बात सही है ! फासिस्ट अंधे होते हैं ! वे जितनी अक़ल भिड़ाते हैं, उतने ही आत्मघाती कदम उठाते हैं ! रंगा-बिल्ला की जोड़ी ने यही किया है ! जो सोचा, वह दाव एकदम उलटा पड़ गया !
सोचा यह था कि CAA और NRC लाकर आबादी के साम्प्रदायिक विभाजन को और तेज़ कर देंगे और मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाकर भय और आतंक के साए तले जीने के लिए मजबूर कर देंगे I हुआ इसके ठीक उलटा ! आज देश भर में हुए प्रदर्शनों में छात्रों-युवाओं से भी अधिक जो आम नागरिक आबादी उमड़ पड़ी थी उसमें मुसलमानों से कई गुना अधिक हिन्दू शामिल थे और वे सिर्फ़ बौद्धिक समाज के लोग ही नहीं थे बल्कि उनसे बहुत अधिक एकदम आम लोग थे ! साम्प्रदायिक विभाजन की जगह अवाम के बीच साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता की लहर फ़ैलने लगी है जो एक शुभ संकेत है !
दूसरी बात, देश भर में उठ खड़े हुए इस आन्दोलन को कुचलकर मोदी-शाह गिरोह अपने आतंक-राज की हनक और धमक को जनता के दिलों में बैठा देना चाहता था ! उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में पूरे राज्य में धारा-144 लगा दिया गया था ! अधिकांश जगहों पर प्रदर्शनों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने पूरा जोर लगा दिया ! दिल्ली, बंगलुरु, लखनऊ -- आदि शहरों में जमकर गिरफ्तारियाँ हुईं, आँसू गैस के गोले चले, पानी की बौछारें की गयीं, लेकिन लोग निर्भीक होकर सड़कों पर उतरे और डटे रहे ! बात सही है, आतंक फैलाने की कोशिश जब हद से अधिक होती है, तो आतंक ख़तम होने लगता है ! जब लोगों को बहुत अधिक डराया जाता है तो लोग डरना बंद कर देते हैं !
तीसरी बात, चन्द जगहों को छोड़कर विरोध-प्रदर्शन पूरे देश में शांतिपूर्ण रहे ! सिर्फ़ लखनऊ और मंगलुरु में चन्द अराजक तत्वों ने हिंसा भड़काने की कोशिश की, लेकिन वहाँ भी भारी आबादी शांतिपूर्वक सड़कों पर डटी रही ! दिल्ली और बंगलुरु जैसी जगहों पर भारी गिरफ्तारियों और पुलिस ज्यादती के बावजूद लोगों ने संयम बनाए रखा ! लोग खुद चौकन्ने थे कि जामिया और अलीगढ़ की तरह खुद हिंसा भड़काकर पुलिस और संघी गुण्डे आन्दोलन को बदनाम करने में सफल न हो सकें ! इसका साफ़ मतलब यह है कि लोग इसबार लम्बी लड़ाई के लिए तैयार होकर सड़कों पर उतर रहे हैं ! आने वाले दिनों में CAA और NRC के विरुद्ध एक देशव्यापी नागरिक अवज्ञा आन्दोलन की ज़मीन तैयार होने लगी है !
चौथी बात, पहले से ही लकवाग्रस्त संसदीय विपक्षी दलों के कुछ नेता आज के आन्दोलन में शामिल भले ही रहे हों, लेकिन नेतृत्व की कमान कहीं भी किसी चुनावी पार्टी के हाथों में नहीं थी ! सबकुछ पूरी तरह से आम लोगों की पहलकदमी से हो रहा था ! जनता इन बेईमानों को ठुकराकर अब सड़कों पर उतर रही है ! उसे इनसे कोई उम्मीद नहीं है !
