जब मन चाहे
आत्मा के जख़्मों, प्यास, प्रतीक्षा ,
पागल चाहतों और बेचैन यादों के बारे में
बातें करने को,
तब चाय बनाओ
दोस्तों के लिए,
घर की सफाई करो
किताबों को
तरतीब से सजाओ
और कुछ खाने-पीने का प्रोग्राम बनाओ।
यही दस्तूर है इस शहर का
पर यहां रहते हैं
कुछ समझदार भी
और कुछ समझदार होने का वहम पाले
कुछ लाल बुझक्कड़ भी।
-कविता कृष्णपल्लवी
शुभकामनाएँ...
ReplyDeleteहिन्दी ब्लाग जगत में शिखर तक की यात्रा करने के सुप्रयास हेतु आर नजरिया ब्लाग में नये ब्लाग लेखकों के लिये उपयोगी सुझाव अवश्य पढें ।
http://najariya.blogspot.com
शुक्रिया।
ReplyDeleteअनूठी रचना जो सबसे अलग और हटकर लगी - बधाई
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