मैं जानती हूं पिंजरे का पंछी क्यों गाता है
माइआ अंजालो
उड़ता है हवा के साथ प्रवाह के थमने तक,
माइआ अंजालो |
और करता है साहस
ऊंचाइयों को नापने का।
लेकिन अपने छोटे से पिंजरे में
बेचैन घूमता पंछी शायद ही कुछ देख पाता है
अपने उन्माद की सलाखों के पार,
उसके पर कतर दिए गए हैं
बांध दिए गए हैं उसके पैर भी
इसीलिए, वह गाता है।
पिंजरे का पंछी गाता है कंपकंपाते स्वर में
उन अज्ञात चीज़ों के बारे में
जिनकी चाहत अभी बाकी है,
दूर पहाड़ी पर सुनाई देती है उसकी धुन
जब वह गाता है मुक्ति का गीत।
आज़ाद पंछी सोचता है
ठंडी हवा के एक और झोंके के बारे में
और पेड़ों के उच्छवास से गुज़रती
पुरवाई के बारे में,
उसे याद आते है
रश्मिप्रभा में नहाए बगीचे में रेंगते ताजा कीड़े
और वह पुकारता है आसमान को
अपने ही नाम से।
पर पिंजरे का पंछी खड़ा रहता है
अपने ही सपनों की कब्र पर,
एक दु:स्वप्न से उपजी चीख पर
थरथरा उठती है उसकी परछाई भी,
उसके पर कतर दिए गए हैं
बांध दिए गए हैं उसके पैर भी
इसीलिए, वह गाता है।
पिंजरे का पंछी गाता है कंपकंपाते स्वर में
उन अज्ञात चीज़ों के बारे में
जिनकी चाहत अभी बाकी है,
दूर पहाड़ी पर सुनाई देती है उसकी धुन
जब वह गाता है मुक्ति का गीत।
(कविता का अनुवाद एक मित्र के सौजन्य से) (
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