Thursday, May 02, 2019

ये आदमी अव्वल दर्ज़े का मूर्ख, परले दर्ज़े का झूठा, हद दर्जे का असभ्य, कुंठित,बेगैरत, छिछोरा, लम्पट, महाभ्रष्ट और अपराधी ज़ेहनियत, साज़िशी फ़ितरत तथा हत्यारे दिमाग़ वाला इंसान है, यह तो पहले से ही पता था I अब पता चला कि यह पुराना भिखमंगा भी है, लम्बे तज़रबे वाला ! ऐसे इंसान को न तो अम्बानी-अदानी के चौखट पर सरेआम सज़दे करने में कोई झिझक होगी, न ही साम्राज्यवादियो के दर पर कटोरा लेकर खड़े होने में कोई शर्म महसूस होगी ! जन्म से ही रुग्ण, विकलांग और अब असाध्य ढाँचागत संकट से ग्रस्त भारतीय पूँजीवाद को अपनी मैनेजिंग कमेटी का ऐसा ही चीफ़ चाहिए था ! हत्यारा और बर्बर तो यह अपने फासिस्ट पूर्वजों जैसा ही है, पर मूर्ख और कुसंस्कृत उनसे भी कई गुना ज़्यादा है !

(29अप्रैल, 2019)



******



किस्सा दिलचस्प है और खौफ़नाक भी और घिनौना भी ! एक पुराना भिखमंगा तीन-तिकड़म और तरह-तरह की साजिशें करके, रस्ते की सारी बाधाओं और लोगों को हटाकर, खून-खराबा करवाकर, रोकर, गाकर, नाचकर, चरण-चम्पी करते हुए टांग खींचकर, राज-सिंहासन तक जा पहुँचता है ! उसके आसपास जो तमाम वजीर हैं, दीवान हैं, दरबारी हैं, शहर-काज़ी हैं, मनसबदार हैं, कारिंदे हैं, मुसाहिब हैं; वे सभी पुराने मुजरिम और जरायमपेशा लोग हैं -- हर किस्म के जुर्मे-ख़फ़ीफ़, जुर्मे-शदीद, जुर्मे-कबीर वगैरा के माहिर उस्ताद ! इनमें कोई जेबतराश है, कोई गली का शोहदा है, कोई पत्तेबाज है, कोई तड़ीपार है, कोई दलाल है, कोई हवाला कारोबारी है, कोई काला बाजारिया है, कोई तस्कर है, कोई उचक्का है, कोई दंगाई है, कोई रेपिस्ट है, कोई डाकू है, कोई भाड़े का खूनी है ! और जो ऐसा नहीं है वह बुज़दिल बेगैरत इंसान है ! इनके आगे-पीछे इनामो-इकराम और वजीफों के लिए गू तक चाटने को तैयार अदब और आर्ट के उस्ताद हैं, ढेरों आलिम-फ़ाज़िल लोग हैं और बहुतेरे अक्ल के अंधे गाँठ के पूरे, डरपोंक भांड-भडुक्के और मसखरे हैं I इक्कीसवीं सदी की नयी सोसाइटी के यही इज्ज़तदार शहरी हैं, तहज़ीब के ठेकेदार हैं !

यही लोग मुल्क को नयी सदी में तरक्क़ी की सीढ़ियों पर आगे ले जाने के दावे कर रहे हैं और तबाही के मंजर को ख़ूबसूरत नज़ारा बता रहे हैं और ख़ब्ती-जुनूनी लोगों की भीड़ के साथ ही कुछ डरे हुए और कुछ कमीने-लालची और कुछ घोंचू किस्म के लोग उनकी हाँ में हाँ मिला रहे हैं !

मशहूर जर्मन ड्रामानिगार जनाब बेर्टोल्ट ब्रेष्ट साहिब ने पिछली सदी की जर्मनी के ऐसे ही नज़ारे पर एक ड्रामा लिखा था : 'तीन टके की नौटंकी' (थ्री पेनी ऑपेरा) I एक नॉवेल भी लिखा था : 'तीन टके का नॉवेल' (थ्री पेनी नॉवेल) ! लेकिन हिन्दुस्तान में ऐसा लिखेगा कौन ? इसके लिए हुनर और फ़न के अलावा कलेजे में दम भी तो चाहिए ! और इस मुल्क के अदीबों और फ़नकारों में ये चीज़ इनदिनों शाज़ोनादिर हो चली है, यानी बहुत कम पायी जाती है !

(29अप्रैल, 2019)

******



सपने इतने भी सच्चे नहीं लगने चाहिए कि ज़िन्दगी ही झूठी लगने लगे !

...

...

ज़िन्दगी इतनी भी "ठोस" न लगने लगे कि इंसान सपने देखना ही भूल जाए !

(ऑटो में बजते फ़िल्मी गीत को सुनते हुए कुछ लौकिक चिन्तन !

(4मई, 2019)

No comments:

Post a Comment