मेरी मां
इक माटी का दियना
दिप-दिप जलती बाती।
लंबी रात में
दुख ही साथी
दुख ही सदा संघाती।
मेरी मां
बस दुख की दुल्हनियां
दुख से गांठ जुड़ाती।
दुख का चंदोवा
दुख का मंड़वा
दुखिया सभी बराती।
मेरी मां
इक घायल हारिल
सपन देस की बासी
कनक दीप का
सपना देखे
अनगिन बरत उपासी
मेरी मां
मौसम की मारी
पगली नदी बरसाती।
सावन-भादो
उमड़कर बहती
फिर सूखी रह जाती।
मेरी मां
इक खोई गइया
चौंरे बीच रंभाती।
बिछुड़ गये सब
बछड़े-बछिया
दूध बहाती जाती।
मेरी मां
एक प्यासी गगरिया
नदिया को लिखती पाती।
कोने बैठ
टकटकी बांधे
यादों को दुलराती।
मेरी मां
इक आंसू का कतरा
आंखे जिसे पी जातीं।
जलती-बुझती
रात-अंधेरे
भोर हुए झंप जाती।
मेरी मां
इक अकथ कहानी
सोच फटे यह छाती।
लिख ना सके
कोई बांच न पाये
अनबूझी रह जाती।
-कविता कृष्णपल्लवी
मेरी मां
ReplyDeleteइक अकथ कहानी
सोच फटे यह छाती।
लिख ना सके
कोई बांच न पाये
अनबूझी रह जाती