सही बात है ! मोदी है तो कुछ भी मुमकिन है ! इतनी बड़ी तबाही भी मुमकिन है, जितनी अंग्रेजों के ज़माने में अकाल और महामारियों से हुआ करती थी ! मोदीजी खुद अपना ही रिकॉर्ड तोड़ने की धुन में जीते हैं ! इसबार नोटबंदी से हुई तबाही और परेशानी को मीलों पीछे छोड़ देने का इरादा है !
कोरोना से निपटने के लिए कल उन्होंने तीन सप्ताह के देशव्यापी लॉकडाउन /कर्फ्यू की घोषणा कर दी !
पहली बात तो यही समझने की ज़रूरत है कि नागरिकों के सिर्फ़ घरों में बंद हो जाने से इस वायरस का खात्मा नहीं हो जाएगा ! घरों में भी यह बना रहेगा और लॉकडाउन ख़तम होते ही फिर फ़ैलने लगेगा ! लॉकडाउन के साथ-साथ बराबर की ज़रूरत देश के सभी नागरिकों की व्यापक जाँच की है, एक-एक जिले में अस्पतालों में और मेडिकल कॉलेजों में आइसोलेशन वार्ड्स बनाने की है, इसके लिए बड़े पैमाने पर डाक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्य-सेवा कर्मियों की तथा चिकित्सा के सक्षम और व्यापक सार्वजनिक क्षेत्र के ढाँचे की ज़रूरत है ! सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों को तो पहले ही निजीकरण की लहर में तबाह किया जा चुका है ! मास्क और ज़रूरी सुरक्षा उपकरण तक स्वास्थ्य-कर्मियों को नहीं मुहैय्या हो पा रहे हैं ! प्राइवेट लैब्स. में टेस्ट के 4500 रुपये खर्चने होंगे ! टेस्ट की सुविधा ही बहुत कम जगहों पर है !
दरअसल कोरोना के फ़ैलने के खतरों के विरुद्ध चेतावनियाँ तो जनवरी से ही कुछ लोगों ने और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने देनी शुरू कर दी थी, पर इस पूरे दौर में तो सरकार सी ए ए-एन पी आर-एन आर सी विरोधी जनांदोलन को कुचलने में, विश्वविद्यालयों के कैम्पसों में दमन का कहर बरपा करने में, उत्तर-पूर्वी दिल्ली में गुजरात-2002 के मॉडल को दुहराने में, विधायक खरीदकर म.प्र. में कमलनाथ की सरकार को गिराने में, ट्रम्प का स्वागत करने में तथा औने-पौने दामों पर सरकारी उपक्रमों को अपने ख़ास पूँजीपतियों के हवाले करने में व्यस्त थी ! फरवरी तक विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनी का उल्लंघन करके मास्क्स और अन्य सुरक्षा उपकरणों का निर्यात किया जाता रहा ! जब कोरोना ने हमला कर दिया तो मुकाबले के नाम पर इधर-उधर की उछल-कूद और अफरा-तफरी की शुरुआत हुई ! ताली-थाली और फिर बिना किसी तैयारी के कल आठ बजे घोषणा कर दी कि रात बारह बजे से तीन सप्ताह का देशव्यापी लॉकडाउन होगा !
इस देश में कम से कम 40 करोड़ ऐसी आबादी है जो रोज़ कमाती है तो उसका परिवार रोटी खा पाता है ! एक करोड़ से अधिक घुमंतू जनजातियों की आबादी हैं ! 18 करोड़ के आसपास बेघर या यहाँ-वहाँ टीन-टप्पर-छाजन डालकर रहने वाली आबादी है ! करोड़ों वृद्धों-असहायों और विकलांगों के लिए सामाजिक सुरक्षा की लगभग कोई व्यवस्था नहीं है और जो है वह खुद ही वृद्ध, बीमार और विकलांग है ! ये सारे लोग 21 दिनों तक क्या खाकर जियेंगे, कोई बीमारी हो तो कैसे इलाज करायेंगे ! कहने को यह घोषणा तो कर दी गयी है कि ज़रूरी चीज़ें घर-घर पहुँचाई जायेंगी, पर प्रशासन के पास ऐसा कोई ढाँचा नहीं है और यह चन्द दिनों में खड़ा भी नहीं हो सकता ! आज पहले दिन की ही हालत यह थी कि दवा और ज़रूरी चीज़ें की कुछ दुकानें खुली तो थीं पर ज़रूरी सामान लेने घर से बाहर निकले लोगों को भी पुलिस ने दौड़ा-दौड़ाकर पीटा ! अस्पताल जाने वाले मरीजों-तीमारदारों को ही नहीं, कई जगह तो डाक्टरों तक को पुलिस ने पीट दिया ! देश भर के महानगरों में लाखों मज़दूर स्टेशनों-बस स्टेशनों पर कई दिनों से भूखे-प्यासे फँसे हुए हैं ! झुग्गी-बस्तियों में छाये सन्नाटे में आपको बीच-बीच में बस भूखे बच्चों के रोने की आवाज़ ही सुनाई देगी, चाहे वह दिल्ली हो, लुधियाना, मुम्बई या देहरादून ! ढाई लाख ट्रक ज़रूरी सामान लेकर पूरे देश के राजमार्गों पर जहाँ-तहाँ फँसे हुए है !
