वह सत्रहवीं शताब्दी थी ! गतयौवन विजयनगर साम्राज्य अपने क्षीण वैभव और म्लान गरिमा के साथ अंतिम साँसें गिन रहा था I राजदरबार में भ्रष्टाचार, चाटुकारिता, पतनशीलता और षड्यंत्रों का बोलबाला था I संस्कृत के अत्यंत प्रतिभाशाली कवि वांछानाथ दरबार के राजकवि थे ! वह अन्य राजपुरुषों की तरह भ्रष्टाचार, षड्यंत्रों और चापलूसी में समय खर्च करने की जगह अपने सृजन-कर्म में तल्लीन रहते थे I
ईर्ष्यालु दरबारियों ने राजा के कान भरने शुरू कर दिए कि वांछानाथ अहंकारी है, ऐसा है, वैसा है, राजा का अहित चाहता है... वगैरह-वगैरह ! वांछाराम सच्चे सृजनधर्मी और अपने आदर्शों को जीने वाले व्यक्ति थे I जैसे ही उन्हें इन सारी बातों का पता चला, उनका मन खिन्न हो गया ! परजीवी सामंती अभिजनों के विरुद्ध उनकी आत्मा ने विद्रोह कर दिया I उन्होंने पद और सुविधाओं को लात मार दिया और राजधानी छोड़ अपने गाँव चले गए I उनका विद्रोह यहीं नहीं रुका I उन्होंने जाति-वर्ण व्यवस्था के विरुद्ध भी विद्रोह कर दिया और ब्राह्मण होने के बावजूद एक भैंसा खरीदकर उससे खेत जोतने लगे, जबकि कृषि-कर्म ब्राह्मणों के लिए निषिद्ध था I
वांछानाथ ने अपने भैंसे की प्रशस्ति में सौ श्लोकों की पुस्तक लिखी:'महिषशतकम्'! उनका तर्क यह था कि एक सच्चा कवि राजा और धनकुबेर राजपुरुषों-श्रेष्ठियों की प्रशस्ति में कविता क्यों लिखे जो परजीवी और आततायी होते हैं ! उससे अच्छा तो यह है कि मैं अपने भैंसे की प्रशस्ति गाऊँ जो मेरा खेत जोतता है और मेरा अन्नदाता है !
'महिषशतकम्' का एक श्लोक है:
'मत्तावित्तमदैर्दुराग्रहभृता चाण्डालरंडासुताः
तेsमी दुर्धनिकानकामपरूषव्यहारकवलेयका:I
तेषां वक्त्रविलोकदनादमवरं स्थूलांडकोषेक्षणम्
एवं श्रीमहिषेन्द्र लभ्यत इह प्रायेण मिष्ठासनम्II'
इस श्लोक में वांछानाथ कहते हैं कि मैं अनुचित तरीकों से धन-संचय करने वाले मदमत्त धनकुबेरों से कोई बात-व्यवहार क्यों रखूँ ! ऐसे दुष्टों का मुँह देखने से तो ज्यादा अच्छा यह है कि तुम्हारे बड़े-बड़े अंडकोषों को देखा जाए ! क्योंकि हे महिषेन्द्र ! तुम्हारी कृपा से हमलोगों को सुबह-शाम मीठा अन्न तो खाने को मिल जाता है !
कहने की ज़रूरत नहीं कि वांछानाथ सत्ताद्रोही और श्रमशील जनों में निष्ठा रखने वाले कवि थे और यशपिपासु, परजीवी, समझौतावादी प्रतिष्ठानधर्मियों से घृणा करते थे ! हमारे समय में भी इन दोनों प्रकार की जमातें मौजूद हैं ! समस्या यह है कि आज के बहुतेरे पद-पीठ-पुरस्कार-प्रतिष्ठा-धर्मी कवि-लेखक ऐसे हैं जो राज-दरबारों में भी कृतकृत्य भाव से उपस्थित होते रहते हैं और श्रमजीवियों के प्रति अपनी निष्ठा भी जाहिर करते रहते हैं ! ये वे लोग हैं जो वांछानाथ की प्रशंसा तो करते हैं, लेकिन वांछानाथ के भैंसे की जगह राजपुरुषों के अंग-विशेष का दर्शन करके आह्लादित हुआ करते हैं !
(18अक्टूबर, 2019)
No comments:
Post a Comment