पाँचवी बात, 1974 के बाद पहली बार पूरा देश छात्रों-युवाओं के इतने प्रचंड देशव्यापी उभार का साक्षी हो रहा है ! न सिर्फ़ देश के अधिकांश प्रमुख उच्च शिक्षा संस्थानों के छात्र सड़कों पर हैं, बल्कि छोटे शहरों और गाँवों-कस्बों के युवा भी आन्दोलन में उतर पड़े हैं ! यह बहुत अच्छा संकेत है कि कैम्पसों से बगावत की आवाज़ उठी है ! और अब इस आवाज़ के साथ नागरिक भी सड़कों पर उतरने लगे हैं ! सिनेकर्मी, रंगकर्मी और लेखक-बुद्धिजीवी ही नहीं, आम लोग भी फासिस्ट आतंक के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतर पड़े हैं ! अब चुनौती यह है कि इस जनांदोलन की स्वतःस्फूर्तता को एक सुचिंतित दिशा दी जाए और धीरज के साथ लम्बी तैयारी और लम्बे संघर्ष का रास्ता चुना जाए ! इस आन्दोलन की लपट को गाँवों और शहरों के मेहनतकशों की बस्तियों तक पहुँचाना होगा ! भगतसिंह ने भी किसी क्रांतिकारी आन्दोलन की सफलता के लिए इसे ही बुनियादी गारण्टी बताया था और छात्रों-युवाओं के नाम अपने अंतिम सन्देश में इसी बात पर बल दिया था !
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यह ध्यान रखना होगा कि 1974 दुहराया न जाए और छात्रों-युवाओं के ज्वार को नियंत्रित करने वाला कोई "लोकनायक", "जननायक", "लोकबन्धु", "लोकहृदय-सम्राट", कोई जे.पी.-ठेपी, वी.पी.-पी.पी. या कोई अन्ना-गन्ना ऊपर से टप्प से न टपक पड़े, कोई आन्दोलन में घुसकर प्रेशर कूकर के सेफ्टी वॉल्व का काम न करने लगे, या आन्दोलन की पीठ पर सवार होकर कोई कुटिल-कपटी नौटंकीबाज ख़ुद सत्ता तक पहुँचने की, या बुर्जुआ संसदीय राजनीति में दाखिल होने की राह न बनाने लगे ! और हाँ, पराजितमना, कायर-कुलीन सोशल डेमोक्रेट्स के "शान्ति-पाठों" से भी सावधान रहना होगा !
याद रखिये, चन्द आन्दोलनों से फासिस्ट अपनी राह बदलकर बुर्जुआ डेमोक्रेट नहीं बन जायेंगे ! फासिस्टों का ह्रदय-परिवर्तन नहीं होता, उन्हें इतिहास की कचरा-पेटी के हवाले करना होता है ! इसलिए ढीला पड़ने की ज़रूरत नहीं है ! याद रखिये, जहाँ डिटेंशन कैम्प बनेंगे वहाँ कुछ ही दिनों बाद कंसंट्रेशन कैम्प भी बनेंगे और गैस चैम्बर भी बनेंगे ! देश को एक खूनी दलदल बनने से रोकने के लिए एक लम्बी लड़ाई सभी मोर्चों पर लड़नी होगी ! हत्यारे अगर इतिहास दुहरा रहे हैं तो हमें भी इतिहास के सबकों के हिसाब से ही आचरण करना होगा !
संघर्ष ! संघर्ष ! और संघर्ष ! सिर्फ़ एक लंबा संघर्ष जो लहरों की तरह, आरोहों-अवरोहों से होकर जारी रहे !
अब जबतक यह बीमार, सड़ता हुआ पूँजीवाद रहेगा, तबतक फासिस्ट भेड़िये इंसानी बस्तियों पर हमला बोलते रहेंगे ! वे पीछे भी हटेंगे तो लौट-लौटकर आयेंगे ! इस सदी में फासिज्म-विरोधी संघर्ष उदार पूँजीवादी जनवाद की बहाली का संघर्ष नहीं हो सकता ! उसे पूँजीवाद-विरोधी संघर्ष की ही कड़ी बनाना होगा !
(19दिसम्बर, 2019)
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