हवाई यात्रा बंद करने के तीन दिन पहले बता दिया गया ! और तीन सप्ताह का देशव्यापी लॉकडाउन के लिए रात में मात्र चार घंटे पहले बताया गया ! यह हुकूमत जनता के ऊपर कोरोना से भी बड़ा कहर बरपा कर रही है !
देश भर के महानगरों और औद्योगिक क्षेत्रों से मज़दूर ज़िंदा रह पाने के लिए अपने घरों की और निकल पड़े हैं ! इन्हें सैकड़ों या हज़ारों मील का पैदल सफ़र तय करके बिहार, झारखंड, पूर्वी उ.प्र., बुंदेलखंड, छत्तीसगढ़, म.प्र., ओडिशा या कर्नाटक के सुदूर क्षेत्र स्थित अपने गाँव पहुँचना है ! पूरे देश के बारे में अनुमानतः कहा जा सकता है कि लाखों-लाख मज़दूर इससमय सडकों पर हैं ! और जो शहरों में बचे रह गए हैं वे अपनी झोंपड़ियों में भूखे-प्यासे क़ैद होकर रह गए हैं ! जो भी राहत और बुनियादी ज़रूरत की चीज़ों को लोगों तक पहुँचाने संबंधी इंतज़ामात की घोषणायें हो रही हैं, वे अभी तक 80 प्रतिशत अखबार के पन्नों और टी वी के स्क्रीन तक ही सिमटी हुई हैं ! सड़कों पर पुलिस का आतंक राज क़ायम है !
कोरोना से निपटने में आपराधिक देरी और लापरवाही के बाद मोदी सरकार ने ताबड़तोड़ तुगलकी फ़रमान जारी करके भारी आबादी को असहनीय आपदाओं और मौत की अंधी घाटी में धकेल दिया है ! नागरिकों की व्यापक जाँच का इंतज़ाम करने में अभी भी हफ़्तों का समय लग जाएगा ! डाक्टरों के लिए सुरक्षा मास्क और ज़रूरी सुरक्षा उपकरणों की ज़रूरत भी कबतक पूरी हो सकेगी, कहा नहीं जा सकता ! जब जाँच ही दूसरे प्रभावित देशों के मुकाबले बहुत छोटे पैमाने पर हो रहे हैं तो कोरोना-प्रभावित लोगों की संख्या के सरकारी आँकड़ों पर तो कत्तई भरोसा नहीं किया जा सकता ! मोदी सरकार की आपराधिक लापरवाही के बाद, इस सनक भरे फ़रमान ने उसके नोटबंदी जैसे फैसलों को मीलों पीछे छोड़ दिया है ! इसकी कीमत देश की आम आबादी आने वाले लम्बे समय तक चुकाएगी ! यह दौर देश के इतिहास के एक अविस्मरणीय काले अध्याय के रूप में याद किया जाएगा ! भारत के इतिहास में प्लेग और स्पेनिश फ़्लू से होने वाली मौतों, बंगाल के अकाल की तबाही, देश विभाजन के समय हुई मौतों और विस्थापन तथा गुजरात-2002 के नर-संहार के बाद, इससमय मौतों, विस्थापन और तबाहियों का एक नया अध्याय लिखा जा रहा है ! कोरोना से भी अधिक कहर सरकार की निरंकुश स्वेच्छाचारिता भरे फैसलों ने बरपा किया है ! महामारी से भी अधिक विकराल आम गरीब आबादी के लिए भुखमरी का खतरा हो गया है !
अभी भी सत्ताधारी अगर सत्ता की अफीम की पिनक में डूबे रहे तो उन्हें जनता के प्रचंड दुर्निवार कोप का सामना करना ही पड़ेगा ! हमने पहले ही लिखा था कि राहत के कुछ अविलम्ब और कठोर कदम उठाने होंगे ! सबसे पहले तो सभी निजी क्षेत्र के अस्पतालों, नर्सिंग होमों और मेडिकल कॉलेजों का सरकार को अविलम्ब अधिग्रहण कर लेना चाहिए ! सभी पाँच-सितारा होटलों और रिसॉर्ट्स का अधिग्रहण करके वहाँ आइसोलेशन वार्ड और क्वैरेन्ताइन वार्ड बना देना चाहिए ! सभी नागरिकों की घर-घर निःशुल्क जाँच युद्ध स्तर पर शुरू करना चाहिए और इसमें सेना एवं अर्द्धसैनिक बालों के मेडिकल स्टाफ को भी लगा देना चाहिए ! जो मज़दूर शहरों से पैदल अपने घरों की ओर जा रहे हैं, उन्हें रास्ते में रुकने-ठहरने और भोजन उपलब्ध कराने के लिए सभी स्चूलों-कॉलेजों की इमारतों, रेलवे और बस स्टेशनों के परिसरों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए ! वहीं इन सभी के संक्रमण की जाँच भी की जानी चाहिए और फिर घर पहुँचाया जाना चाहिए ! भारी संख्या में गरीबों के पास न तो अन्त्योदय कार्ड हैं न ही जन-धन खाते ! ऐसी स्थिति में उन तक भोजन, दवाएँ और अन्य सभी राहत सामग्री पहुँचाने के लिए गाँवों और मुहल्लों की नागरिक कमेटियाँ गठित करके उनकी मदद ली जाए ! आम लोगो को दी जाने वाली मदद की राशि में कम से कम दस गुने की बढ़ोत्तरी की ज़रूरत है ! साथ ही कई और राहत-परियोजनाएँ चलाने की ज़रूरत है ! इसके लिए मठों-मंदिरों और धर्माचार्यों के आश्रमों और पीठों की अकूत संपदा का अधिग्रहण करके उसे जनहित में खर्च करने की ज़रूरत है ! इसके अतिरिक्त सभी पूँजीपतियों, व्यापारियों और उच्च-मध्य वर्ग पर विशेष संकटकालीन लेवी लगाने की ज़रूरत है ! एन.पी.आर.-एन.आर.सी. को रद्द करके तथा दिल्ली में सेंट्रल विस्ता के निर्माण के फैसले को रद्द करके उसके लिए निर्धारित सारी रकम कोरोना के मुकाबले में लगाई जानी चाहिए ! सभी मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और नौकरशाहों के वेतन-भत्तों और सुविधाओं में भारी आपातकालीन कटौती की जानी चाहिए ! किसी भी बुर्जुआ लोकतंत्र को आम जन जीवन पर टूट पड़े इतने गंभीर संकट का मुकाबला करने के लिए कम से कम इतना तो करना ही चाहिए !
