सभी फासिस्ट ज्ञान, तर्क, न्याय और समानता की बातों से घृणा करते हैं ! वे सच से घृणा करते हैं और डरते हैं ! आधुनिक जीवन की सारी सुख-सुविधाओं का लाभ उठाते हुए भी वे धर्मग्रंथों को 'अथॉरिटी' मानते हैं, अतीत का महिमा-मंडन करते हैं, गरीबों को वैराग्यवाद और भाग्यवाद का पाठ पढ़ाते हैं और अंध-विश्वासों का प्रचार करते हैं !
निकटतम व्यक्ति पर भी फासिस्ट भरोसा नहीं करते ! उनका कोई विश्वसनीय मित्र नहीं होता !
फासिस्ट मज़दूरों से घृणा करते हैं और उन्हें मूक, झुकी पीठ वाले गुलामों के रूप में देखना चाहते हैं ! मज़दूर आन्दोलनों को कुचलने के लिए वे नरसंहार तक करने को तैयार रहते हैं !
फासिस्ट समाजवाद ही नहीं, बुर्जुआ लोकतंत्र से भी घृणा करते हैं ! नागरिक अधिकार और जनवादी अधिकारों की बात करने वालों को वे मसल-कुचल देना चाहते हैं !
फासिस्ट स्वतंत्र स्त्रियों से भय-मिश्रित घृणा से भरे होते हैं ! वे उन्हें डरावनी और संस्कृति-विनाशक प्रतीत होती हैं ! नैसर्गिक प्रेम से हमेशा वंचित होने के कारण सभी फासिस्ट रुग्णमानस होते हैं और यौन-पशु के समान होते हैं !
फासिस्टों के लिए कविता और कला पागलपन, बौद्धिक फ़ितूर और बेगानी चीज़ें होती है !
फासिस्टों के सपने सिर्फ़ दुस्वप्न होते हैं ! उनके सपनों में हँसते-खिलखिलाते बच्चे, फूल, नदी, समंदर और चहचहाते पक्षी नहीं आते ! वे सिर्फ़ झुकी हुई पीठ वालों पर शासन करने के, अपने काल्पनिक दुश्मनों से बदला लेने के सपने देखते हैं, श्मशान और वीरानगी के सपने देखते हैं, या सपने में एक भीड़ को अपना पीछा करते देखते हैं ! अक्सर वे अपनी ही मौत के सपने देखते हैं !
फासिस्ट हमेशा अतीत को भविष्य की जगह देखते हैं ! उनके पास मनुष्यता के लिए सुन्दर भविष्य-स्वप्न होते ही नहीं !
फासिस्टों का सौन्दर्य-बोध बेहद विकृत, अमानवीय और मनोरोग जैसा होता है ! मानव-सभ्यता ने जो कुछ भी सुन्दर और कलात्मक सृजित किया है, उसे वे नोच-चोंथ देना चाहते हैं, उसका ध्वंस कर देना चाहते हैं !
दिन-रात घृणा और बर्बर हिंसक क्रोध में जीना फासिस्टों की फ़ितरत होती है ! हमेशा उन्हें एक शत्रु की मौजूदगी का मिथ्याभास चाहिए, चाहे वह कोई "देशद्रोही" और "खतरनाक विधर्मी" हो या कोई "शत्रु देश" हो !
फासिस्ट पूँजीपतियों और साम्राज्यवादियों से कभी घृणा नहीं करते ! उनके प्रति वे सेवक और अनुचर-भाव से ओत-प्रोत रहते हैं ! इसे वे धर्माचरण मानते हैं !
फासिस्ट अनुत्पादक, सट्टेबाज़, अतिवृद्ध, खटिया पर पड़े सड़ते-बजबजाते पूँजीवाद की बुढ़ापे की मरियल और मन्दबुद्धि औलाद होते हैं जो आत्मा से बीमार होते हैं ! ये इतिहास के श्मशान घाट पर खोपड़ी के खप्पर में मानव-रक्त पीते और मानव-मांस खाते और तरह-तरह की तांत्रिक क्रियाएँ करते वे अघोरी और कापालिक हैं जो मरणोन्मुख पूँजीवाद को फिर से जीवनोन्मुख बनाने के असंभव स्वप्न पाले रहते हैं !
फासिस्ट के पास दिल नहीं होता कि आप उसे पिघला सकें ! उसके पास दिमाग नहीं होता कि आप उसे समझा सकें ! मनुष्यता को बचाना हो तो रास्ता एक ही होता है फासिज्म को कुचल देना ! अगर ऐसा नहीं ही हो पाया तो बर्बरता का साम्राज्य और मनुष्यता का विनाश होकर रहेगा !
(15मार्च, 2020)
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