभी लोगों से 21 दिनों तक घरों में बंद रहने की बात करना क्या एक गंदा-अश्लील मजाक नहीं है ?
मैं पहले भी इस बात को लिख चुकी हूँ कि अगर हुक्मरानों में नीयत और इच्छा-शक्ति होती तो कोरोना का मुकाबला करने लायक पर्याप्त संसाधन इस देश में मौजूद हैं ! सबसे पहला काम तो यह वांछनीय था कि सभी निजी अस्पतालों-नर्सिंग होमों-मेडिकल कॉलेजों का सरकार अधिग्रहण करके वहाँ कोरोना की जाँच, आइसोलेशन और कोरेंटाइन की व्यवस्था कर देती ! सभी बंद पड़े कॉलेजों , विश्वविद्यालयों, स्कूलों, होटलों, रिसॉर्ट्स आदि में आम आबादी के आवास और जाँच के आरजी प्रबंध किये जा सकते थे ! सभी मठों-महंतों-मंदिरों की अकूत संपदा, राजे-रजवाड़ों के ट्रस्टों की संपदा ज़ब्त करके तथा सभी पूँजीपतियों-व्यापारियों से उनकी पूँजी का एक सुनिश्चित प्रतिशत ज़ब्त करके, सभी मंत्रियों, सांसदों-विधायकों की कुछ महीनों का वेतन और भत्ते सरकारी खजाने में जमा करके, देश के सभी करोड़पतियों की संपत्ति का एक हिस्सा ज़ब्त करके तथा फालतू के रक्षा बजट में कम से कम दो-तिहाई की कटौती करके, न सिर्फ़ कोरोना की आपदा का सफलतापूर्वक मुकाबला करने के लिए ज़रूरी धन जुटाया जा सकता था, बल्कि देश की स्वास्थ्य एवं चिकित्सा की व्यवस्था में कुछ महत्वपूर्ण स्थायी सुधार भी किये जा सकते थे !
और मैं पूछती हूँ कि ऐसा क्यों नहीं किया जाना चाहिए ? क्या लोगों की जान से ज्यादा कीमती भी कोई चीज़ हो सकती है ? क्या देश की पूरी संपदा का निर्माण करने वाले आम मेहनतकश लोगों की ज़िंदगी की कोई कीमत नहीं होती ? लेकिन हम यह भी जानते हैं कि अगर संगठित जनमत का दबाव न हो तो एक फासिस्ट हुकूमत, या कोई भी बुर्जुआ सत्ता, ऐसे कुछ कदम भी नहीं उठायेगी ! बुर्जुआ जनवाद के तहत, सरकारें पूँजीपतियों की मैनेजिंग कमेटी होती हैं और जनता केवल संघर्ष करके ही उनसे कुछ सुधार, रियायत और हक़ हासिल कर सकती है ! और इसी प्रक्रिया में लोग यह भी समझने लगते हैं कि सवाल कुछ रियायतें या सुधार हासिल करने का ही नहीं है, बल्कि पूरे के पूरे सिस्टम को ही बदल देना होगा !
(29मार्च, 2020)
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