हमें इन माँगों के पक्ष में हर संभव माध्यम से जनमत तैयार करना चाहिए और इस सरकार पर दबाव बनाना चाहिए !
(28मार्च, 2020)
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मेहनतकशों की तबाही का यह मंजर देखिये ! यह हज़ारों प्रवासी मज़दूरों का रेला पैदल हज़ारों मील की यात्रा करके घर पहुँचाने के लिए निकल पड़ा है ! यह दृश्य दिल्ली-उ.प्र. सीमा की मात्र एक सड़क का है ! दूसरी सड़कों पर भी ऐसा ही रेला है ! दिल्ली ही क्यों, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, बंगलुरु, गुड़गाँव, हैदराबाद, लुधियाना, चंडीगढ़, ग्वालियर, आगरा, भोपाल आदि दर्ज़नो शहरों से दिहाड़ी करके जीने वाले लाखों मज़दूरों के पैदल सैकड़ों और हज़ारों कि.मी. का सफ़र तय करके घर पहुँचाने के लिए निकल पड़ने की खबरें आ रही हैं ! आपने भी सोशल मीडिया पर 75 और 80 वर्ष के वृद्ध स्त्री-पुरुषों, छोटे-छोटे बच्चों को कंधे पर उठाये मज़दूरों, गर्भवती स्त्रियों और पैर में फ्रैक्चर के कारण अपनी पत्नी को कंधे पर उठाये चलते युवा मज़दूर को देखा होगा !
समस्या यह है कि इन लोगों को कोरोना के आतंक के कारण रास्ते में पड़ने वाले गाँवों-कस्बों में भी लोग न रोटी देंगे, न रुकने की जगह देंगे ! रास्ते में पुलिस अलग से डंडे बरसा रही है ! पागल फासिस्टों की दुर्व्यवस्था और मूर्खता ने लाखों मज़दूरों को मौत और तबाही के मुँह में झोंक दिया है !
जो मज़दूर दिल्ली और अन्य महानगरों में रुके हुए हैं वे खुली हुई दुकानों तक कुछ खरीदने के लिए निकल भी रहे हैं तो पुलिस डंडे बरसा रही है ! गरीबों पर कोरोना से बड़ी विपत्ति तो भुखमरी के रूप में टूटने वाली है !
मोदी ने जिस दिन ताली-थाली और जनता कर्फ्यू की घोषणा की थी, उसके एक दिन पहले तक उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगे भड़काने के आरोप में लगातार गिरफ्तारियाँ हो रही थीं ! गिरफ्तार उन्हीं लोगों को किया जा रहा था जो खुद दंगे का शिकार हुए थे ! गिरफ्तारियाँ बड़े पैमाने पर उ.प्र. के कई शहरों में भी हुई थीं ! ऐसे तमाम लोगों के बारे में कहीं कोई खबर नहीं है ! दिल्ली में ईदगाह के शरणार्थी शिविर को खाली करा दिया गया बलपूर्वक ! कैम्प से निकाले गए ज्यादातर परिवार अपने किसी-किसी रिश्तेदार के घर पर फिलहाल डेरा डाले हुए हैं ! वे कहाँ जायेंगे ? शिव विहार और अन्य ऐसे कई इलाकों में लुटे और जले हुए घरों में तो वैसे भी जाना संभव नहीं और उन्हें फिर वहाँ न फटकने के लिए धमकियाँ भी दी जा रही थीं लॉकडाउन के पहले वाले समय में!
मोदीजी, आपकी सरकार ने आम मेहनतकशों पर जो कहर बरपा किया है, उसे लोग कभी नहीं भूलेंगे ! इतिहास आपको कभी माफ़ नहीं करेगा ! इन सारी चीज़ों की कीमत तो आप चुकायेंगे मोदीजी ! चाहे कुछ देर से ही क्यों नहीं ! देख लीजिएगा !
(27मार्च, 2020)
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