Sunday, April 26, 2020

कोरोना काल में एक और किस्सा


चलिए, लॉकडाउन के दौरान के किस्सों की कड़ी में एक और किस्सा सुनाती हूँ !

यूँ तो आजकल कोई किसी का बहुत अन्तरंग नहीं हुआ करता, लेकिन फिर भी सापेक्षिक तौर पर आप उन दोनों को अन्तरंग मित्र कह सकते हैं ! दोनों आई.आई.एम.सी. में पत्रकारिता की पढाई करते हुए मित्र बने थे I एक बर्दवान से, दूसरा मिथिला से I उनकी मित्रता को पच्चीस वर्ष होने को आ रहे थे I कई अखबारों-पत्रिकाओं में काम करने के बाद अब दो अलग-अलग समाचार-चैनलों में काम कर रहे थे I बंगाली बाबू एक अंग्रेज़ी चैनल में और मिथिला के विद्रोही पंडित जी एक हिन्दी चैनल में I

दोनों मित्र छात्र जीवन में मोटा-मोटी वामपंथी विचारों के रहे थे, कलात्मक रुझान रखते थे और बौद्धिक अध्ययन-विमर्श में भी गहरी रुचि थी I दोनों ने प्रेम विवाह किये थे I दोनों की पत्नियाँ भी बौद्धिक जगत में कुछ करना चाहती थीं ! पर घर-गृहस्थी और बड़े होते बाल-बच्चों की शाश्वत बाधा ने पैरों में बेड़ियाँ डाल दीं ! दोनों दम्पतियों की दो-दो संतानें थीं -- एक बेटा, एक बेटी I दोनों गाज़ियाबाद की दिल्ली सीमा से सटे वसुंधरा के इलाके में एक ही सोसाइटी में रहते थे ! उसमें ज्यादातर पत्रकार और मीडियाकर्मी ही रहते थे I आसपास के ज्यादा अपार्टमेंट्स भी ऐसे ही थे ! सुविधा के लिए, हम बंगाली बाबू को चटर्जी मोशाय कहेंगे और मिथिलावासी को झा जी, क्योंकि मैं दोनों की पहचान जाहिर नहीं करना चाहती हूँ !

झा जी की पत्नी घर से ही साहित्य-कला-स्त्री जीवन आदि-आदि पर एक यूट्यूब चैनल चलाती हैं और श्रीमती चटर्जी स्त्रियों की एक पत्रिका में कभी-कभार लिखने के अलावा ऑनलाइन ट्रांसलेशन का काम करती हैं ! दोनों मित्रों के पास गाड़ियाँ हैं I पर घर से दोनों कभी गाड़ी से दफ्तर जाते हैं, तो कभी गाड़ी वैशाली मेट्रो स्टेशन पर पार्क करके मेट्रो से जाते हैं I ज्यादातर छुट्टियों के दिन दोनों परिवारों का मॉल-मल्टीप्लेक्स भ्रमण-रंजन आदि साथ ही हुआ करता है I दोनों मित्र पचास अभी नहीं पहुँचे हैं पर एक के बाल आधे सफ़ेद हो चुके हैं और एक के आधे झड़ चुके हैं ! तोंद, एसिडिटी-गैस, ब्लड-प्रेशर और अनिद्रा की समस्या दोनों को है I एक को बवासीर है और दूसरे को गठिया है I पत्नियाँ प्यार और शादी के ज़माने की तुलना में अपना वज़न ड्योढ़ा या उससे भी कुछ अधिक बढ़ा चुकी हैं ! गैस की समस्या उनको भी है और वह समस्या समय मिलते ही स्वयं को मुखर रूप से अभिव्यक्त करती रहती है I दोनों हर हफ्ते दो-दो घंटे पार्लर में खर्च करती हैं ! मौक़ा मिलते ही सो जाना दोनों का प्रिय शगल है I तो इस प्रकार दो सुखी परिवार वसुंधरा के दो अपार्टमेंट्स में जीवन व्यतीत करते हैं I अब आगे की कथा सुनिए !

प्यार-रोमांस तो दोनों दम्पतियों के जीवन से कभी का तिरोहित हो चुका I पहले कभी-कभार जीवन में वसंत का कुछ आभास पखवारे-महीने के अंतराल पर हो जाया करता था I अब तो वह भी नहीं होता I हाँ, महीने-दो महीने में पति-पत्नी का शरीर-धर्म निभाकर दोनों दम्पति खुद को कोई अमूर्त-सा संतोष दे लिया करते थे I चटर्जी बाबू और झा जी के चैनल एकदम सरकारी भोंपू माने जाते थे I किसी ज़माने में हेगेल, कांट, मार्क्स, रवीन्द्र संगीत, नज़रुल गीति, जैज़ संगीत, पॉल रोबसन, बॉब मारले , वाल्ट व्हिटमन, शेली, पाब्लो नेरूदा, नाजिम हिकमत, मयाकोव्स्की आदि की दुनिया में विचरण करने वाले मित्रों को सरकारी चाटुकारिता के तमाम कार्यक्रमों के अतिरिक्त व्रतों-त्योहारों के महत्व पर और किसी भुतहा किले या बावड़ी के रहस्य तक पर प्रोग्राम करने पड़ते थे I सामने और कोई भी विकल्प नहीं था ! अगर कोई विकल्प था तो वह भी ऐसा ही था, या इससे भी बदतर था I ज़िम्मेदारियाँ थीं और जिस ज़िंदगी के आदी हो चुके थे, अब उसे छोड़ भी नहीं सकते थे I दोनों ही मित्र अनिद्रा और डिप्रेशन की दवाएँ ले रहे थे I दोनों का दारू पीना भी बढ़ता जा रहा था I अक्सर साथ बैठकर पीते थे, पर अकेले भी बैठ जाते थे I अभी भी कभी-कभी ठीक से चढ़ जाने के बाद यायावरी करने, उपन्यास लिखने या कविताओं की दुनिया में कुछ नया कर डालने या एकदम नयी ज़मीन तोड़ती फिल्म बनाने के अपने पुराने सपनों पर बातें निकल पड़ती थीं, जिनका अंत एक लम्बी उदासी भरी चुप्पी या रुलाई फूट पड़ने में होता था I जब दारू-सत्र का यह चरण आता था तो दोनों की पत्नियाँ बस एकदम भावहीन चेहरा लिए अपने-अपने पतियों को सम्हालने में लग जाती थीं I

