मेरे पास है
एक बीमार गुलाब।
मेरे पास है
एक काला पत्थर
पितरों की विरासत
और नग्न यक्षिणी की एक प्रतिमा।
मेरे पास है सुई-धागा,
कीलें अलग-अलग नापों की,
हथौड़ी, छेनी, निहाई, खुरपी, दरांती
और घण्टी और डायरियां और झोले
और गर्भ की स्मृतियां
और शरीर पर जले-कटे के निशान
और आत्मा में
कोयला खदानों का अंधेरा
और उमस और टार्चों की रोशनी।
उपेक्षा ने सिखाया मुझे
सुलगते रहना।
दर्द से सीखा मैंने हुनर
भभककर जल उठने का।
आज़ादी चाहिए थी मुझे शुभचिन्तकों से
मनमुआफिक विद्रोह के लिए
और मेरे पास वह कायरता भी थी
युगों से संचित
कि इतना समय लग गया ऐसा करने में।
-कविता कृष्णपल्लवी
एक बीमार गुलाब।
मेरे पास है
एक काला पत्थर
पितरों की विरासत
और नग्न यक्षिणी की एक प्रतिमा।
मेरे पास है सुई-धागा,
कीलें अलग-अलग नापों की,
हथौड़ी, छेनी, निहाई, खुरपी, दरांती
और घण्टी और डायरियां और झोले
और गर्भ की स्मृतियां
और शरीर पर जले-कटे के निशान
और आत्मा में
कोयला खदानों का अंधेरा
और उमस और टार्चों की रोशनी।
उपेक्षा ने सिखाया मुझे
सुलगते रहना।
दर्द से सीखा मैंने हुनर
भभककर जल उठने का।
आज़ादी चाहिए थी मुझे शुभचिन्तकों से
मनमुआफिक विद्रोह के लिए
और मेरे पास वह कायरता भी थी
युगों से संचित
कि इतना समय लग गया ऐसा करने में।
-कविता कृष्णपल्लवी
उत्कृष्ट कविता।
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