Friday, February 09, 2018

साहित्य की दुनिया की.....



साहित्य की दुनिया की 'पार्टटाइम' निवासी ही हूँ, या यूं कहें कि बस थोड़ी आवाजाही ही रहती है I इस दुनिया के बाहर वाली दुनिया में कितने लम्पटों को अबतक पीटा है, याद नहीं I साहित्य की दुनिया में तो सिर्फ शाब्दिक समीक्षा ही होती है शारीरिक समीक्षा का प्रावधान नहीं I पर बाहरी होने के कारण मेरे जैसे लोग इस नियम को तोड़ भी सकते हैं I
वे प्रगतिशील युवा तिलंगे जो दारू पीकर महफिलों में स्त्रियों के बारे में अश्लील बातें करते रहते हैं, उन्हें बस इतना बता देना चाहती हूँ कि मुझे हिन्दी की दब्बू या विवादों से डरने वाली लेखिका न समझें I सड़क पर घसीट कर जूतों से पीटती हूँ, सारी सृजनशीलता को सड़क पर रायते की तरह फैला देती हूँ I

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