Sunday, April 19, 2020

विषाणु विज्ञान यानी वायरोलॉजी के क्षेत्र में अपने शोध के बारे में एक रहस्योद्घाटन


आज एक रहस्योद्घाटन कर रही हूँ ! इसे जानकर मेरे सभी परिचित और कामरेड डॉक्टर तो ईर्ष्या से जल-भुन ही जायेंगे ! या कम से कम चकित तो हो ही जायेंगे कि 'भई वाह !'

जैव-रसायन या चिकित्सा शास्त्र की कोई औपचारिक शिक्षा न होने के बावजूद, चरक और सुश्रुत जैसे आयुर्वेदाचार्यों, ग्रीस के पुराने डॉक्टरों और ईरान-तूरान के हकीमों और मिस्र के कीमियागीरों से प्रेरणा लेकर मैं तरह-तरह के जीवाणुओं-विषाणुओं पर लम्बे समय से काम करती रही हूँ ! इसके लिए मैंने एक गुप्त प्रयोगशाला भी बना रखी है और ढेरों खरगोश, चूहे, चमगादड़, छछूंदर, तिलचट्टे, छिपकिली, झींगुर आदि भी प्रयोग के लिए पाल रखे हैं !

वैसे तो कोरोना वायरस परिवार के बारे में जानकारी मिलने से भी काफी पहले से मेरा शोध जारी था और कई महत्वपूर्ण नतीजे भी मैं हासिल कर चुकी थी ! काफी पहले मैंने नोटिस किया कि मेरे कुछ चमगादड़ों का रंग धीरे-धीरे बदलता जा रहा है और वे धीरे-धीरे नारंगी या भगवा रंग के होते जा रहे हैं ! बस उनकी टांगें खाकी रंग की रह जाती हैं और सिर काला हो जाता है -- काली टोपी के माफिक ! ये चमगादड़ चमगादड़ों के पिंजरे में दिन-रात उत्पात मचाये रहते थे ! जिस चमगादड़ को भी वे काट लेते थे, वे चन्द दिनों में ही भगवा रंग के हो गए ! हालत यह थी कि धीरे-धीरे सभी चमगादड़ भगवा रंग के हो गए !

एक दिन तो मेरी प्रयोगशाला के टेबल पर एक ऐसे चमगादड़ ने वहीं पड़े एक खरगोश के सिर में चोंच मार दिया ! खरगोश घायल हो गया ! कुछ दिनों बाद मैंने देखा कि उस खरगोश का रंग भी भगवा हो गया ! वह स्वभाव से भी झगड़ालू और उत्पाती होता जा रहा था ! एहतियातन मैंने उसे एक अलग पिंजरे में रख दिया ! अकेले भी वह खरगोश नाखून निकाले पंजे लहराते हुए, दांत निकाल-निकालकर दो दिनों तक चीखता रहा, फिर मर गया !

बहरहाल, प्रयोगों के एक लम्बे सिलसिले के बाद मैंने विषाणुओं के एक पूरे परिवार को खोज निकाला ! इसे मैंने फिलहाल 'फ़ासिस्टोना इंडो-इटालियाना' नाम दिया है ! विषाणुओं का यह परिवार कई लक्षणों वाली बीमारियों को जन्म दे रहा है ! होता यह है कि अगर भगवा रंग का चमगादड़ आपके सिर में चोंच से ठोंक दे तो आपका दिमाग़ संक्रमित हो जाता है ! आपके दिमाग़ का विचार, तर्क वाला हिस्सा और भावनात्मक संवेदना वाला हिस्सा -- दोनों धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त होते चले जाते हैं ! आप फिर लगातार क्रोध और उन्माद की अवस्था में रहते हैं ! सड़क पर चलते हुए आप हमेशा पीछे की ओर मुँह करके आगे की ओर चलते हैं ! आपको लगता रहता है कि जो भी आपसे भिन्न तरीके से रहते और आचरण करते हैं, वे आपके शत्रु हैं और आप उनका नर-संहार तक करने को उद्यत रहते हैं ! समस्या यह होती है कि इस रोग से संक्रमित व्यक्ति में रोग के लक्षण हरदम नहीं दीखते ! आम तौर पर वह एक विनम्र-शालीन नागरिक दिखाई देता है ! पर ऐसी स्थिति में भी उसकी बातों से अनुमान लगाया जा सकता है कि उसका मस्तिष्क 'फासिस्टोना इंडो-इटालियाना' विषाणु से संक्रमित हो चुका है ! इस रोग से ग्रसित व्यक्ति विज्ञान, तर्क और इतिहास की बातों से आग-बबूला हो जाता है ! उसे हमेशा अपना देश और अपना धर्म खतरे में दिखाई देता है ! उसे हमेशा अतीत स्वर्णिम, वर्त्तमान दुर्दशाग्रस्त और भविष्य अंधकारमय दिखाई देता है और लगता है कि मनुष्यता को बचाने का एक ही रास्ता है कि वह अतीत की और वापस लौट जाए !

