चचा थोड़े पुराने ढब के कम्युनिस्ट थे ! नयी पीढ़ी के कम्युनिस्ट उनकी बहुत इज़्ज़त करते थे, उन्हें पुरातात्विक महत्व की सामग्री बतलाते थे, पुराने ज़माने की एक निशानी !
चाहे आप जितने भी तथ्य और तर्क दे लो, चचा कामरेड अपनी बात पर एकदम अड़े, खड़े और पड़े रहते थे I कोई भी नयी परिस्थिति आये, चचा उसे किसी पुराने मूल्यांकन के खांचे में फिट कर ही लेते थे I और उनका पैमाना भी बहुत सीधा-सादा था I उनके ख़याल से देश-दुनिया में जो कुछ भी होता है, वह बस एक साम्राज्यवादी साज़िश है, एक सचेतन कुचक्र है साम्राज्यवादियों का !
एकाध बार चचा से बहस करने की भी कोशिश की,"चचा, इस पूँजीवादी दुनिया में जो भी युद्ध, विनाश, भुखमरी, बीमारियों की रोकथाम न हो पाना, पर्यावरण की तबाही जैसी चीज़ें हैं --- उन सबके पीछे निश्चय ही यह पूँजीवादी सामाजिक-राजनीतिक ढाँचा है ! बेशक साम्राज्यवादी साज़िशें भी करते हैं, पर सबकुछ साम्राज्यवादियों का सचेतन षड्यंत्र नहीं होता ! बहुत सारी चीज़ें इस व्यवस्था में स्वतः पैदा होती हैं, बेशक उनके लिए भी सिस्टम ही दोषी होता है !"
चचा भड़क उठे,"अरे ये सब बौद्धिक बकवास है ! तुम नए ज़माने के कम्युनिस्ट साम्राज्यवादी प्रचार के शिकार हो गए हो !"
चचा 'कांस्पीरेसी थ्योरी' के कट्टर फ़ॉलोवर थे ! उन्हें कभी भी नए से नए तथ्यों के भी विश्लेषण की ज़रूरत नहीं पड़ती थी क्योंकि उनके हिसाब से एक साम्राज्यवादी दुनिया में सबकुछ साम्राज्यवादियों की 'कांस्पीरेसी' का ही नतीज़ा होता था !
जब कोरोना वायरस का प्रकोप बढ़ा तो हमलोगों ने चचा को भी आगाह किया और ज़रूरी एहतियात बरतने को बोला I चचा हँसने लगे I बोले,"अरे बेवकूफ़ो ! यह सब 'इम्पीरियलिस्ट कांस्पीरेसी' है ! हर कुछ वर्षों बाद किसी न किसी वायरल बीमारी का हौव्वा खड़ा किया जाता है ! फिर बहुराष्ट्रीय दवा उद्योगों की चाँदी हो जाती है ! फिर वे वायरस न जाने कहाँ चले जाते हैं ! फिर कुछ वर्षों बाद वही प्रक्रिया दुहराई जाती है ! सब बकवास है !"
हमने समझाने की कोशिश की,"चचा, यह बात हर मामले में सही नहीं हो सकती, बल्कि ज्यादातर मामलों में सही नहीं है ! टीकों और दवाओं के आविष्कार, पेटेंट और वितरण के मामले में बाज़ार, मुनाफे और इजारेदारी का खेल ज़रूर होता है, पर हर बीमारी का वायरस एक साज़िश के तहत पैदा किया जाता है, ऐसा भी नहीं है ! और हाँ, पुराने सभी वायरस गायब नहीं हो जाते, कुछ के लिए ह्यूमन बॉडी धीरे-धीरे इम्यून भी हो जाती है और कुछ को टीकों और दवाओं से नियंत्रित किया जाता है ! फिर भी उनमें से ज्यादातर मौजूद रहते हैं और बीच-बीच में, गरीब देशों में विशेषकर, कहर बरपा करते रहते हैं !" फिर हमने चचा को कोरोना वायरस के बारे में सारी उपलब्ध जानकारियाँ दीं और बताया कि इसके कहर के सबसे अधिक शिकार तो फिलहाल साम्राज्यवादी देश ही हैं और वहाँ के धनी-मानी लोग भी उसकी ज़द में हैं ! हमने यह भी बताया कि भारत जैसे देश में अगर इसका फैलाव जारी रहा तो यहाँ के करोड़ों गरीबों के कमजोर इम्यून सिस्टम, यहाँ के चिकित्सा-तंत्र के लचर ढाँचे और सरकारी रवैये को देखते हुए भयंकर तबाही का मंज़र पैदा हो सकता है !
लेकिन चचा ने सारी बातों को हवा में उड़ा दिया और बेफिक्र मोहल्ले-बाज़ार में घूमते हुए अपनी 'कांस्पीरेसी थ्योरी' का प्रचार करते रहे ! फिर एक दिन उनका गला खराब हुआ, बुखार और खाँसी भी बढ़ती चली गयी ! चचा चिल्लाते रह गए कि 'मुझे इम्पीरियलिस्ट कांस्पीरेसी का शिकार मत बनाओ, साम्राजी लुटेरों के साज़िशाना एक्सपेरिमेंट्स के लिए गिनी पिग मत बनाओ,' पर घर वाले कोरोना के टेस्ट के लिए उन्हें टांग ही ले गए ! टेस्ट पॉजिटिव निकला ! चचा को फ़ौरन आइसोलेशन वार्ड में डाला गया, पर तबीयत बिगड़ती चली गयी ! डाक्टरों ने कहा कि बचने की उम्मीद कम ही है ! चचा को आई.सी.यू. में शिफ्ट किया गया !
आई.सी.यू. में जाते हुए भी उन्होंने घरवालों से यही कहा,"गाँठ बाँध लो, कोरोना कुछ नहीं, एक इम्पीरियलिस्ट कांस्पीरेसी है ! और मेरी बीमारी भी एक इम्पीरियलिस्ट कांस्पीरेसी है और मेरी मौत भी एक इम्पीरियलिस्ट कांस्पीरेसी होगी ! नामुरादो ! तुम सब तो इम्पीरियलिज्म के हाथों एक टूल की तरह इस्तेमाल हो गए !"
(22मार्च, 2020)
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