Sunday, December 03, 2017




कवि का दायित्व


उसके लिए जो कोई भी इस शुक्रवार की सुबह
समुद्र को नहीं सुन रहा है, उसके लिए जो भी घर या दफ्तर के
दड़बे में क़ैद है, कारखाने या स्त्री में
या गली या खदान में या सख़्त जेल की कोठरी में :
उसके लिए मैं आता हूँ, और, बिना कुछ कहे या देखे,
मैं पहुँचता हूँ और खोलता हूँ उसके क़ैदख़ाने के दरवाज़े,
और शुरू होता है एक कंपन, अनिश्चित और ज़िद्दी,
शुरू होता है बिजली का कड़कना
ग्रह की गड़गड़ाहट और उसका झाग,
समुद्री बाढ़ से गरजती नदियाँ,
तारा अपने परिमंडल में डोलता है तेज़ी से,
और समुद्र पछाड़ें खाता है, निःशेष होता हुआ और लगातार।

इसतरह, अपनी नियति से खिंचा आया हूँ,
मुझे निरंतर सुनना होगा समुद्र का विलाप
और उसे रखना होगा अपनी चेतना में,
मुझे महसूस करना होगी कठोर पानी की गरज
और उसे भर लेना होगा एक अनश्वर प्याले में
ताकि, जहाँ भी जो क़ैदख़ाने में हैं,
जहाँ कहीं भी वे पतझड़ की सज़ा भुगतते हैं,
मैं वहाँ हो सकूँ बिगड़ैल लहर पर सवार होकर,
मैं हिला-डुला सकूँ, खिड़कियों से आरपार गुजरते,
और मुझे सुनते हुए, आँखें ऊपर निगाह फेंकेंगी
कहते हुए 'मैं किस तरह पहुँच सकता हूँ समुद्र तक?'
और मैं प्रसारित करूँगा, बिना कुछ कहे,
लहर की तारों भरी प्रतिध्वनियाँ,
फेन और रेतीले दलदल का टूटना,
नमक के सिमटने की सरसराहट,
समुद्र-तट पर समुद्री पक्षियों की धीमी चीख।
ताकि, स्वतन्त्रता और समुद्र, मेरे जरिए,
कपाट लगे हृदयों को उनके जवाब बन जायेंगे।

--- पाब्लो नेरूदा
( अनुवाद: कुमार अंबुज )

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