Wednesday, April 01, 2020


मोदी ने कहा था आज शाम 5 बजे अपनी बालकनी में निकलकर ताली और/या थाली बजाकर कोरोना के इलाज़ में जी-जान से लगे डाक्टरों का धन्यवाद करने के लिए !

पर आज शाम को हुआ क्या ? अभीतक जितनी जानकारी मिल सकी है, मुख्यतः उत्तर भारत के सभी छोटे-बड़े शहरों में, और उनमें भी विशेषकर मध्यवर्गीय खित्तों में, लोगों ने न सिर्फ़ बालकनी में, बल्कि घरों से बाहर सड़कों पर निकलकर थालियों और तालियों के साथ ढोल-नगाड़े, शंख वगैरह बजाये, पटाखे फोड़े, बल्कि बीच-बीच में 'भारत माता की जय', 'वन्दे मातरम', 'जय श्रीराम' आदि-आदि नारे भी कई जगह लगाए गए ! इस कानफाडू शोर में कहीं भी कोरोना के इलाज में जुटे डाक्टरों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने या धन्यवाद-ज्ञापन का भाव नहीं था ! इसमें एक किस्म की उन्मादी आक्रामकता थी, एक प्रकार का विजयोल्लास था ! कोरोना के महामारी के रूप में भड़क उठने के खतरे, भारतीय चिकित्सा-तंत्र की लचर स्थिति और सरकार की आपराधिक लापरवाहियों से आँख-कान बंद किये हुए ये लोग सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने फ्यूहरर के आदेश का वफ़ादारी के साथ पालन कर रहे थे और इस बात पर गौरवान्वित हो रहे थे ! कई शहरों के साथियों ने अपने अनुभव बताये ! ज्यादातर लोगों को यह पता ही नहीं था कि थाली-ताली किसलिए बजानी है ! कुछ समझ रहे थे कि जैसे सूप पीटकर दलिद्दर भगाया जाता है, उसीतरह थाली-ताली पीटकर कोरोना भगाया जा रहा है ! कुछ इसे किसी अन्य किस्म का टोटका मान रहे थे ! कुछ का मानना था कि कठिन समय में जनता का टेम्पो हाई करने के लिए मोदीजी ने ऐसा करने को कहा है ! कुछ मानते थे कि थाली-ताली पीटकर वे मोदीजी के हाथ मज़बूत कर रहे हैं !

दरअसल थाली-ताली पीटने का यह पूरा अनुष्ठान एक फासिस्ट सामूहिक मनोवैज्ञानिक परीक्षण था ! आपको गणेशजी की मूर्ति के दूध पीने वाली घटना के रातों-रात दैवी चमत्कार के रूप में पूरे देश में फ़ैल जाने वाला प्रसंग याद होगा I फासिस्ट विभिन्न रूपों में यह परीक्षण करना चाहते हैं कि जनता का कितना बड़ा हिस्सा किस हद तक आँख-कान मूँदकर, अपने तर्क-तंत्र को दफ़न करके अपने नेता का अनुसरण करने के लिए तैयार है ! यह 'सोशल साइके' का एक फासिस्ट टेस्ट था !

दूसरी बात, फासिस्टों की इस कार्रवाई में, जन-मानस में एक मिथ्या गर्व-भावना और अपने नेता के प्रति अंध-विश्वास भरकर स्थिति की मौजूदा भयावहता और सिस्टम की अक्षमता-पंगुता को दृष्टि-ओझल करने का एक कुचक्र भी अन्तर्निहित था !

और तीसरी बात सबसे महत्वपूर्ण, गहरी और खतरनाक है ! फासिस्टों के ऐसे फैसलों और उनके अमल के पीछे दरअसल कुछ गहरे कूट-संकेत छिपे होते हैं ! शब्द कुछ और होते हैं, निमित्त कुछ और होते हैं और असली मंतव्य उन अनुकूलित-सम्मोहित मस्तिष्कों तक पहुँच जाता है जो फासिस्ट लीडर या फासिस्ट हेडक्वार्टर पहुँचाना चाहता है ! महामारी के आसन्न खतरों और मौत के मनहूस साए तले, आखिर यह जो उन्मादी उल्लास और विजय-भाव बालकनियों में और सड़कों पर छलक रहा था उसका निहितार्थ क्या था ? निहितार्थ यह सन्देश था कि देखिये, तमाम धरनों और विरोध-प्रदर्शनों के बावजूद मोदीजी सी ए ए-एन पी आर-एन आर सी लागू करके रहेंगे, टस से मस नहीं होंगे ! सन्देश यह था कि तमाम दमन और फर्ज़ी मुक़दमों-गिरफ्तारियों के बावजूद हमारा कुछ नहीं बिगड़ा ! सन्देश यह था कि आखिरकार कोरोना की वजह से तमाम शाहीनबागों को हटाने का मौक़ा मिल ही गया ! सन्देश कश्मीर में हिन्दुत्व एजेंडा लागू कर पाने में मिली सफलता और राम मंदिर पर आये फैसले से मिले विजय-भाव का भी था ! और सन्देश यह भी था कि आखिरकार उत्तर-पूर्वी दिल्ली में गुजरात-2002 मॉडल को लागू करने में सफलता मिल ही गयी ! जाहिर है, अब आगे इसे देश के दूसरे हिस्सों में भी लागू किया जाएगा ! फासिस्ट नेताओं ने कूट संकेतों से अपने अनुयाइयों को अपनी तमाम सफलताओं पर विजयोल्लसित होने और अगले प्रोजेक्ट्स पर दूने-चौगुने जोर-शोर से काम करने का सन्देश दिया और कोरोना से जूझते डाक्टरों को धन्यवाद देने के उपक्रम को निमित्त बनाकर, इस प्रतीक-अनुष्ठान के माध्यम से, फासिज्म के समर्थकों ने उन्मादी आक्रामकता के साथ सड़कों पर ढोल-नगाड़े बजाकर, पटाखे छुड़ाकर, बालकनियों में थाली-ताली बजाकर और 'वन्दे मातरम', 'भारत माता की जय', 'जय श्रीराम' आदि के नारे लगाकर अपनी पिछली जीतों और उपलब्धियों का, तथा आने वाले दिनों के मंसूबों का उद्घोष किया ! मोदी ने प्रकारान्तर से यह भी सन्देश दिया कि तुम्हारे जिस नेता ने ये सारे कारनामे कर दिखाए हैं, वह अर्थ-व्यवस्था के तमाम संकटों से भी निजात दिला ही देगा, भरोसा बनाए रखो और उसके हर निर्देश का पालन करते रहो, हिन्दू राष्ट्र के सदियों पुराने सपने को साकार करने के लिए अगर कुछ कष्ट उठाने पड़ें और क़ुर्बानियाँ भी देनी पड़ें तो तैयार रहो !

(22मार्च, 2020)

No comments:

Post a Comment