Saturday, April 04, 2020


क्या आप जानते हैं, मोदी सरकार ने आधुनिक भारत के इतिहास का एक नया रिकॉर्ड बनाया है ! भारतीय उपमहाद्वीप के पूरे इतिहास में इतने बड़े पैमाने पर लोग कभी भी विस्थापित नहीं हुए थे !

मात्र चार घंटे पहले नोटिस देकर पूरे देश की 21 दिन के लिए पूर्णतः तालाबंदी कर दी गयी ! सनकी स्वेच्छाचारी शासकों-प्रशासकों ने यह सोचा तक नहीं कि जिस देश में 40 करोड़ से भी अधिक लोग रोज़ कमाकर रोज़ खाते हैं, उनका क्या होगा ! जो करोड़ों लोग अपने घरों से सैकड़ों और हज़ारों कि.मी. दूर मज़दूरी करते हैं, वे क्या खायेंगे और अपने घरों तक कैसे जायेंगे ! नतीज़तन, करोड़ों लोग महानगरों, औद्योगिक केन्द्रों और पूँजीवादी खेती वाले उन्नत प्रदेशों से पैदल अपने घरों की ओर निकल पड़े ! जाहिर है, सरकार को दूसरे देशों की तरह, कम से कम तीन-चार दिन की तैयारी का समय लेकर लॉकडाउन करना चाहिए था, ताकि शहरों में गरीबों तक बुनियादी ज़रूरत की चीज़ें पहुँचाने का कुछ इंतज़ाम किया जा सके और जो मज़दूर अपने गाँव लौटना चाहें, वे लौट सकें ! पर यह होता कैसे ? पहले ही सरकार कोरोना से निपटने की तैयारी करने में कम से कम ढाई महीने की आपराधिक देरी कर चुकी थी ! अब सारे फैसले बदहवासी में लिए जा रहे थे और पूँजीपतियों की टट्टू इस सरकार के पास इतना दम होने का तो सवाल ही नहीं था कि वह सभी निजी अस्पतालों और होटलों-रिसॉर्ट्स आदि का अधिग्रहण करके कोरोना की जाँच, आइसोलेशन और कोरेंटाइन का प्रबंध कर सके !

जो सरकारी चिकित्सा-तंत्र यह सारा बोझ उठा रहा है, उसे निजीकरण-उदारीकरण लहर में पहले ही पंगु और जर्जर बनाया जा चुका है और इस गुनाह का बोझ कांग्रेस के सिर पर भी कम नहीं है ! नतीज़तन, इतनी विनाशकारी स्थिति तो पैदा होनी ही थी ! और इस महाविपत्ति के काले बादल अभी निकट भविष्य में छंटते हुए भी नज़र नहीं आ रहे हैं, क्योंकि नागरिकों की व्यापक जाँच का इंफ्रास्ट्रक्चर हमारे देश में न है, न इतनी जल्दी बना पाना संभव है ! इसके अभाव में, केवल लॉकडाउन से काम बनने वाला ही नहीं है ! और देश की आधी से भी अधिक आबादी के सामने कोरोना से भी बड़ी विपत्ति भुखमरी और कुपोषण-जनित बीमारियों की आकर खड़ी हो गयी है ! कोरोना की इस विपत्ति से निपटने के बाद भी, उत्पादन-तंत्र को गति पकड़ने में एक महीने से अधिक का समय लगेगा ! इस दौरान, इस देश में जो कुल 70 करोड़ से भी कुछ अधिक सर्वहारा और अर्द्धसर्वहारा आबादी है, वह क्या खायेगी और कैसे ज़िंदा रहेगी ? जाहिर है, 'हिन्दू-मुसलमान', मंदिर-मस्जिद' का खेल खेलते-खेलते, नागरिकता रजिस्टर बनाने का षड्यंत्र रचते-रचते और देश के तमाम सार्वजनिक प्रतिष्ठानों और प्राकृतिक सम्पदा को पूँजीपतियों के हाथों औने-पौने दामों पर बेचते-बेचते ये फासिस्ट हुक्मरान पूरे मुल्क को एक सुलगती ज्वालामुखी के दहाने के एकदम करीब खींच लाये हैं ! इटली का एक वीडियो इनदिनों पूरे यूरोप में वायरल हो रहा है जिसमें लॉकडाउन से परेशान नागरिक इस तरह की बातें कर रहे हैं कि हालात अगर ऐसे ही बने रहे तो क्रान्ति बहुत दूर नहीं है !

