Sunday, December 03, 2017

'शानदार शहर की ओर' से एक अंश



कवि नहीं है कोई 'छोटा-मोटा भगवान।' प्राथमिकता के आधार पर किसी रहस्यमय नियति के द्वारा, इसे उन तमाम को छोड़कर जो दूसरी कारीगरी और पेशों का अनुसरण करते हैं, नहीं चुना गया है। मैंने अक्सर माना है कि सर्वश्रेष्ठ कवि वह है जो हमारे लिए नित रोटी बनाता है : हमारे सबसे नज़दीक का रोटी बनाने वाला जो अपने को भगवान समझने का सपना तक नहीं देखता। वह तो आटा गूँथने, तंदूर में लगाने, सुनहरी रंगों में पकाने और हम तक पहुँचाने का अपना विनीत और शानदार काम करता है। मानो वह कर्तव्य हो एक साथी का।
और यदि कवि इस सीधी सी चेतना को उपलब्ध करने में सफल हो जाए तो वह भी एक असीम गतिविधि में एक तत्व के रूप में बदल जाएगा, एक सीधे या जटिल साँचे में जिससे एक समुदाय की इमारत स्थापित होती है, मनुष्यता को घेरे हुए स्थितियों का परिवर्तन, मनुष्यता के उत्पादों : रोटी, सत्य, सुरा, स्वप्न का प्रदान। यदि प्रत्येक और सब हाथों तक, अपने दायित्व के हिस्से को, तमाम लोगों के रोज़मर्रा के कार्यों तक अपनी कोशिश और अपनी मासूमियत को फैलाने के लिए कवि इस अनंत संघर्ष का भागीदार बनता है, तो कवि को अवश्य भागीदार बनना चाहिए, कवि भागीदार बनेगा -- मिठास में, रोटी में, सुरा में, आदमी के सम्पूर्ण स्वप्न में। साधारण जन होने की मात्र इसी अनिवार्य राह से हम कविता में सशक्त प्राण फूँक सकते हैं जो थोड़ा-थोड़ा कर हर युग में कमतर होते गए हैं ठीक जैसे हम कमतर होते गए हैं हर युग में।
--- पाब्लो नेरूदा

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