मोदीजी, आपने तो कोरोना की महामारी से निकलने की ऐसी जुगत भिड़ाई है कि उससे भी बड़ी महामारी के मुँह में लोगों को धकेल दिया है, जिसका नाम है -- भुखमरी ! और यह जो पूँजी और सत्ता की पालतू कुतिया मीडिया है, वह तो कल को भूख से मरते लोगों की खबरों को भी पूरीतरह से ब्लैकआउट कर देगी ! हाँ, ऐसे भूखे अगर हज़ारों और लाखों की तादाद में सड़कों पर, गोदामों-दुकानों को लूटने निकल पड़ें, तो ऐसे "बलवाइयों" से निपटने में आपकी पुलिस पूरीतरह से सक्षम है और तब गोदी मीडिया को भी कुछ "सनसनीखेज" खबर मिल जायेगी ! वैसे अगर कोई गूगल करके देखे तो आम गरीबों और मज़दूरों की मदद के लिए विभिन्न राज्य सरकारों की राहत-घोषणाओं की जानकारी मिल जायेगी ! लेकिन किसी हद तक केरल सरकार को छोड़कर,सभी राज्य सरकारों द्वारा दी जाने वाली राहतें ऊँट के मुँह में जीरा के समान हैं और उससे भी बड़ी बात यह है कि इसे उचित लोगों तक पहुँचाने का कोई सक्षम तंत्र है ही नहीं ! सबसे बड़ा मज़ाक तो खुद मोदीजी ने स्वास्थ्य इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए 15000 करोड़ रुपये के प्रावधान का एलान करके किया है ! अकेले केरल जैसे छोटे राज्य के लिए 20000 करोड़ रुपये का केरल सरकार ने प्रावधान किया है ! जो सरकार एक ही वर्ष में पूँजीपतियों की ऋणमाफी में आठ लाख करोड़ रुपये खर्च कर सकती है, 20000 करोड़ रुपये में दिल्ली में सेंट्रल विस्टा (संसद भवन, सचिवालय आदि) बनाने का निर्णय ले सकती है, वह कोरोना से निपटने के लिए स्वास्थ्य-इन्फ्रास्ट्रक्चर दुरुस्त करने पर अगर सिर्फ़ 15000 करोड़ रुपये खर्च करने की घोषणा करती है तो इससे बड़ा और इससे गंदा मज़ाक और कोई नहीं हो सकता !
कोरोना महामारी के कहर और इससे उबरने के बाद देश की व्यापक आम आबादी पर टूट पड़ने वाली आर्थिक महाविपत्ति के विरुद्ध अगर व्यापक जन-जागरण और जन-लामबंदी की मुहिम नहीं शुरू की जायेगी, तो ये फासिस्ट पागल देश को रसातल तक पहुँचाकर ही मानेंगे ! हम समझते हैं कि लॉकडाउन के इस समयावधि के दौरान ही हमें ऑनलाइन और विभिन्न संभव माध्यमों से व्यापक जनता में यह सन्देश पहुँचाना शुरू कर देना चाहिए कि वह सरकार पर इन माँगों को लेकर दबाव बनाए :
(1) यही समय है कि हम सरकार पर दबाव बनाएँ कि वह स्वास्थ्य-सेवाओं के निजीकरण की प्रक्रिया को एकदम उलटी दिशा में मोड़ दे I सरकार पर दबाव बनाया जाना चाहिए कि वह सभी निजी अस्पतालों, नर्सिंग होमों, मेडिकल कॉलेजों का अधिग्रहण करे ! स्वास्थ्य जनता का बुनियादी अधिकार और किसी भी सरकार की बुनियादी ज़िम्मेदारी है, इसलिए इसका कोई भी हिस्सा प्राइवेट सेक्टर में नहीं होना चाहिए ! फार्मास्यूटिकल कम्पनियाँ भी निजी क्षेत्र में नहीं होनी चाहिए ! स्वास्थ्य और दवाओं से मुनाफ़ा कमाने की कोई गुंजाइश होनी ही नहीं चाहिए ! तात्कालिक तौर पर हमारी माँग यह होनी चाहिए कि स्पेन की तरह भारत सरकार भी कोरोना से निपटने के लिए सभी प्राइवेट अस्पतालों, नर्सिंग होमों और मेडिकल कॉलेजों का आरजी तौर पर अधिग्रहण कर ले !
