एक सज्जन और कायर बुद्धिजीवी मित्र से दो बातें
इतना डरते क्यों हो भाई !
दुखों के क़रीब जाने से मर नहीं जाओगे I
तक़लीफदेह जीवन न तुम्हारा अंत कर सकता है
न ही यातना गृहों की यंत्रणा I
तुम्हारे अंत की शुरुआत
तुम्हारे भय से होती है I
तुम्हारा कारागृह है
तुम्हारा शांत, सुरम्य, सुरक्षित, सभ्य-शालीन नागरिक जीवन I
तुम्हारे समझौते हैं
तुम्हारी गुलामी के ज़िंदा दस्तावेज़ I
और फिर मौत से इतना डरते क्यों हो यार !
ऐसे जीकर भी कौन सा तीर मार लिया ?
हासिल क्या कर लिया ?
-- कद्दू !
और बनकर क्या रह गए ?
-- पद्दू !
(16जनवरी, 2019)
इतना डरते क्यों हो भाई !
दुखों के क़रीब जाने से मर नहीं जाओगे I
तक़लीफदेह जीवन न तुम्हारा अंत कर सकता है
न ही यातना गृहों की यंत्रणा I
तुम्हारे अंत की शुरुआत
तुम्हारे भय से होती है I
तुम्हारा कारागृह है
तुम्हारा शांत, सुरम्य, सुरक्षित, सभ्य-शालीन नागरिक जीवन I
तुम्हारे समझौते हैं
तुम्हारी गुलामी के ज़िंदा दस्तावेज़ I
और फिर मौत से इतना डरते क्यों हो यार !
ऐसे जीकर भी कौन सा तीर मार लिया ?
हासिल क्या कर लिया ?
-- कद्दू !
और बनकर क्या रह गए ?
-- पद्दू !
(16जनवरी, 2019)
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