कविता कृष्णपल्लवी
फ्रेडरिक एंगेल्स की स्मृति में (जन्मतिथि:28 नवम्बर,1820)
आज कार्ल मार्क्स के अनन्य मित्र फ्रेडरिक एंगेल्स का जन्मदिन है। वैज्ञानिक कम्युनिज़्म के सिद्धान्त -- द्वंद्वात्मक और ऐतिहासिक भौतिकवाद का प्रणयन करने में वे कार्ल मार्क्स के अनन्य सहयोगी थे। आधुनिक सर्वहारा के महान शिक्षकों में कार्ल मार्क्स के बाद उनका ही नाम आता है।
फ्रेडरिक एंगेल्स का जब 5 अगस्त 1895 को लंदन में देहान्त हुआ था तो लेनिन ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कवि नेक्रासोव की ये पंक्तियाँ उद्धृत की थीं: ''तर्क की कैसी मशाल बुझ गयी, कैसा हृदय हो गया स्पन्दनहीन!'' लेनिन के ही शब्दों में, ''कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स को जिस समय नियति ने साथ ला दिया उसके बाद से इन दोनों मित्रों ने अपना सारा जीवन एक ही सामान्य उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अर्पित कर दिया।''
28 नवम्बर, 1838 को एंगेल्स जर्मनी के राइन प्रदेश के बार्मेन नगर में एक कारख़ानेदार के घर पैदा हुए। मार्क्स की ही भाँति युवावस्था में एंगेल्स भी हेगेल की दर्शन की ओर आकृष्ट हुए और फिर तरुण हेगेलपंथियों के वामपक्ष में शामिल हुए। उस ज़माने के सबसे विकसित पूँजीवादी देश इंग्लैण्ड में मतभेदी पिता की फ़र्म में मुलाज़मत करते हुए एंगेल्स वहाँ के मज़दूर वर्ग के जीवन के निकट सम्पर्क में आये और पूँजीवादी उद्योगों की कार्यविधि का अध्ययन करने का उन्हें अवसर मिला। सुप्रसिद्ध चार्टिस्ट आंदोलन के भी निकट सम्पर्क में रहे। इस अनुभव का परिणाम दो कृतियों के रूप में सामने आया: 'राजनीतिक अर्थशास्त्र की समीक्षा का एक प्रयास'(1844) और 'इंगलैण्ड में मज़दूर वर्ग की दशा'(1845)। इन कृतियों में वैज्ञानिक भौतिकवादी आर्थिक विश्लेषण और सर्वहारा वर्ग के ऐतिहासिक मिशन की सैद्धान्तिक नींव फ्रेडरिक एंगेल्स रखने लगे थे। तबतक मार्क्स भी अपने प्रारम्भिक अध्ययन और लेखन में हेगेलीय भाववाद और फ़ायरबाख़ीय यांत्रिक भौतिकवाद से टकराते हुए तथा पूँजीवादी समाज की गतिकी का अध्ययन करते हुए '1844 की दार्शनिक-आर्थिक पाण्डुलिपियाँ' के मुकाम तक पहुँच चुके थे। 1844 में पेरिस में मार्क्स और एंगेल्स की मुलाकात हुई। यह दो युगप्रवर्तक व्यक्तित्वों का ऐतिहासिक, अनन्य मित्रता की शुरुआत थी, इसकी नींव में उनके एकसमान विचार थे और पूँजीवादी दासता से सर्वहारा मुक्ति का वैचारिक संघर्ष था। इस महान मैत्री के बारे में लेनिन ने लिखा है: ''प्राचीन इतिहास में मित्रता के कितने ही हृदयस्पर्शी उदाहरण मिलते हैं। यूरोपीय सर्वहारा वर्ग कह सकता है कि उसके विज्ञान की रचना दो ऐसे विद्वानों और योद्धाओं ने की है जिनके पारस्परिक सम्बन्धों ने प्राचीन लोगों की मानवीय मैत्री की सर्वाधिक हृदयस्पर्शी गाथाओं को भी पीछे छोड़ दिया है।'' एंगेल्स की गहन भावप्रवणता और सहृदयता के बारे में लेनिन ने लिखा है: ''एंगेल्स सदा ही -- और आम तौर से, बिल्कुल सही ही -- अपने को मार्क्स के बाद रखते थे। अपने एक पुराने मित्र को उन्हानें लिखा था, 'मार्क्स के जीवनकाल में मैं हमेशा पूरक की भूमिका अदा करता था,' जीवित मार्क्स के प्रति उनका प्रेम और मृत मार्क्स के प्रति उनका सम्मान-भाव निस्सीम था। इस दृढ़ योद्धा और कठोर विचारक के अन्दर एक अत्यन्त प्रेमी आत्मा निवास करती थी।''
