नींद में इन दिनों
सिर्फ अंधेरी खोह जैसी गहराइयां हैं,
चाहे हम उनमें तीर की तरह
नीचे गिरते जायें
या फ़टे काग़ज़ की चिन्दी की तरह
तैरते हुए नीचे उतरें।
नींद में ठहरे हुए पानी पर
चक्कर काटते काले जल भौंरे हैं।
नींद में दिशाहीन संगीतकार
खोजते हैं आगत की कोई लय।
नींद में कोई दरवाज़ा खोजना न खोजना
व्यर्थ है।
जागने की एक कोशिश हमें
इस मायाजाल से बाहर ला सकती है
जलते समय की छाती पर जीने,
प्यार करने और यात्रा करने के लिए।
-कविता कृष्णपल्लवी
सिर्फ अंधेरी खोह जैसी गहराइयां हैं,
चाहे हम उनमें तीर की तरह
नीचे गिरते जायें
या फ़टे काग़ज़ की चिन्दी की तरह
तैरते हुए नीचे उतरें।
नींद में ठहरे हुए पानी पर
चक्कर काटते काले जल भौंरे हैं।
नींद में दिशाहीन संगीतकार
खोजते हैं आगत की कोई लय।
नींद में कोई दरवाज़ा खोजना न खोजना
व्यर्थ है।
जागने की एक कोशिश हमें
इस मायाजाल से बाहर ला सकती है
जलते समय की छाती पर जीने,
प्यार करने और यात्रा करने के लिए।
-कविता कृष्णपल्लवी
'जागने की एक कोशिश हमें/ इस मायाजाल से बाहर ला सकती है/ जलते समय की छाती पर जीने,/प्यार करने और यात्रा करने के लिए' अच्छी पंक्तियाँ हैं. प्यार और यात्रा स्थाई रूपक लगते हैं. दोनों ही बेहद अर्थवान.
ReplyDeleteनींद इन दिनों गहराइयों की तलाश में है। चाहे उसमें तीर की तरह उतना पड़े या
ReplyDeleteकटे पतंग की तरह हवा में तैरते हुए...।
नींद में नदी की बहुत तेज धार है और उलटी ओर तैरते-हारते जल भौंरे हैं...।
नींद में आगत की एक लय की तलाश है और शुरू होने से पहले टूटती हुई हर लय
है...।
जागते हुए जो दरवाजे खोजे नहीं जा पाते, नींद में वही दरवाजे खुले-से दिखते
हैं जो व्यर्थ हैं...।
फिर भी सही है कि जागना होगा, ताकि दरवाजे सचमुच खोजे जा सकें, ताकि मायाजाल
से बाहर निकल कर थोड़ा जिया और प्यार किया जा सके...।