(एक साथी ने राय दी कि मुझे देर रात तक जागकर काम करने के बजाय थोड़ा आराम भी करना चाहिए और जल्दी सो जाना चाहिए ! मैंने उन्हें जो उत्तर दिया, उसे एक स्वतंत्र टिप्पणी के रूप में पोस्ट करना आज ज्यादा उचित और उपयोगी लगा, ताकि ज्यादा लोगों तक ये ऊधमी-उत्पाती विचार पहुँच सकें !)
रात को जल्दी सोने वाले क्या आसमान के तारे तोड़ लाते हैं ? या चाँद की सैर कर आते हैं ? अगर आप दिन भर मज़दूर की तरह नहीं खटते हैं तो जल्दी सोकर चिंतन-मनन के बेशक़ीमती समय को खोते हैं !
कुछ लोग सेहतमंद रहने के लिए जल्दी सोते और जल्दी उठते हैं, पर सेहतमंद रहकर वे करते क्या है ? अगर सिर्फ़ नौकरी करना, बचत करना, बच्चे पालना, साहबों की जी-हुजूरी करना, बाज़ार से मोलतोल करके तरकारी, दूध,आलआउट,केले और दवाएँ खरीदते हुए घर आना, किस्मत को झींकते और नौजवानों को कोसते हुए समय बिताना, ज़िन्दगी में घूमने के नाम पर एकाधी बार वैष्णो देवी, गंगासागर या हरिद्वार हो आना, गैस-कब्ज़-एसिडिटी-बवासीर वगैरा का इलाज कराते रहना ... आदि-आदि ही ज़िन्दगी है, और फिर दुनिया से तमाम शिकायतें पाले हुए एक दिन मर ही जाना है तो फिर ऐसे लोग जल्दी मर क्यों नहीं जाते ? इतनी फीकी, बेरौनक, मनहूस ज़िन्दगी को लोग घिसटते हुए क्यों ढोते रहते हैं ? वे जल्दी से मरकर माहौल की मनहूसी थोड़ा कम कर देते और इस धकापेल की ज़िन्दगी में ज़िन्दादिल लोगों के लिए कुछ जगह खाली कर देते, तो क्या यह बेहतर नहीं होता ?
निशाचर अपने ढंग से ज़िन्दगी को जीते हैं ! रात की दुनिया उन भाँति-भाँति के प्राणियों की होती है जो दिन के उजाले से बहिष्कृत होते हैं !
(17अप्रैल, 2020)
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