आज मैं आपको एक एकदम अलग ढंग का किस्सा सुनाती हूँ ! यह किस्सा भी एक वाक़या ही है, जैसे हर किस्सा एक वाक़या होता है चाहे आप उसे जानते हों या न जानते हों ! आजकल हो क्या रहा है कि अक्सर उनींदे से जागते हुए लोग अपने साथ तक घटी किसी घटना को एक किस्से की तरह याद करते हैं और दिन-रात सुने जाने वाले तरह-तरह के किस्सों पर यूँ यकीन करते हैं जैसे वे एकदम वास्तविक घटनाएँ हों ! अब इससे होता यह है कि आप उनसे ज़िंदगी में कुछ बदलाव लाने की बात करो तो उनको लगता है कि ये तो किस्सों की बातें हैं !
तो मैं उस दिलचस्प बात पर आती हूँ जो आपको बताना चाहती हूँ ! यह एक सपने की कहानी क्या है, उससे पैदा हुई दिमागी उलझनों के बारे में एक गुफ़्तगू है, यूँ समझ लीजिये !
आजकल मेरे सपनों में सारे कैरेक्टर्स उलट-पलट जा रहे हैं, उनकी भूमिकाएँ गड्डमड्ड हो जा रही हैं !
जैसेकि कल ही मैं सपना देख रही थी कि एक मगरमच्छ नदी किनारे चाय बेच रहा है ! वहाँ कोई रेलवे स्टेशन नहीं है ! एक बन्दर कहीं से परीक्षा देकर आया है, या शायद हिमालय से कोई गुह्य साधना करके आया है और चाय पी रहा है ! फिर बन्दर मगरमच्छ की पीठ पर बैठकर उसके घर जाता है और अपना सीना चीरकर दिल निकालकर मगरमच्छ की बीवी को दे देता है ! वह मगरमच्छ की बीवी का हाथ देर तक श्रद्धा, प्यार और कामातुरता से पकड़े रहता है ! मगरमच्छ बन्दर की पीठ पर प्यार से हाथ फेरता रहता है !
फिर एक जगह कॉलेजियम की मीटिंग चल रही है जिसमें कुछ भेड़िये और कुछ लकड़बग्घे बैठे हैं ! बिना दिल वाला बन्दर उनके सामने पेश होता है ! सभी उसका सीना फिर से चीरकर उसमें झाँक-झाँक कर देखते हैं और वहाँ दिल जैसी कोई चीज़ न पाकर इत्मीनान की साँस लेते हैं ! बन्दर को सर्वोच्च न्यायालय में जज बना दिया जाता है !
अब वह बन्दर दूसरे तमाम जज बंदरों को लेकर मगरमच्छ के ठीहे पर चाय पीने जाता है ! फिर वही कहानी दुहराई जाती है ! पारी-पारी से दोस्त बने बन्दर मगरमच्छ के घर जाते हैं ! कुछ खुशी-खुशी, कुछ भय से, कुछ लालच से अपना दिल श्रीमती मगरमच्छ को दे देते हैं ! फिर जल्दी ही उनकी तरक्की हो जाती है ! जो अपना दिल नहीं ही देते, उन्हें मगरमच्छ जब वापस लेकर लौटता है तो रास्ते में ही मारकर खा जाता है !
मगरमच्छ बहुत मक्कार और ताक़तवर है ! बन्दर ही नहीं, और भी बहुत से जानवर उसकी ताबेदारी करने लगे हैं ! पर कुछ नहीं भी करते हैं ! इस सपने में मैं भी जंगल की कोई जानवर हूँ या ओरिजिनल ही हूँ, मुझे ठीक से याद नहीं ! बस इतना याद है कि मगरमच्छ की पानी में और नदी किनारे कुछ दूरी तक ही चलती है ! ज़मीन पर वह तेज़ नहीं दौड़ सकता और दूर तक नहीं चल सकता ! इसीलिये, हम मगरमच्छ से सुरक्षित दूरी रखकर उसे चिढ़ाते रहते हैं, उसपर कंकड़ फेंकते हैं, कभी-कभी किसी लम्बे डंडे से कोंचते भी हैं ! इसपर तमाम बन्दर हमारे ऊपर खौखियाते हैं, दांत काटने दौड़ते हैं ! बंदरों से तो फिर भी हम निपट लेते हैं, कभी-कभी घायल भी हो जाते हैं ! हम कोशिश करते हैं कि मगरमच्छ को किसीतरह से गुस्से में पागल बनाकर नदी के किनारे से दूर तक अपने पीछे बहकाकर लाया जाए ! फिर तो सारा मामला ही निपट जाएगा ! बंदरों का क्या ! वे तो पेड़ों पर और ऊँचे पर जाकर बैठ जायेंगे और दांत निकालकर 'खों-खों' करते रहेंगे !
अब इस सपने में कौन क्या है, किसकी भूमिका क्या है, ठीक-ठीक पकड़ में नहीं आता ! वैसे भी, सपनों में शायद ज़िंदगी के सुसंगत रूपक और प्रतीक तो हुआ नहीं करते ! फिर भी इसमें हमारी ज़िंदगी और सोसाइटी की कोई बात तो है ! आपका क्या ख़याल है ! बस सोचियेगा ! कुछ बताने की कोशिश मत कीजिएगा ! सपनों का एकदम सटीक अर्थ ढूँढ़ना कविता का अर्थ बताने से भी अधिक मूर्खतापूर्ण क्रिया होता है !
(30मार्च, 2020)
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