लगातार अन्याय-अत्याचार करने वाले लोग अन्दर से, धीरे-धीरे पशु के समान हो जाते हैं, सभ्यता के आवरण में लिपटे भयंकर हिंस्र पशु के समान!
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लगातार, चुपचाप, बिना कोई प्रतिवाद या प्रतिरोध किये अन्याय-अत्याचार को बर्दाश्त करते चले जाने वाले लोग भी अन्दर से, धीरे-धीरे पशु के समान हो जाते है, सज्जनता और शालीनता के आवरण में लिपटे कायर, कातर, दयनीय पशु के समान !
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जब अन्याय-अत्याचार का घटाटोप हो और लोग विद्रोह करने का साहस न करें तो पूरे समाज से मनुष्यता का लोप होने लगता है ! अत्याचार करने वाले ही नहीं, उसे चुपचाप सहने वाले भी अपनी मनुष्यता खोते चले जाते हैं !
(9मार्च, 2020)
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