रूस और यूरोप के मुख्य धारा से बहिष्कृत कुछ जीव-वैज्ञानिकों के निजी संग्रहों से प्राप्त कुछ शोध-पत्र और पुस्तकें पढ़ने के बाद मुझे पता चला है कि पिछली शताब्दी के तीसरे दशक से लेकर चौथे दशक के दौरान इस रोग का निरोधक टीका और इलाज की दवाएँ भी खोजी जा चुकी थीं और उनका सफल प्रयोग भी हुआ था ! पर दुनिया की बहुराष्ट्रीय दवा-कंपनियों ने उन टीकों और दवाओं को, और उन विषाणुओं पर हुए सभी शोधों को, एकदम से गायब कर दिया ! घोषित कर दिया गया कि ये विषाणु और इनसे जनित रोग अब पूर्णतः समाप्त हो चुके हैं ! जबकि यह आज सामान्य ज्ञान की बात है कि कोई विषाणु समाप्त नहीं होता, वह बना रहता है और हम उसके साथ जीने लगते हैं ! 'फासिस्टोना इंडो-इटालियाना' विषाणु-परिवार के विषाणु भी दुनिया के विभिन्न हिस्सों में पड़े रहे और पर्यावरणीय हिसाब से अपनी जैविक संरचना में कुछ बदलाव करते हुए नई परिस्थितियों में फलने-फूलने के अभ्यस्त भी होते रहे !

भारत में भी यह विषाणु गत शताब्दी के तीसरे दशक में ही इटली से संक्रमित होकर आये एक व्यक्ति के जरिये आया था ! फिर यह संक्रमण चुपचाप, धीरे-धीरे फैलता रहा ! कभी-कभी सीमित स्तर पर यह महामारी का रूप लेता दिखाई देता था, फिर दब जाता था ! लेकिन खासकर पिछले तीस वर्षों से यह लगातार फैलता रहा है और अब अब एक भीषण महामारी के रूप में पूरे देश को अपने गिरफ्त में ले चुका है ! इस विषाणु से भारत में फ़ैलने वाली बीमारी को फिलहाल मैंने 'मोडिव-02-20' नाम दिया है !

इस सच्चाई को अभी बहुत सारे लोग समझ ही नहीं पा रहे हैं कि 'कोविड-19' पर नियंत्रण नहीं हो पाने का मुख्य कारण यह है कि 'मोडिव-02-20' का संक्रमण इतना व्यापक हो चुका है कि सत्ता के तंत्र को चलाने वाले लगभग सभी लोग उससे संक्रमित हो चुके हैं ! कोरोना-प्रबंधन विफल इसलिए है कि इसकी नीतियाँ वे लोग बना रहे हैं जिनके दिमाग़ अरसे पहले 'फासिस्टोना इंडो-इटालियाना' विषाणु से संक्रमित हो चुके हैं, उनके तर्क-तंत्र क्षति-ग्रस्त हो चुके हैं और वे बर्बर-उन्मादी गिरोह में तब्दील हो चुके हैं !

बहरहाल, दुनियाभर में इस विषाणु-परिवार पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों की टीम अपना काम निरंतर कर रही है ! इस विषाणु से संक्रमित लोगों की एक खासियत यह होती है कि वे अपना इलाज कत्तई नहीं कराना चाहते और ऐसी हर कोशिश को अपने ख़िलाफ़ साज़िश मानते हैं ! ऐसे ही लोग अगर सत्ता में हों तो वे उन तमाम वैज्ञानिकों को ठिकाने लगा देना चाहते हैं जो 'फासिस्टोना इंडो-इटालियाना' विषाणु, और 'मोडिव-02-20' महामारी पर शोध कर रहे हैं और इसके नतीजों को जनता तक पहुँचाना चाहते हैं ! इसलिए, हमारे जैसे लोग अगर कभी मॉर्निंग वाक पर जाएँ और कोई ट्रक उनको टक्कर मार दे, या अचानक उनका कोई अता-पता ही न चले, या अचानक किसी बहुत बड़े आतंकवादी षड्यंत्र में शामिल बताकर उन्हें जेल की काल-कोठरी में धकेल दिया जाए, तो बिना ज़रा भी ताज़्जुब में पड़े आप समझ जाइयेगा कि असलियत क्या है ! तब फिर आपको क्या करना होगा, यह आप जानें, आपका ज़मीर जाने! मैं क्या बताऊँ और क्यों बताऊँ ?

(18अप्रैल, 2020)

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