रात में सोई सड़क पर
ब्रेक कसते हैं पहियों पर अचानक।
सड़क पर रगड़ खाते
घायल पहिये चीखते हैं।
कुछ कविताएँ
छिटककर जा गिरती हैं
पास के घास के मैदान में
अनदेखी।
कुछ दर्द सोते रह जाते हैं।
कुछ बस कुनमुनाकर
करवट बदल लेते हैं।
कभी-कभी
हमारे शरीर में बजता है
धुंध और कोहरे का संगीत।
हमारी साँसे हवा में
गर्म नमी बन समाती रहती हैं।
और एक पैडल
दाँतेदार पहिये को नचाता रहता है।
पानी को काटती
बढ़ती है नाव बेचैनी के साथ
शान्त झील में
जो हमारा हृदय होता है।
ज़िद
मेरे शुभचिन्तकों के चेहरों पर
झुर्रियाँ पड़ गयीं।
पागल हो गये
मुझे बिन माँगी सलाह देने वाले।
क्या नहीं समझी
दुनिया ने तब भी
मेरी ख़ामोश ज़िद?
जानकारी
रोटी और ख़ून,
आँसू और चुंबन,
तितलियाँ और टूटे पंख,
हड्डियाँ और हरापन
-- जाना है मैंने
इनके रिश्तों का रहस्य
अनावृत महानताओं की
कुरूपता देखने के बाद।
विचार
कुछ गहन विचार
शांत झील से गहरे
और एक लक्ष्य
दूरस्थ शिखरों सा
स्केच और फोटोग्राफ के बीच जगह बनाती बेचैनी की कवितायें .आख़िरी कविता एक बड़ी उड़ान अधूरी रह गयी लगती है . अंतिम पंक्तियों में रहस्य की शिनाख्त करने की कोशिश उसे सीमित करती है .
ReplyDeletebilkul nyi kavitaayen....nitant apne jaisi....
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