तानाशाह डर गया है कि लोगों ने डरना बन्द कर दिया है !
डरा हुआ आततायी और अधिक खूँख्वार हो जाता है !
पर ज़ुल्म जितना अधिक बढ़ता जाता है, प्रतिरोध की ज़मीन उतनी ही मज़बूत होती जाती है !
तानाशाह मुखौटा लगाता है और यह भूल जाता है कि नीचे वह अलफ़ नंगा है !
तानाशाह के खूनी गिरोहों को, भाड़े के हत्यारों और उन्मादियों के झुंडों को, शान्ति-पाठ करके अहिंसक भिक्षुओं की मण्डलियों में तब्दील नहीं किया जा सकता ! उन्हें सड़कों पर दौड़ा-दौड़ाकर बहुत तबीयत से पीटना होता है !
बर्बरों से बहस नहीं की जाती ! उनका फैसलाकुन ढंग से मुकाबला किया जाता है ! उन्हें शब्दों से नहीं, लट्ठ से समझाया जाता है !
लोग निर्भीक होकर सड़कों पर उतरने लगे हैं ! इसलिए फासिस्ट भयातुर हो उठे हैं ! संगठित होना और लड़ते हुए लम्बी लड़ाई की तैयारी करते जाना -- बस यही एकमात्र विकल्प है !
(8जनवरी, 2020)
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