CAA और NRCके ख़िलाफ़ जनांदोलन समाज में अब और गहराई तक पैठ गया है I उत्तर प्रदेश के छोटे-छोटे शहरों-कस्बों से भारी विरोध-प्रदर्शन की खबरें आयी हैं ! दिल्ली तो दिन भर उबलता ही रहा, देश के अन्य हिस्सों से भी ऐसी ही खबरें आती रही हैं !
बदहवास फासिस्ट सत्ताधारी एक और तो टीवी चैनलों पर आकर तरह-तरह की सफाइयाँ दे रहे हैं, पर साथ ही धमका भी रहे हैं ! दमन-चक्र एकदम से तेज़ हो गया है ! इसमें कनफटा जोगी और येदियुरप्पा की सरकारें सबसे आगे हैं ! कर्नाटक के कई शहरों में कर्फ्यू लगा दिया गया है I उ.प्र. में हज़ारों लोग गिरफ्तार किये गए हैं और 6 लोगों के मरने की खबरें आ रही हैं ! घायलों की संख्या सैकड़ों में हो सकती है ! बदला लेने की अपनी धमकी पर अमल करते हुए जोगी ने प्रसिद्ध मानवाधिकार-कर्मी दारापुरी और अधिवक्ता मो.शोएब को उनके घरों से अपनी पुलिस द्वारा उठवा लिया है ! अबतक 3000 लोगों को नोटिसें भेजी जा चुकी हैं, जिनमें से ज्यादातर नागरिक अधिकार कर्मी हैं ! अब फर्जी मुक़दमों और गिरफ्तारियों का सिलसिला धुँआधार चलेगा ! लेकिन नागपुरी संतरे अभी भी इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं कि ये दमनात्मक कार्रवाइयाँ जन-प्रतिरोध की आग में घी डालने का ही काम करेंगी ! दमन से ऐसे आन्दोलनों को कत्तई दबाया नहीं जा सकता !
एक बहुत अच्छी बात यह है कि आन्दोलन को 'हिन्दू-मुस्लिम' करके बाँटने की हर कोशिश अबतक नाकाम सिद्ध हुई है I सड़कों पर उतरने वालों में मुस्लिमों से बहुत अधिक संख्या हिन्दुओं की रही है ! महानगरों में सड़कों पर भारी संख्या छात्रों-युवाओं की नज़र आ रही थी, पर अब छोटे-छोटे शहरों में बहुसंख्यक आम नागरिक सड़कों पर दीख रहे हैं !
अगर कोई नकारात्मक बात अबतक दिखी है तो वह यह कि अचानक प्रदर्शनों में घुस आये मुँह पर रुमाल बाँधे मुट्ठी भर अराजक तत्वों ने कई जगहों पर तोड़फोड़ और हिंसा फैलाने की कोशिश की ! कल लखनऊ में ऐसा ही हुआ था और आज शाम को दिल्ली में दिल्ली गेट पर भी ऐसा ही हुआ ! उ.प्र. के कई छोटे शहरों में ऐसी भड़काऊ कार्रवाइयाँ थोड़े से अज्ञात तत्वों ने की ! ऐसे तत्वों के प्रति बहुत सावधानी बरतनी होगी ! ऐसी कार्रवाई करने वाले संघी घुसपैठिये भी हो सकते हैं ! उन्हें ऐसी हरक़तों में महारत हासिल होती है ! कई बार वे पकड़े भी जा चुके हैं ! कल ही ऐसे कुछ लोग बंगाल में पकड़े गए ! अगर वे आन्दोलन के भीतर के ही अति-उत्साही अराजक तत्व हों, तो भी उनकी शिनाख्त करके उनके प्रति सख्ती बरतनी होगी और उन्हें धक्के मारकर प्रदर्शनों से बाहर करना होगा !
मोहल्ले-मोहल्ले में मीटिंगें करके लोगों को अराजक तत्वों पर नज़र रखने के लिए कहना होगा ! लोगों को बताना होगा कि अराजक हिंसा और तोड़फोड़ से आन्दोलन के मक़सद को भारी नुकसान पहुँचेगा I हर हाल में इस आन्दोलन को लंबा चलाना होगा और यह तभी संभव होगा जब इसका स्वरूप जनता की ओर से शांतिपूर्ण बना रहे !
ज़रूरत इस बात की है कि अब इस आन्दोलन को व्यापक और देशव्यापी नागरिक अवज्ञा आन्दोलन और सत्याग्रह की शक्ल दी जाए ! छात्रों को कक्षाओं और परीक्षाओं के सामूहिक बहिष्कार का रास्ता पकड़ना चाहिएI कर्मचारियों का दफ्तरों के बहिष्कार के लिए आह्वान किया जाना चाहिए ! मज़दूर यूनियनों पर दबाव बनाया जाना चाहिए कि वे एकदिनी रस्मी हड़ताल का रास्ता छोड़कर लम्बी हड़तालों और घेराव के रास्ते पर उतरें और आम मज़दूरों में व्यापक प्रचार अभियान चलाकर उन्हें बताया जाना चाहिए कि NRC जैसी चीज़ आम गरीबों के सामने कितनी अधिक दिक्कतें पैदा कर देगी ! अगर आन्दोलन के लिए मोहल्ला कमेटियाँ बन पातीं तो लोगों को इस बात के लिए तैयार किया जा सकता था कि शहर की किसी सड़क या कचहरी-कलक्ट्रेट जैसे किसी स्थल को चुनकर वे सपरिवार हंडा-परात, बोरिया-बिस्तर सहित वहीं डेरा डाल दें ! राजधानी और बड़े शहरों में किसी अहम सार्वजनिक स्थल पर खाने-पीने, रहने के इंतज़ाम के साथ लम्बे समय के लिए भी घेरा-डेरा डाला जा सकता है ! भारत में भी तहरीर चौक जैसा जमावड़ा किया जा सकता है ! इस बात का भी अध्ययन किया जाना चाहिए कि सांतियागो या हांगकांग जैसे शहरों में लाखों की तादाद में प्रदर्शनकारी अपने प्रदर्शनों को हफ़्तों और महीनों तक किस तरह जारी रख पाते हैं !
चूँकि आन्दोलन स्वतःस्फूर्त है और इसका कोई संगठित क्रांतिकारी नेतृत्व नहीं है, इसलिए ये सारी चीज़ें कठिन ज़रूर हैं, लेकिन इसमें सक्रिय प्रबुद्ध लोग और क्रांतिकारी शक्तियाँ अगर इस बात को समझें और तदनुरूप प्रयास करें तो एकदम असंभव भी नहीं है ! अगर इन प्रयासों में पूरी सफलता न मिले तो भी इन प्रयोगों से आगे के लिए कुछ बेहद ज़रूरी शिक्षाएँ ज़रूर मिलेंगी ! संघर्ष के ऐसे रूप व्यापक जन-पहलकदमी जागृत करने में विशेष रूप से सहायक सिद्ध होंगे ! फिर तो जन-समुदाय की सामूहिक सर्जनात्मकता स्वयं ही संघर्ष के नए-नए सर्जनात्मक रूपों का आविष्कार करने लगती है !
इसलिए, असफलता की चिंता किये बिना ऐसी कोशिशें तो की ही जानी चाहिए ! संघर्षों में असफलताओं के बीच से ही सफलता के रास्ते मिलते हैं और असफल प्रयोगों से भी कई बार बेशकीमती सबक हासिल हो जाते हैं !
(20दिसम्बर, 2019)
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