जब देश का विभाजन हुआ था तो सीमा के आर-पार कुल विस्थापित होने वालों की आबादी एक करोड़ 45 लाख थी ! विस्थापितों की संख्या पाकिस्तान में 7,226,600 और भारत में 7,295,870 थी ! इसके पहले औपनिवेशिक काल में प्लेग, हैजा, स्पैनिश फ़्लू जैसी महामारियों और अकाल के चलते कुछ लाख तक की आबादी के विस्थापन के तथ्य और आँकड़े मिलते हैं ! अभी मोदीजी द्वारा अचानक 21 दिनों के लॉकआउट की घोषणा के बाद देश में मज़दूर आबादी के आतंरिक विस्थापन का एक झंझावात सा आ गया ! देश के अलग-अलग इलाकों से मिलाने वाली सूचनाओं के आधार पर अनुमानतः तीन से चार करोड़ आबादी पिछले 5-6 दिनों के भीतर दर-बदर हुई है ! इतनी बड़ी आबादी के हिज़रत का शायद यह एक विश्व-रिकॉर्ड है ! और इसकी दूनी मज़दूर आबादी शहरों में अभी भी अपनी दमघोंटू झुग्गियों में बंद है ! तमाम सरकारी इंतज़ामात की घोषणाओं के बावजूद सोशल मीडिया पर भूख-प्यास से बेहाल लोगों की खबरें आ रही हैं ! बेबस लोगों पर पुलिस और प्रशासन के अत्याचार के सैकड़ों वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं और यह पूरी भयावह तस्वीर का एक छोटा सा हिस्सा है, आइसबर्ग का पानी के ऊपर दीखने वाला छोटा सा टिप भर है !

कोरोना ने अभीतक 32 जानें ली हैं, पर पैदल सैकड़ों कि.मी. की दूरी तय करके भूखे-प्यासे अपने घरों की ओर जाते 35 मज़दूर अबतक काल के गाल में समा चुके हैं ! कोरोना का विकट कहर तो अभी अब बरपा होने वाला है ! पर भूख और दूसरी बीमारियों की महाविपत्ति तो, लगता है, अब लम्बे समय तक ग़रीबों के घरों में डेरा जमाये पड़ी रहेगी ! गोदी मीडिया के कुत्ते अभी भी कोई-कोई एंगल ढूँढकर 'हिन्दू-मुसलमान' कर रहे हैं, झाल-करताल लेकर मोदी के भजन गा रहे हैं और इस ऐतिहासिक महाविभीषिका को ब्लैकआउट करके लोगों की नज़रों से ओझल करने की कोशिश कर रहे हैं ! पर विपत्ति इतनी बड़ी है कि उसे दृष्टि-ओझल किया ही नहीं जा सकता ! खाया-अघाया-डकारता-पादता और कुत्तों-सूअरों की तरह ऐन्द्रिक भोग-विलास करता खुशहाल मध्य वर्ग कोरोना से थोड़ा-बहुत चिंतित है और अपने घरों में बंद, खिड़कियों से बाहर सुनसान सड़कों का नज़ारा ले रहा है और फोन पर आपस में बात कर रहा है कि लॉकडाउन की वजह से हवा कितनी शुद्ध और आसमान कितना नीला हो गया है ! इन स्वार्थी, आत्मरतिग्रस्त केंचुओं को करोड़ों आम मेहनतकशों पर, उनके छोटे-छोटे मासूम बच्चो पर जो विपत्ति टूट पड़ी है, उससे कोई लेना-देना नहीं है ! इनको तो चिंता सिर्फ़ इतनी सी है कि इनके घर झाडू-पोंचा करने वाली नहीं आ रही है, इनके डॉगी को सुबह-शाम टट्टी कराने वाला और सैर कराने वाला नहीं आ रहा है ! आज का यह भारतीय मध्य वर्ग आधुनिक इतिहास का सबसे कमीना, ग़लीज़, भ्रष्ट, स्वार्थी, लालची, अनैतिक और मज़दूरों से नफ़रत करने वाला मध्य वर्ग है ! साथ ही, यह पढ़ा-लिखा महामूर्ख, घोर अतार्किक, रूढ़िवादी, जातिवादी और साम्प्रदायिक मध्य वर्ग भी है ! यही मध्य वर्ग फासिस्टों का मुख्य सामाजिक समर्थन-आधार है ! आने वाले दिनों में उठने वाले सामाजिक तूफानों में आम लोग इसे भी सड़कों पर रगेदेंगे, पछीटेंगे, हुरपेटेंगे, गर्दनियायेंगे, हूँकेंगे और थूरेंगे ! निश्चय ही वह काफ़ी संतोषप्रद और आनंददायी दिन होगा !

(31मार्च, 2020)

No comments:

Post a Comment