Thursday, April 02, 2020


'जब दुआरे लगल बरात
त समधन के लगल हगास'

एक भोजपुरी कहावत है !

डब्ल्यू.एच.ओ. जनवरी के अंत से कह रहा था ! कई लोग चेतावनी दे रहे थे कि कोरोना अगर भारत जैसे देश में पहुँच जाए तो कहर बरपा कर सकता है ! तब तो कल्कि अवतार दिल्ली में गुजरात-2002 मॉडल लागू कर रहे थे, कैम्पसों में लाठी-गोली चलवा रहे थे, ट्रम्प का स्वागत कर रहे थे, विधायक खरीदकर म.प्र. की सरकार गिराने की चालें चल रहे थे,और न जाने क्या-क्या कर रहे थे ! जब तूफ़ान सर पर घहराकर टूट पड़ा तो एक दिन थाली-ताली बजवाई और फिर अचानक एक दिन आठ बजे टी वी पर दर्शन दिया और घोषित कर दिया कि तीन सप्ताह के लिए पूरा देश बंद ! यार ! ये तो 'दिल्ली से दौलताबाद, दौलताबाद से दिल्ली' करने वाले मुहम्मद बिन तुगलक़ का भी चचा निकला !

लाखों मज़दूर मुम्बई, दिल्ली, सूरत, नोएडा, अमदाबाद आदि-आदि शहरों से पैदल निकल पड़े हैं हज्जार और दो-दो हज़ार किलोमीटर की दूरी पैदल तय करके अपने घरों तक पहुँचने के लिए ! शहरों में लाखों गरीब भूखों मर सकते हैं, क्योंकि बाहर निकलते ही पुलिस की लाठियाँ बरस रही हैं ! दवाएँ या राशन लेने या रेन-बसेरों तक कोई पहुँचे भी तो कैसे ?

WHO बार-बार कह रहा है कि सिर्फ् लॉकडाउन से या क्वैरेन्ताइन से कोरोना का मुकाबला नहीं हो सकता ! व्यापक नागरिकों के जांच की व्यवस्था करनी होगी ! और वह आपकी 'टांय-टांय फिस्स' है ! अब आप चाहे जितना कांख लें, कर ही नहीं सकते !

लॉकडाउन के दौरान गरीबों के लिए एक लाख 70 हज़ार करोड़ की राहत की भी घोषणा कर दी ! कुछ भद्र पुरुष भावुक और संतुष्ट भी हो गए ! ये गोबर गणेश यह सोचते भी नहीं कि राहतें वास्तविक पात्रों तक पहुंचेगीं भी कैसे ? कितने गरीबों के पास अन्त्योदय के कार्ड हैं ? कितने गरीबों के पास जन-धन-खाता है ? आप राहत कैसे पहुंचाएंगे सही लोगों तक ? इसका तंत्र भी आपके पास नहीं है, और जो है वो भी भ्रष्ट और जर्जर है ! और सबसे बड़ी बात यह कि इतनी राहत से होगा भी क्या ?

अरे मुहम्मद बिन तुगलक़ ! ये तो बताओ ! जो लाखों मज़दूर किसी भी परिवहन के अभाव में पैदल हज़ारों किलोमीटर का सफ़र तय करके अपने घर पहुँचाने के लिए निकल पड़े हैं, उनके लिए कोई विशेष इंतज़ाम क्यों नहीं किया जा सकता ? ये तो बताओ, इतनी आपातकालीन स्थिति में स्पेन की तरह, कम से कम आरजी तौर पर, सभी प्राइवेट अस्पतालों और नर्सिंग होमों का अधिग्रहण करने में दिक्क़त क्या है ? ये तो बताओ कि लॉकडाउन की इस हालत में उत्तर-पूर्वी दिल्ली के वे हज़ारों उजड़े परिवार कहाँ जायेंगे, जबकि राहत कैम्पों से भी उन्हें भगाया जा चुका है और अपने जले हुए घरों में वे दुबारा जाकर रह भी नहीं सकते !

ये तो बताओ बादशाह सलामत ! तुम्हारी हुकूमत द्वारा दी गयी राहत-राशि से 40 करोड़ से भी अधिक रोज़ कमाकर रोज़ खाने वालों के परिवार कितने दिन गुज़र कर पायेंगे ?

सवाल बहुत हैं मुहम्मद बिन-तुगलक़ ! पर उन्हें पूछने से फ़ायदा क्या ? जवाब तुम दोगे नहीं ! और सच यह है कि जवाब तुम्हारे पास है भी नहीं !

लेकिन मत भूलो ! जनता अपने इन सवालों का जवाब तुमसे एक दिन लेकर रहेगी ! एक दिन तुम जलते हुए सवालों से घिरे होगे और तुम्हारे पास बचने का कोई भी रास्ता नहीं होगा !

(27मार्च, 2020)

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