1844-46 के बीच मार्क्स और एंगेल्स ने एक साथ मिलकर 'पवित्र परिवार' और 'जर्मन विचारधारा' शीर्षक कृतियाँ लिखीं, जिनमें हेगेल और फ़ायरबाख़ के दार्शनिक विचारों की आलोचनात्मक पुनर्व्याख्या करते हुए द्ंवद्वात्मक और ऐतिहासिक भौतिकवाद के विकास के प्रारम्भिक मंज़िल पूरी की गयी थीं। 1847 में एंगेल्स ने कम्युनिस्ट लीग के कार्यक्रम का एक मसौदा 'कम्युनिज़्म के सिद्धान्त' के रूप में तैयार किया। इसी आधार पर आगे चलकर मार्क्स ने और उन्होंने 'कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणपत्र' (1848) लिखा। 1848-49 में एंगेल्स ने जर्मनी में क्रान्तिकारी सैनिकों की ओर से युद्ध में प्रत्यक्षत: हिस्सा लिया। इसके बाद के प्रवासकाल के वर्षों में 'जर्मनी में किसान युद्ध' और 'जर्मनी में क्रान्ति और प्रतिक्रान्ति' नामक पुस्तकें लिखकर जर्मन क्रान्ति के अनुभवों का सामान्यीकरण करते हुए बुर्ज़ुआ जनवादी क्रान्ति में मज़दूर किसान संश्रय की अवधारणा रखी तथा बुर्ज़ुआ वर्ग की गद्दारी को उजागर किया। इस समय तक मार्क्स इगलैण्ड में बस गये थे। एंगेल्स भी वहीं पहुँच गये। वहाँ दोनों ने पहले इण्टरनेशनल की स्थापना में अग्रणी भूमिका निभाई तथा मज़दूर आन्दोलन में व्याप्त निम्नपूँजीवादी अवसरवादी और अराजकतावादी विचारों के विरुद्ध तीखा संघर्ष चलाया।
1850 के दशक से लेकर 1870 तक एंगेल्स मैंचेस्टर में अपनी पहले वाली व्यावसायिक फ़र्म में ही नौकरी करते हुए लंदन में लगातार अभावों में जी रहे मार्क्स के परिवार को आर्थिक मदद भेजते रहे। हर रोज़ लिखे जाने वाले लम्बे पत्रों द्वारा दोनों मित्र आपस में जीवंत बौद्धिक सम्बन्ध बनाये रहे। यह एंगेल्स की बेमिसाल क़ुर्बानी भरी आर्थिक मदद थी, जिसके चलते मार्क्स और उनका परिवार जीवित रहा और 'पूँजी' के लेखन का महाउद्यम सम्पन्न होना सम्भव हो सका। 1870 तक एंगेल्स लंदन आ गये और फिर दोनों मित्रों का बेहद श्रमसाध्य संयुक्त बौद्धिक जीवन 1883 में मार्क्स का निधन होने तक लगातार चलता रहा। इस दौरान मार्क्स की 'पूँजी' खण्ड-एक की तैयारी, प्रकाशन और उसपर होने वाली बहसों में भागीदारी के अतिरिक्त एंगेल्स की भी कई छोटी-बड़ी रचनाएँ प्रकाशित हुईं। मार्क्स ने मुख्यत: अपना समय पूँजीवादी अर्थतंत्र की जटिल संरचना एवं कार्यविधि को समझने में लगाया। एंगेल्स ने प्राय: अपना ज्यादा समय खण्डन-मण्डनात्मक शैली या सीधी-सादी भाषा में अतीत और वर्तमान के विविध प्रश्नों पर ऐतिहासिक भौतिकवादी दृष्टिकोण प्रस्तुत करने और मार्क्स के आर्थिक सिद्धान्तों को व्याख्यायित करने में लगाया।
मार्क्स की मृत्यु ने 'पूँजी' की महाकाय परियोजना को अन्तिम रूप नहीं लेने दिया। मार्क्स अपने पीछे पूँजी खण्ड-2, खण्ड-3 और खण्ड-4 (जो चार खण्डों में 'थियरीज़ ऑफ सरप्लस वैल्यू' नाम से प्रकाशित है) की पाण्डुलिपियों का अम्बार छोड़ गये। एंगेल्स ने अपने मित्र की अमूल्य धरोहर के सम्पादन-प्रकाशन में अपना जीवन झोंक दिया। अंतिम साँस तक बिस्तर पर लेटे हुए भी वे यह काम करते रहे। 1885 में 'पूँजी' का दूसरा खण्ड और 1894 में तीसरा खण्ड प्रकाशित हुआ। आस्ट्रियाई सामाजिक जनवादी नेता एडलर ने बिलकल ठीक कहा था कि पूँजी के दूसरे-तीसरे खण्ड को प्रकाशित करके उस महान प्रतिभाशाली व्यक्ति की याद में, जो उनका मित्र था, एंगेल्स ने एक भव्य स्मारक खड़ा कर दिया था, एक ऐसा स्मारक जिसपर न चाहते हुए भी अपना नाम भी अमिट रूप से अंकित कर दिया है। सच पूछें तो 'पूँजी' के बाद के दो खण्ड मार्क्स और एंगेल्स दोनों की रचना है। चौथे खण्ड की पाण्डुलिपियों का सम्पादन एंगेल्स के निधन के कारण रुक गया। उनका सम्पादन कार्ल काउत्स्की ने किया, जिसमें कुछ त्रुटियाँ-कमियाँ और अवांक्षित व्याख्याएँ भी थीं। इन्हेंडेविड रियाज़ानोव के निदेशक रहते मास्को स्थित 'मार्क्स-एंगेल्स अध्ययन संस्थान' ने पुनरसम्पादित किया और प्रकाशित किया।