एक दिन की बात है I दोपहर का समय था I झा जी और चटर्जी मोशाय दफ्तर में थे I बच्चे स्कूल से लौटकर खाना-वाना खाकर अपने-अपने कमरों में आराम कर रहे थे I इतने में श्रीमती चटर्जी आकर श्रीमती झा के पास बैठ गयीं I उनकी आँखें कुछ लाल थीं और पपोटे सूजे हुए थे I रुँधे गले से वह बोलीं,"कामिनी, मैं तो बेहद परेशान हूँ I इनकी हालत दिन पर दिन कुछ ज्यादा ही गड़बड़ होती जा रही है I लगता है, किसी अच्छे साइकियाट्रिस्ट को दिखाना पड़ेगा I कभी-कभी बहुत ऊटपटांग हरक़तें करने लग रहे हैं I कल की ही बात तुम्हें बताती हूँ I इनकेऑफिस में पार्टी थी चैनल की पच्चीसवीं सालगिरह की I कई मंत्री, फिल्म स्टार, कॉर्पोरेट वर्ल्ड के लोग वगैरह आये हुए थे I रात को हमलोगों ने टैक्सी ली I गाड़ी वैशाली मेट्रो पर ही छोड़कर गए थे I रस्ते में टैक्सी का टायर पंक्चर हो गया और ड्राइवर उसे बदलने लगा I पास में एक गहरे नाले की सफाई का काम चल रहा था I कुछ सफाईकर्मी पास में खड़े बात कर रहे थे I फिर ये लडखडाते हुए उनके पास गए और एक से बीडी माँगकर पीने लगे I फिर जोर-जोर से चिल्लाते हुए सफाईकर्मियों से बोलने लगे कि 'ये गंदा नाला से बड़ा-बड़ा गंदा नाला चारो ओर बह रहा है, तुमलोग मर भी जाओ तो उसे साफ़ नहीं कर सकते I वो गन्दगी का नदी है I उसमें तरह-तरह का जीव-जंतु रहता है I तुम अगर उस गन्दगी को साफ़ करेगा तो वो सब तुमको खा जाएगा I हम भी उसी गन्दगी में रहने वाला एक कीड़ा है ! देखो, देखो मुझे देखो !' बड़ी मुश्किल से ड्राइवर की मदद से सम्हालकर मैं इनको घर ला पाई I कभी-कभी तो शराब न भी पिए हों तब भी उल्टी-सीधी, बिना किसी तारतम्य की बातें करने लगते हैं !" कहते-कहते श्रीमती चटर्जी रो पड़ीं I

श्रीमती झा ने उन्हें सम्हालने की कोई कोशिश नहीं की I थोड़ी देर के सन्नाटे के बाद वह बोलीं," इरा, मैं तो तुमसे अपनी समस्या डिस्कस करने के लिए कई दिनों से सोच रही थी I झा जी इधर कुछ दिनों से एकदम अजीब व्यवहार कर रहे हैं Iउनको लगता है कि उनके बदन से कुत्तों जैसी बदबू आती रहती है I रात में उठकर कई-कई बार नहाने जाते हैं I बेड पर सोते-सोते उठकर सोफे पर सो जाते हैं I कहते हैं,'मेरी कुत्ते जैसी बदबू से तुम्हें नींद नहीं आयेगी I' कई-कई किस्म के डियो और परफ्यूम खरीद लाये हैं I कभी-कभी सोते-सोते उठकर कुत्ते की तरह बैठ जाते हैं और जीभ निकालकर हाँफने लगते हैं I"

दोनों सहेलियों के बीच एक लंबा और गहरा मौन पसर गया I फिर दोनों को ही लगा कि धीरे-धीरे झा जी और चटर्जी मोशाय अपनी ज़िंदगी के हालात के आदी हो जायेंगे, क्योंकि उनके पास और कोई चारा भी तो नहीं है I दोनों का मानना था कि नौजवानी में देखे हुए सपने अगर दोनों मित्रों का पीछा करना छोड़ देंगे तो धीरे-धीरे उन्हें यह लगना बंद हो जाएगा कि वे गंदे नाले में रहने वाला कीड़ा हैं या कुत्ता हैं ! दोनों सहेलियों को वर्त्तमान से कोई शिकायत नहीं थी ! शिकायत अगर थी तो अतीत में देखे गए उन सपनों से थी जो अभी भी कभी-कभार पीछा करने लगते थे !

(26अप्रैल, 2020)


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