धीरज धर्म मित्र अरु नारी।
आपद काल परखिए चारी।।
तुलसीदास के इस कथन में धर्म की जगह अपनी प्रतिबद्धता रख दें और नारी को हटा दें ( मित्र में उसे भी पुरुषों के साथ शामिल मान लें) तो यह बात सौ फीसदी सही लगती है !
आप जब किसी संकट में आते हैं तो आपकी खुद की भी परीक्षा हो जाती है और आपके साथियों-मित्रों की भी ! सच्चे और दिखावटी के बीच 'नीर-क्षीर-विवेक' हो जाता है !
इसलिए, किसी बड़े संकट के आने से पहले छोटे-छोटे संकटों का आते रहना अच्छा ही होता है ! किसी बड़े संघर्ष से पहले छोटे-छोटे संघर्षों का सिलसिला भी चलते रहना चाहिए ! ज़रूरी है !
(15मार्च, 2020)
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