मार्क्सवादी दर्शन में एंगेल्स का अपना योगदान विशाल है। 'लुडविग फायरबाख़ और क्लासिकी जर्मन का अंत', 'ड्यूहरिंग मत-खण्डन', 'प्रकृति की द्वंद्वात्मकता' तथा 'परिवार, निजी सम्पत्ति और राज्यसत्ता की उत्पत्ति' जैसी कृतियाँ मार्क्सवादी दर्शन के सार एवं महत्व की क्लासिकी प्रस्तुतियाँ हैं। एंगेल्स का बहुत बड़ा योगदान यह था कि द्वंद्वात्मक भौतिकवाद को उन्होंने प्राकृतिक विज्ञानों पर लागू किया। वर्ग, शोषण और जेण्डर-विभेद के नृतत्वशास्त्रीय मूल की उनकी विवेचना अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनके सर्वतोमुखी ज्ञान ने उनके लिए पदार्थ की गति के वस्तुगत रूपों को विद्याओं के विभेदीकरण का आधार बनाते हुए विज्ञानों के वर्गीकरण की सामंजस्यपूर्ण प्रणाली का विशदीकरण करना सम्भव बनाया। दार्शनिक वाद-विवादों में, वैज्ञानिक और आर्थिक नियतत्ववाद तथा अज्ञेयवाद की आलोचना करते हुए एंगेल्स ने ऐतिहासिक भौतिकवाद की आधारभूत प्रस्थापनाओं का विकास किया।
मार्क्स की मृत्यु के बाद एंगेल्स अंतिम साँस तक यूरोप के समाजवादियों के शिक्षक, नेता और सलाहकार की भूमिका निभाते रहे। उल्लेखनीय है कि रूसी समाज और क्रान्तिकारी आंदोलन के गहन अध्येता एंगेल्स ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में आसन्न रूसी क्रान्ति की भविष्यवाणी कर दी थी। उनका मानना था कि इस क्रान्ति से यूरोप की मज़दूर क्रान्तियों को भी नया संवेग मिलेगा। एक बात और महत्वपूर्ण है। फ्रेडरिक एंगेल्स बढ़ती इजारेदारी की प्रवृत्ति और वित्तीय पूँजी (बैंकिंग एवं सट्टाबाज़ार) की बढ़ती भूमिका को अपने अंतिम वर्षों में विश्वपूँजीवाद की कार्यप्रणाली में आ रहे एक अहम बदलाव के रूप में देखने लगे थे। इसी प्रवृत्ति को आगे चलकर लेनिन ने अपनी अमर कृति 'साम्राज्यवाद -- पूँजीवाद की चरम अवस्था' में सूत्रबद्ध किया।
अपने मित्र कार्ल मार्क्स के गम्भीर और प्राय: अपने अध्ययनकक्ष और परिवार तक सिमटे रहने वाले स्वभाव के उलट, एंगेल्स ज़िंदादिल, हँसोड़ और गप्पबाज़ थे। उन्हें पार्टियाँ भी पसन्द थीं और लोमडि़यों का शिकार भी। सामरिक मामलों में उनकी विशेषज्ञताओं के चलते उनके दोस्त उनको 'जनरल' कहकर बुलाया करते थे। मैंचेस्टर में अपने प्रथम प्रवास के दौरान ही एंगेल्स का एक आयरिश मज़दूर लड़की मेरी बार्न्स से प्रेम हो गया था। एंगेल्स का यह प्रेम 1854 तक गुप्त रहा। फिर 1854 से खुले तौर पर वे मेरी के साथ 'लिव इन रिलेशन' में रहने लगे। मेरी बाद में अपनी बहन लिज़्जी के साथ मैंचेस्टर में बोर्डिंग हाउस चलाने का काम करने लगी थी। 1863 में मेरी की अचानक मृत्यु हो गयी। कुछ समय बाद एंगेल्स और लिज़्जी परस्पर प्रेम सम्बन्धों में बँध गये। 1870 में एंगेल्स लिज़्जी के साथ मैंचेस्टर से लंदन आ गये। वहाँ सितम्बर 1878 में लिज़्जी की मृत्यु तक दोनों जीवन साथी के रूप में साथ रहे। 5 अगस्त 1895 को एंगेल्स का लंदन में निधन हुआ। उनकी इच्छा के मुताबिक उनकी अस्थियाँ समुद्र में बिखेर दी गयीं।
दुनिया का मज़दूर वर्ग एंगेल्स के उदात्त शौर्यपूर्ण जीवन, मार्क्स के साथ उनकी ग्रीक मिथकों जैसी मित्रता और उनके महान वैचारिक अवदानों पर हमेशा गर्व करता रहेगा। हम अपने 'जनरल' को कभी भुला नहीं सकते।
THANKS TO SHARE THIS POST KAVITA JI .
ReplyDelete