Friday, January 18, 2019


आज रोज़ा लक्जेम्बर्ग की शहादत के 100 वर्ष पूरे हो रहे हैं ! इस महान जर्मन कम्युनिस्ट नेत्री और सिद्धांतकार की 15 जनवरी, 1919 को मज़दूरों, सैनिकों और नाविकों के जन-उभार के विरुद्ध संगठित प्रतिक्रांति के दौरान बर्बरतापूर्वक ह्त्या कर दी गयी I यह प्रतिक्रांति 15 वर्षों बाद तब पूरी हुई जब नात्सियों ने सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लिया I

रोज़ा ने दूसरे इण्टरनेशनल के काउत्स्कीपंथी संशोधनवादियों और अंध-राष्ट्रवादियों के विरुद्ध जमकर सैद्धांतिक-राजनीतिक संघर्ष किया और मार्क्सवाद की क्रांतिकारी अंतर्वस्तु की हिफाज़त की I बेशक साम्राज्यवाद की सैद्धांतिक समझ बनाने में उनसे कुछ चूकें हुईं तथा, बोल्शेविक पार्टी-सिद्धांतों और सर्वहारा सत्ता की संरचना और कार्य-प्रणाली पर भी लेनिन से उनके कुछ मतभेद थे ( जिनमें से अधिकांश बाद में सुलझ चुके थे और रोज़ा अपनी गलती समझ चुकी थीं ), लेकिन रोज़ा अपनी सैद्धांतिक चूकों के बावजूद, अपने युग की एक महान कम्युनिस्ट क्रांतिकारी नेत्री थीं I उनकी गलतियों के बावजूद उनकी महानता को रेखांकित करते हुए, उन्हें श्रद्धांजलि देते समय लेनिन ने कहा था कि गरुड़ कभी-कभी आँगन की मुर्गी की ऊँचाई पर भी उड़ सकता है, पर आँगन की मुर्गी कभी गरुड़ की ऊँचाई पर नहीं उड़ सकती I

महान रोज़ा को हमारा लाल सलाम ! सौ-सौ इन्क़लाबी सलाम !!

(15जनवरी,2019)

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