Saturday, April 27, 2013

पाँच छोटी कविताएँ

चुप्‍पी
चुप्‍पी है घास
चुप्‍पी है कपास
और पानी की सलवटें
और काँपती उँगलियाँ
और कभी-कभी
एक अडिग फैसला भी।

उदासी
सहसा रात को
होता है घुटन का अहसास।
भरा होता है दिल
यादों से।
तपती होती है
पत्‍थर की एक पटिया
झील के तल  में।
मिट्टी में दबा
लोहे का एक चाकू
जंग खाता रहता है।
और हम होते हैं
पतझड़ के पत्‍तों के बीच
ऊँघती वीरान सड़कों पर।

आश्‍चर्यलोक
हम चित्रों में जड़ दिये जायेंगे
किसी एक बृहस्‍पतिवार को
और इतवार आते-आते
छन्‍न से टूट कर गिर पड़ेंगे
फर्श पर।
यूँ हम आश्‍चर्य का सृजन करेंगे
और उसमें घुस जायेंगे
एलिस बनकर।

राहत
एक लहर आकर
सिर पटकेगी  किनारे पर।
एक फुसफुसाहट गूँजेगी
सन्‍नाटे में।
आँसू का एक कतरा
पलकों पर चमकेगा
घास की नोंक पर ओस की बूँद की तरह।
जैसे युगों बाद
अँधेरे से बाहर आयेगी  एक नाव
और हम एक लम्‍बी साँस लेंगे
राहत और चैन की,
एक लम्‍बे समय बाद।

हिंसा
वे घोड़े बहुत सुन्‍दर और प्‍यारे थे।
चि‍कनी रोएँदार चमड़ी,
चमकते-लहराते शानदार अयाल
और भीतर तक उतरती भावुक आँखों वाले।
उनके खुर
बना रहे थे लगातार
धरती के सीने पर घाव।

-कविता कृष्‍णपल्‍लवी

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