एक राज़ की बात है ! राज़ की बात क्या, समझ लीजिये, एक दिलचस्प किस्सा ही है ! अबतक मैं इसे अपने पेट में रखे हुए थी ! पर ऐसी बातें मुझसे पचती नहीं ! अपच हो जाता है ! इसलिए सोचती हूँ कि वह वाक़या आपलोगों को बता ही दूँ !
इस लॉकडाउन के ठीक पहले, मेरे सामने एक आकर्षक प्रस्ताव आया ! मेरे किस्सों को पढ़कर एक जाने-माने फिल्म-निर्माता ने मेरे सामने यह प्रस्ताव रखा कि मैं एक ऐसी वेब-सिरीज़ की पटकथा लिखूँ, जिसमें तरह-तरह के दुष्ट चरित्रों का एक ब्रॉड रेंज हो, व्यापक वर्ण-क्रम हो --- उसमें गब्बर सिंह, मुगैम्बो, शाकाल, चिकारा, जगीरा, लोटिया पठान, साहनी सेठ, धरम दयाल तेजा, दुर्जन सिंह आदि-आदि सभी किस्म के खलनायक हों ! यानी वह 60-70 वर्षों के दौरान फ़ैली हुई एक कहानी हो जिसके खल चरित्रों में लोगों को प्राण, के.एन. सिंह, अजीत, जानकी दास, प्रेम चोपड़ा, डैनी, गुलशन ग्रोवर, अमरीश पुरी, शक्ति कपूर, कुलभूषण खरबंदा, असरानी, अमजद खान, कादर खान, अनुपम खेर, प्रकाश राज आदि-आदि द्वारा निभाये गए सभी प्रसिद्ध दुष्ट चरित्रों की झलक मिल जाए ! संवाद भी मुझे ही लिखने थे और सह-निर्देशक का काम भी करना था !
उक्त निर्माता-निर्देशक महोदय का कहना था कि फिल्म एक पोलिटिकल थ्रिलर हो, जिसमें तरह-तरह के षड्यंत्र, ब्लैकमेलिंग, हत्या, बलात्कार, हवाला कारोबार,शेयर बाज़ार के छल-छद्म,बैंकों से गबन, कारपोरेट बोर्ड रूम की मीटिंगों में होने वाली साज़िशें, विधायकों की खरीद-फरोख्त,साम्प्रदायिक दंगे, चुनावी राजनीति में पैसे और बाहुबल का खेल, बड़ी कंपनियों द्वारा की जाने वाली राजनीतिक सौदेबाज़ियाँ, उजाले में देशभक्ति करने वालों के अँधेरे में आतंकियों से मिलीभगत --- यह सब कुछ होना चाहिए ! कहानी एकदम चुस्त, दर्शकों को आद्यंत बाँधे रखने वाली, सस्पेंस और बीच-बीच में कॉमेडी रिलीफ़ से भरी होनी चाहिए !
थोड़ी देर के लिए तो मैं भी प्रलोभन में फँस गयी ! सोचने लगी कि बुरा क्या है, इसमें मनोरंजक ढंग से काफ़ी कुछ कहने का स्कोप होगा और पैसे इतने मिल जायेंगे जितना मैंने कभी एक साथ देखा भी नहीं ! बहुत काम हो जायेंगे ! लेकिन फिर अचानक मेरे दिमाग़ की बत्ती जल गयी ! अरे, यह तो एक बहुत बड़ी साज़िश भी हो सकती है मुझे फँसाने की ! या न भी हो, तो भी फँसूगी तो मैं ही !
आज ऐसी कोई भी कहानी मैं लिखूँ, लोगों को वह एकदम वास्तविक लगेगी ! सभी यही सोचेंगे कि मैंने आज की राजनीति और सत्तारूढ़ पार्टी पर कमेंट किया है ! लोग कुलाबे भिड़ाने लगेंगे कि फलां चरित्र दरअसल फलां है और चिलां चरित्र चिलां है और फलां-फलां दृश्य में दरअसल फलां-फलां राजनीतिक घटना दिखाई गए है ! फिर तो जल्दी ही स्टे लेने कोई सुप्रीम कोर्ट चला जाएगा और स्टे मिल भी जाएगा ! चौराहों पर मेरे पुतले फूँके जाने लगेंगे और जोगीजी, या त्रिवेन्द्र भैजी के, या सीधे दिल्ली से आयी डोभाल साहब के वर्दीधारी मुझे किसी दिन आधी रात को काले शीशे चढ़ी गाड़ी में उठा ले जायेंगे ! अगले दिन अख़बारों में मेरे ऊपर 'रासुका' लगने की खबर भी छप जायेगी ! या यह भी हो सकता है कि किसी दिन मैं मॉर्निंग वॉक पर निकलूँ और वापिस ही न लौटूँ ! फिर लोगों को मेरा पार्थिव शरीर लेने पोस्टमार्टम हाउस जाना पड़े ! या हो सकता है कि किसी के वहाँ जन्मदिन या एंगेजमेंट की पार्टी में कुछ खा-पीकर लौटूँ और रात में मुझे दिल का दौरा पड़ जाए ! मेरा मतलब, आजकल के ज़माने में होने को तो कुछ भी हो सकता है !
फिर मैं होश में आ गयी ! सभी लोभ-लालचों का परित्याग कर दिया, एकदम बौद्ध भिक्षु की तरह ! प्रोड्यूसर महोदय को आश्चर्य-चकित करते हुए मैंने हाथ जोड़ लिए ! ना भइया ! मैं ना फँसने वाली ऐसे किसी चक्कर-चपेट में ! जब ज़िंदगी ही ससुरी एक क्राइम थ्रिलर हो गयी हो, तो आप क्राइम थ्रिलर क्या ख़ाक बनायेंगे ! और पोलिटिकल थ्रिलर बनाकर जान जोखिम में क्यों डालें, जब पॉलिटिक्स में ही चरम सीमा तक थ्रिल है -- तरह-तरह की साजिशों, दंगों, हत्या, बलात्कार, डिटेंशन कैम्प, दर-बदर होते लोगों, भूख और महामारी से मरते लोगों का थ्रिल, सरकारों को गिराने-बनाने के खेल और जल-जंगल-ज़मीन-हवाई अड्डे, रेलवे स्टेशन, लाल किला, ताजमहल आदि-आदि सबकुछ कौड़ियों के मोल बेंच देने का थ्रिल, हर किस्म के फ्रॉड, बेरहमी और अमानवीयता का थ्रिल, अदालतों को खरीद लेने का थ्रिल -- सारे थ्रिल तो रियल लाइफ में हैं ही ! फिर नाहक अपनी जान जोखिम में क्यों डालूँ ? नहीं-नहीं, प्रसिद्धि और पैसे का यह सारा खेल ही ख़तरनाक है ! अपुन तो ऐसे ही भले !
(16अप्रैल, 2020)
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