(2) कोरोना के इलाज के लिए ज़रूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने और सुविधाएँ जुटाने के लिए वित्तीय संसाधन जुटाने के लिए तथा देश की करीब 70 करोड़ गरीब आबादी को इस आपात काल में सारी बुनियादी सुविधाएँ मुहैय्या कराने के लिए, कम्युनिटी किचन चलाने तथा घर-घर फ़ूड-पैकेट पहुँचाने के लिए, दवाएं और रोजमर्रा की ज़रूरत की चीज़ें मुहैय्या कराने के लिए सरकार को कुछ विशेष क़दम उठाने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए I ऐसे कुछ कदम इसप्रकार हो सकते हैं :
(क) देश के सभी मंदिरों, मठों, विभिन्न स्वामियों के आश्रमों और अन्य सभी धर्म-स्थानों के पास जितनी नकदी और सोना-चांदी पड़ा हो, उसे ज़ब्त करके जन-हित के इस आसन्न काम में लगा दिया जाए !
(ख) सभी सांसदों-विधायकों की कम से कम तीन महीने की तनख्वाह इस मद में ले ली जाए ! अपनी घोषणा के हिसाब से जितने भी जन-प्रतिनिधि करोडपति हों, उनकी संपत्ति का 25 प्रतिशत इस राष्ट्रीय विपत्ति का सामना करने के लिए ले लिया जाए !
(ग) जितने भी राजे-रजवाड़े पारिवारिक ट्रस्ट बनाकर अपनी अरबों की संपत्ति बचाए हुए हैं और महलों में पाँच-सितारा होटल चला रहे हैं, उन सबका बिना कोई मुआवजा दिए अधिग्रहण कर लिया जाना चाहिए !
(घ) पूँजीपतियों की ऋण-माफी के पुराने फैसलों को पलटने और उनकी निजी संपत्ति को ज़ब्त करके ऋणों की अदायगी के लिए अध्यादेश लाया जाना चाहिए ! आगे से बैंकों का क़र्ज़ न देने पर किसी भी कम्पनी के सभी निदेशकों की निजी संपत्ति की नीलामी से भरपाई का प्रावधान करने तथा ऐसा करने वालों को सश्रम कारावास के दंड की व्यवस्था के लिए कंपनी कानूनों और भारतीय दंड संहिता में ज़रूरी बदलाव के लिए अध्यादेश लाया जाना चाहिए !
(च) दिल्ली में सेंट्रल विस्टा के निर्माण के फैसले को रद्द किया जाना चाहिए ! यह जनता के पैसे की भयंकर फिजूलखर्ची है ! इस काम के लिए आवंटित 20000 करोड़ रुपये की राशि को स्वास्थ्य-सेवा के इन्फ्रास्ट्रक्चर को दुरुस्त करने में लगा दिया जाना चाहिए !
(छ) एन पी आर-एन आर सी के फैसले को रद्द करना चाहिए और इसके लिए बजट में आवंटित 4 हज़ार करोड़ रुपये की धनराशि को कोरोना के इलाज में खर्च किया जाना चाहिए ! यही उचित समय है कि सी ए ए के कानून को भी रद्द करने के लिए फिर से विधेयक लाने की सरकार घोषणा कर दे और इन मुद्दों को लेकर जिन लोगों को भी गिरफ्तार किया गया है, उन्हें रिहा कर दिया जाए और सभी मुक़दमे हटा लिए जाएँ ! देश में जितने भी डिटेंशन सेंटर बने हैं या बन रहे हैं, उन सभी को अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में बदल दिया जाए !
(ज) आम जनता से सभी बिलों और ऋणों की अदायगी की प्रक्रिया को जन-जीवन और आर्थिक गतिविधियाँ सामान्य होने तक रोक दिया जाए !
(झ) सभी विधायकों, सांसदों, मंत्रियों और नौकरशाहों की विशेष सुविधाएँ छीन ली जाएँ, वेतन-भत्तों में कटौती करके उन्हें एक कुशल मज़दूर के समतुल्य कर दिया जाए तथा उनकी सुरक्षा पर होने वाले खर्च में 50 प्रतिशत कटौती कर डी जाए !
(3) पूरी आबादी के लिए निःशुल्क स्वास्थ्य-स्सुविधाओं का ढाँचा खड़ा करने की शुरुआत की जाए I समान एवं निःशुल्क शिक्षा सरकार की ज़िम्मेदारी हो और सभी को रोज़गार भी सरकार की ज़िम्मेदारी हो ! बेरोजगारी की अवधि में हर नागरिक को भरण-पोषण योग्य बेरोजगारी भत्ता मिलना चाहिए !
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ऐसी ही कुछ और माँगें भी इस क्रम में जोड़ी जा सकती हैं ! हम कहना यह चाहते हैं कि मौजूदा संकट हमसबके लिए एक गंभीर चेतावनी है ! यह हमारे दिलो-दिमाग़ पर एक ज़ोरदार दस्तक के सामान चोट करे, तभी काम बनेगा ! कोरोना ने हमारी व्यवस्था की आपराधिक लापरवाहियों को उजागर कर दिया है ! निःशुल्क और समान दवा-इलाज की सुविधा हर नागरिक का बुनियादी अधिकार है ! भगतसिंह की यह बात एक बार फिर से गाँठ बाँध लेने की ज़रूरत है कि जो सरकार हमारी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा नहीं करती, उसे उखाड़ फेंकना हमारा अधिकार ही नहीं बल्कि ज़रूरी कर्तव्य है !
(25मार्च, 2020)
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