Tuesday, April 30, 2019

भीख माँगने की संस्था सभ्य समाज के चेहरे पर सबसे बदनुमा दाग है I यह इंसानियत का अपमान है, शर्मनाक है I


भीख माँगने की संस्था सभ्य समाज के चेहरे पर सबसे बदनुमा दाग है I यह इंसानियत का अपमान है, शर्मनाक है I

बूढ़े लाचार लोगों और बच्चों को भीख माँगते देखकर मैं बेबसी और क्षोभ से भर उठती हूँ, फिर भी उनसे कुछ कहते नहीं बनता I कभी-कभी तो उन्हें कुछ दे भी देती हूँ, हालाँकि उसके बाद क्षोभ और गहरा हो जाता है I पर जब भी कोई हट्ठा-कट्ठा, युवा या काम करने की उम्र और सेहत वाला भिखमंगा मिलता है तो उसे कड़ी फटकार लगाने से मैं खुद को रोक नहीं पाती, क्योंकि ऐसे लोग मुझे दुनिया के सबसे विमानवीकृत लोग लगते हैं I मैं उनसे कहती हूँ कि वे लेबर चौक पर क्यों नहीं खड़े होते, कारखानों के बाहर दिहाड़ी के लिए लाइन क्यों नहीं लगाते, किराए पर रिक्शा लेकर क्यों नहीं चलाते और भीख माँगने का विकल्प चुनने की जगह कुछ लूट-पाट करके जेल क्यों नहीं चले जाते, या मर ही क्यों नहीं जाते !

अब आप सोचिये कि जिस देश का प्रधानमंत्री, जिसका बुढ़ापे में भी चेहरा दिप-दिप दमकता है और जो 56 इंच का सीना होने के दावे ठोंकता है, वह यदि नौजवानी से लेकर अधेड़ होने तक, 35 वर्षों तक भीख माँगकर खाने की बात गर्व से करता है, तो उस इंसान का और उसे भक्तों का सांस्कृतिक-आत्मिक स्टैण्डर्ड क्या हो सकता है ! वैसे तो यह बात सफ़ेद झूठ है, क्योंकि मोदी ने 18 वर्ष की उम्र में घर छोड़ा था ( भाई का कहना है कि गहने चुराकर भागे थे ) ! उसके बाद 35 वर्ष तक भीख माँगने का मतलब यह कि आडवानी की रथयात्रा और बाबरी मस्जिद-धंस से लेकर गुजरात का मुख्यमंत्री होने तक यह बोंगा भीख ही माँग रहा था, जो कि असंभव है I अब कोई आदमी अगर भीख माँगने को गर्व की चीज़ समझकर झूठ बोलता है तो आप उसके सांस्कृतिक स्तर और 'डीह्युमनाइज़्ड' चेतना का सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं ! आज के फासिस्टों को ऐसा ही नेता चाहिए ! ऐसे ही नेता के नेतृत्व में गुजरात-2002 से लेकर अबतक की सारी खूनी कार्रवाइयाँ और सारे षड्यंत्र संभव हो सकते थे ! यह सिर्फ़ हद दर्जे का झूठा, मूर्ख, कूपमंडूक ही नहीं है, बल्कि उस हद तक 'डीह्यूमनाइज्ड' भी है, जितना हत्यारों का ठण्डे दिमाग वाला सरगना होने के लिए ज़रूरी है I मोदी एक व्यक्ति नहीं है, बल्कि यह नवउदारवाद के दौर के सड़ते हुए, रुग्ण-विकलांग, बौने भारतीय पूँजीवाद की राजनीतिक-आत्मिक संस्कृति का प्रतीक-पुरुष है I राजनीति में मोदी की उपस्थिति मात्र इस बात का ऐतिहासिक साक्ष्य प्रस्तुत करती है कि भारतीय पूँजीवाद किसक़दर सड़ गया है और असह्य बदबू फैला रहा है ! यह बदबू आबादी के एक बेहद छोटे, बीमार हिस्से के लिए नशा बन चुकी है और बहुतेरे "शरीफ़" और निराशा में डूबे लोग इसे बर्दाश्त करने के आदी होते जा रहे हैं ! फासिज्म के ख़िलाफ़ फैसलाकुन लड़ाई लड़ने के लिए इस मानसिकता को झकझोरना भी ज़रूरी है !

(28अप्रैल, 2019)

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