अत्याचारी-अनाचारी सत्ताधारी आलोचना सहन नहीं करता !
विरोध को तो वह अक्षम्य अपराध समझता है !
फिर मतभेद तक उसके लिए असहनीय हो जाता है !
फिर वह प्रश्न उठाने वालों को अपना घोर शत्रु मानकर उन्हें कुचलने में लग जाता है !
फिर कहीं भी बात करते लोगों को देखकर अत्याचारी शासक को लगता है कि लोग उसके ख़िलाफ़ साज़िश कर रहे हैं !
फिर लोगों की चुप्पी को भी वह अपने ख़िलाफ़ साज़िश समझने लगता है ! सन्नाटा उसे भयाक्रांत करने लगता है !
हर अत्याचारी अपने को सर्व-शक्तिमान दिखलाता है, पर उसकी आत्मा एक घिरे हुए छछूंदर की तरह भय से थरथर काँपती रहती है !
अत्याचारी शासक दिन-रात अपनी जय-जयकार सुनना चाहता है और फिर भी वह निश्चिन्त नहीं हो पाता ! अभय नहीं हो पाता !
अत्याचारी शासक अपने तमाम ख़ास लोगों के बीच नितांत अकेला होता है ! वह किसी पर भरोसा नहीं करता !
अत्याचारी शासक संदेह और भय में जीता हुआ ज्यादा से ज्यादा अमानुष होता जाता है ! उसे सोचने वाले मनुष्यों पर नहीं, रक्तपिपासु ज़ोम्बियों पर अधिक भरोसा होता है !
अत्याचारी शासक अपनी मौत से पहले अपने भय के हाथों कई बार मारा जाता है ! वह अकेलेपन की क़ैद-तनहाई में ताउम्र पड़ा रहता है !
अत्याचारी शासकों का पतन बहुत भयंकर ढंग से होता रहा है ! जो धरती का ख़ुदा बनना चाहते थे, वे कई बार सड़कों पर पागल कुत्तों की तरह खदेड़े गए और चौराहों पर उलटा टाँग दिए गए !
कई बार उन्होंने आत्महत्या कर लिया !
कई बार वे जेलों में सड़ते हुए मरे !
कई बार वे अपने संरक्षक किसी साम्राज्यवादी देश के किसी शहर में बूढ़े छछून्दर की तरह बिलों में दुबके हुए जैसे-तैसे बुढ़ापा काटते हुए मरे !
इतिहास में आजतक एक भी ऐसा अत्याचारी शासक नहीं हुआ जिसे लोगों ने प्यार से याद किया हो, उसके स्मारक बनवाये हों ! अत्याचारियों की क़ब्रों पर भी लोग जूते मारते हैं और थूकते हैं !
(23अप्रैल, 2020)
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