Monday, February 17, 2020


छात्रों के बाद अब स्त्रियाँ और आम अवाम की जुबान पर नारा है: 'अत्याचार से आज़ादी', साम्प्रदायिकता से आज़ादी', जोरो-ज़ुल्म से आज़ादी', 'पूँजीवाद से आज़ादी',... ... ! तब कनफटा गुंडा दैत्यनाथ उर्फ़ अन्याय सिंह बिष्ठा कह रहा है कि आज़ादी के नारे लगाने वालों पर देशद्रोह के केस ठोंक देगा ! उधर तड़ीपार अमिट स्याह कल दोनों हाथ उठाकर चुनौती दे रहा था कि CAA वापस नहीं होगा, जो चाहे कर लो !

इन धमकियों और चुनौतियों के पीछे की सच्चाई यह है कि फासिस्टों के सरगना इससमय बदहवास हैं, उनकी पुंगी बज रही है ! डरे हुए फासिस्ट बेशक ज़ुल्म का कहर बरपा करते हैं, पर जनता जब जाग चुकी होती है तो उन्हें उनकी हर कार्रवाई का तुर्की-ब-तुर्की जवाब मिलता है ! लोग अब ज्यादा से ज्यादा अभय होते जा रहे हैं ! सत्ता के खूनी तंत्र का भय तिरोहित होता जा रहा है !

आने वाले दिनों में फासिस्ट जोरो-ज़ुल्म का जो नंग नाच सड़कों पर करने वाले हैं, उसका मुकाबला कैसे किया जा सकता है ?

पहली बात यह कि न सिर्फ़ देश में हज़ारों शाहीन बाग़ बनाने होंगे, बल्कि उन्हें टिकाऊ और दीर्घजीवी बनाना होगा ! सड़कों और सार्वजनिक स्थानों पर बैठे परिवारों के लम्बे समय तक बैठने का मुकम्मल इंतज़ाम करना होगा ! इंतजामिया कमेटियाँ और स्वयंसेवक दस्ते बनाने होंगे ! सड़कों पर चौराहों-मैदानों पर अस्थायी बस्तियां बसा देनी चाहिए और भंडारे, पानी, अस्थायी शौचालय आदि की सुविधा जन-सहयोग से तैयार की जानी चाहिए ! किसी भी तरह से एक भी बस्ती पुलिस-दमन से उजड़ने न पाए, इसकी पूरी कोशिश होनी चाहिए!

शाहीन बाग़ की ही तरह कलाकारों-साहित्यकारों-बुद्धिजीवियों की टोलियाँ लगातार इन सत्याग्रह-स्थलों पर आते रहनी चाहिए ! सभी धरना-स्थलों पर डाक्टरी सुविधा का इंतज़ाम होना चाहिए और वहाँ मौजूद छोटे बच्चों को पढ़ाने-लिखाने का काम भी स्वयंसेवकों को करना चाहिए !

छात्रों-युवाओं को इस संघर्ष में विशेष भूमिका निभानी है, जो वे निभा भी रहे हैं ! उन्हें अपना एक सत्र देश की जनता की मुक्ति के लिए कुर्बान करना चाहिए और इस वर्ष की परीक्षाओं का बहिष्कार करना चाहिए ! उन्हें अपनी पूरी ताक़त झोंककर शाहीन बाग़ जैसे संघर्षों के साथ खड़ा होना होगा और प्रचार दस्ते बनाकर बस्ती-बस्ती जाना होगा ! कुछ-कुछ अंतराल पर वैसी रैलियाँ लगातार होनी चाहिए और मार्च निकालने चाहिए जैसा इनदिनों हो रहा है !

एक विशेष बात यह है कि तमाम बुर्जुआ पार्टियां इस सैलाब से किनारे बैठी हैं ! इसमें बहना और नेतृत्व हड़पना उनके बूते की बात ही नहीं है ! अगर सूझ-बूझ से काम लिया जाए तो ऐसे स्वतःस्फूर्त जन-उभारों को नयी क्रांतिकारी शक्तियों के उद्भव और प्रशिक्षण का केंद्र बनाया जा सकता है !

अप्रैल से NRC के पहले कदम के तौर पर NPR की शुरुआत हो रही है ! इसके व्यापक बहिष्कार के लिए सघन और व्यापक जन-अभियान चलाना होगा !

धरना-स्थलों और जुलूसों पर ज़्यादा से ज़्यादा वीडियो-रिकॉर्डिंग की तैयारी रहनी चाहिए ताकि पुलिसिया ज़ुल्म को जल्दी से जल्दी वायरल किया जा सके ! पुलिस वाले, थानों-हवालातों में, मोबाइल आदि छीन लेते हैं ! वहाँ लोगों पर जो ज़ुल्म होते हैं और पुलिस वाले जिसतरह गालियों की बौछार करते हैं, उन काली करतूतों को रिकॉर्ड करके लोगों में फैलाने के लिए खुफिया कैमरे का इस्तेमाल किया जाना चाहिए ! पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों से हुई बातचीत ज़रूर रिकॉर्ड की जानी चाहिए ताकि उनका असली चेहरा लोगों के सामने नंगा किया जा सके ! सामान्य और सस्ते खुफिया कैमरे करोल बाग़ के गफ्फार मार्किट जैसी जगहों पर आसानी से मिल जाते हैं !

एक और ज़रूरी बात ! धरना-स्थलों और रैलियों-जुलूसों में जहाँ कहीं भी गोदी मीडिया वाले दिखाई पड़ें तो उन्हें नारे लगाकर भगा देना होगा ! गोदी मीडिया के जन-बहिष्कार को ज़्यादा से ज़्यादा प्रभावी बनाना होगा !

इस मुहिम में सक्रिय साथियों को विचारार्थ मैं एक और सुझाव देना चाहती हूँ ! "NO CAA-NO NPR-NO NRC" के नारे के साथ हमें "NO EVM" भी अवश्य जोड़ देना चाहिए !

अंत में एक बेहद ज़रूरी बात ! बेशक ऐसा जन-उभार फासिस्टों को कुछ पीछे हटाने के लिए मज़बूर कर सकता है ! पर हमें किसी मुगालते में नहीं जीना चाहिए ! फासिज्म के ख़िलाफ़ निर्णायक लड़ाई, फासिज्म को नेस्तनाबूद करने की लड़ाई एक लम्बी लड़ाई होगी ! सत्ताच्युत होकर भी फासिस्ट आज की पूंजीवादी व्यवस्था में, समाज में बने रहेंगे और समय-समय पर खूनी उत्पात मचाते रहेंगे ! फासिज्म-विरोधी संघर्ष पूंजीवाद-विरोधी संघर्ष की ही एक कड़ी है !

(23जनवरी, 2020)

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